सूरन (Elephant Foot Yam) न केवल सब्जी, बल्कि अचार के लिए भी जाना जाता है. सूरन में अनेक प्रकार के औषधीय तत्त्व मौजूद होते हैं. सूरन को ओल व जिमीकंद के नाम से भी जाना जाता है. यह एक औषधीय महत्त्व की सब्जी है.
गुण
यह रक्तविकार, कब्जनाशक, बवासीर, खुजली, उदर संबंधी बीमारियों के अलावा अस्थमा व पेचिश में भी काफी लाभदायक है.
भूमि
सूरन की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सब से अधिक उपयुक्त होती है.
रोपाई का समय
रोपाई करने का सर्वोत्तम समय अप्रैल से जून महीने तक है.
प्रमुख प्रजातियां
सूरन की प्रजातियां एनडीए-5 , एनडीए-8 और गजेंद्रा -1 प्रमुख हैं. ये प्रजातियां पूरी तरह से कड़वापन से मुक्त हैं.
बीज व उन का उपचार
कंद की मात्रा कंद के आकार पर निर्भर करती है. आधा किलोग्राम से कम का कंद न रोपें. एक बिस्वा/कट्ठा (125 वर्गमीटर) क्षेत्रफल के लिए एक क्विंटल कंद बीज की आवश्यकता होती है. बीज के उपचार के लिए 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लिटर पानी में घोल दें और 20 से 25 मिनट तक उस घोल में कंद को डाल दें. इस के बाद इन्हें निकाल कर 10-15 मिनट तक छाया में सुखा कर रोपाई करें.
खाद, उर्वरक और रोपाई की विधि
रोपाई के लिए आधाआधा मीटर की दूरी पर एकएक फुट के आकार का गड्ढा खोद कर प्रति गड्ढे की दर से 3 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 20 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 10 ग्राम यूरिया, 37.5 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 16 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश डाल कर मिलाने के बाद कंद की रोपाई करें. रोपाई के 85 से 90 दिन बाद दूसरी सिंचाईनिराई करें. उस के बाद 10 ग्राम यूरिया प्रति पौधे में डालें.
सिंचाई
नमी की कमी रहने पर हलकी सिंचाई करें. पानी एक जगह इकट्ठा न होने दें.
सूरन के साथ सहफसली खेती
सूरन के साथ लोबिया या भिंडी की सहफसली खेती कर सकते हैं. आम, अमरूद वगैरह के बगीचे में सूरन लगा कर अच्छी आमदनी हासिल कर सकते हैं.
ऐसे करें उत्पादन
बोआई में प्रयुक्त कंदों के आकार, बोआई के समय व देखभाल के आधार पर प्रति बिस्वा 6-12 क्विंटल तक उपज 9-10 महीने में मिल जाती है.