भारत में इस की खेती मुख्यत: राजस्थान, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में की जाती है.
जलवायु और भूमि: धनिया की फसल को शुष्क व ठंडा मौसम अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए अनुकूल होता है. बीजों के अंकुरण के लिए 25-26 सैल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है. धनिया शीतोष्ण जलावायु की फसल है. इस की खेती के लिए अच्छी जल निकास वाली अच्छी दोमट भूमि सब से अच्छी मानी जाती है, जिस का पीएच मान 6.5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए. असिंचित दशा में काली भारी भूमि अच्छी होती है. धनिया की फसल क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नहीं करती है. भूमि की तैयारी बोआई के समय सही नमी न हो, तो भूमि की तैयारी पलेवा दे कर करनी चाहिए, जिस से जमीन में जुताई के समय ढेले न बनें. 2 जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें.
बोआई का समय : धनिया की फसल खासकर रबी मौसम में बाई जाती है. धनिया की बोआई 15 अक्तूबर से 15 नवंबर तक की जाती है. धनिया की फसल के लिए दिन का उपयुक्त तापमान 20 डिगरी सैल्सियस से कम आते ही बोआई शुरू कर देनी चाहिए.
फसल चक्र : धनियाभिंडी, धनियासोयाबीन, धनियामक्का, धनियामूंग आदि फसल चक्र के अनुसार भी धनियां से अधिक लाभ लिया जा सकता है.
बीज की मात्रा : 10-15 किलोग्राम बीज उत्पादन के लिए और 18-20 किलोग्राम बीज पत्ती फसल के लिए प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है.
बोआई की विधि और दूरी : इस की 2 विधियां प्रचलित हैं :
1. छिड़काव विधि : सुविधाजनक क्यारियां बना कर, बीज को एकसमान मात्रा में छिड़क कर मिट्टी 3 सैंटीमीटर गहरी तह से ढक देते हैं जिससे बीज मिट्टी से ढक जाए.
2. पंक्ति विधि : अधिक उपज लेने के लिए पंक्तियों में बोआई करना लाभदायक रहता है. पंक्ति की दूरी 10-15 सैंटीमीटर और बीज की गहराई 3 सैंटीमीटर होनी चाहिए. बीज का शोधन बोने से पहले बीजों को पैरों से हलका दबा कर 2 भागों में कर लेना चाहिए. इस के बाद बीज को कार्बंडाजिम थाइरम (2:1) 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या कार्बंडाजिम 37.5 फीसदी थाइरम 37.5 फीसदी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.
खाद्य व उर्वरक : कंपोस्ट की खाद 18-20 टन प्रति हेक्टेयर, 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देने पर अच्छी उपज प्राप्त होती है. उक्त उर्वरकों में नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के पूर्व आधार खुराक के रूप में दें और बाकी बची नाइट्रोजन की मात्रा को 2 भागों में बांट कर क्रमश: 40-45 दिन पर पौधों की छंटनी करने के बाद एवं दाना बनना शुरू होने के समय सिंचाई के साथ दें.
सिंचाई और जल निकास: पहली सिंचाई 30 से 35 दिन बाद (पत्ती बनने की अवस्था), दूसरी 50-60 दिन बाद (शाखा निकलने की अवस्था), तीसरी सिंचाई 70-80 दिन बाद (फूल आने की अवस्था) और चौथी सिंचाई 90-100 दिन बाद (बीज बनने की अवस्था) में करनी चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण व अंत:शस्य क्रियाएं: धनिया की फसल में खरपतवार पनपने की अवधि 35-40 दिन है. इस अवधि में खरपतवार की निराई नहीं करते हैं, तो धनिया की उपज 40-45 फीसदी कम हो जाती है. इस में पेंडीमिथलीन 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लिटर पानी में डाल कर छिड़काव करें. यह छिडकाव बीज बोआई के 2 से 4 दिन के अंदर कर दे जिससे खरपतवार नहीं निकलेंगे.
फसल संरक्षण बीमारी और रोकथाम
उकठा रोग: यह रोग पौधों की जड़ में लगता है, जिस से पौधा सूख कर मर जाता है.
रोकथाम :
* ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएं.
* बीज की बोआई नवंबर के पहले हफ्ते से ले कर दूसरे हफ्ते करें.
* उकठा रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी 2.0 ग्राम प्रति लिटर का छिड़काव करें.
चूर्णिल आसिता रोग: रोग की शुरुआती अवस्था में पौधों की पत्तियों व टहनियों पर सफेद चूर्ण नजर आता है. रोगी पौधे में बीज या तो बनते ही नहीं हैं या फिर बहुत छोटे बनते हैं.
रोकथाम :
* बोआई के पहले बीजों को कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी 3.0 ग्राम प्रति किलोग्राम या ट्राइकोडर्मा विरडी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बोआई करें.
* कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी 2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर का छिड़काव करें.
तने की सूजन: इस बीमारी में पौधे के तने पर सूजन आ जाती है, जिस से पौधा नष्ट हो जाता है.
रोकथाम :
* रोगरोधी किस्मों की बोआई करनी चाहिए, जैसे आरसीआर-41, पंत हरीतिमा आदि.
* रोग के लक्षण दिखाई देने पर स्ट्रैप्टोमाइसिन 0.04 फीसदी (0.4 ग्राम प्रति लिटर) का 20 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.
कीट और रोकथाम
धनिया की फसल में पौधों पर रस चूसक कीट माहू, चैंपा का प्रकोप होता है, जिस से उपज में 70-80 फीसदी तक भारी कमी आ जाती है.
मुख्यत: पुष्पण व बीज बनते समय माहू कीट का भारी आक्रमण होता है.
रोकथाम : * इस की रोकथाम के लिए औक्सीडेमेटानमिथाइल 25 ईसी प्रति हेक्टेयर- 0.03 (1.5 मिलीलिटर प्रति लिटर)
* डाइमेथोएट 35 ईसी प्रति हेक्टेयर- 0.20 (2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर) 3. इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल प्रति हेक्टेयर-0.025 (0.25 मिलीलिटर/लिटर)
कटाई : हरे धनिया पत्तियों के लिए पौधों की बोआई के 30 दिन बाद कटाई शुरू कर देते हैं जबकि बीज की फसल 120-130 दिन में तैयार हो जाती है.
जैसे ही दाने पीले पड़ने लगें, फसल की कटाई कर देनी चाहिए. उस के बाद हलकी धूप में सुखा कर दाने अलग कर लेते हैं.
उपज और भंडारण: धनिया का बीज उत्पादन 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है. वैज्ञानिक तरीके से व्यावसायिक स्तर पर की गई खेती से 18-20 क्विंटन बीज प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है. पूरी तरह सुखाई हुई धनिया के बीजों को साफ बोरियों में भर कर नमीरहित गोदाम में रखना चाहिए.
धनिया की कुछ उन्नत किस्में
हिसार सुगंध : यह प्रजाति 120-125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. दाना मध्यम आकार का, अच्छी सुगंध, पौधे की मध्यम ऊंचाई, उकठा रोग, स्टेमगाल प्रतिरोधक. इस की उपज 19-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
पंत हरीतिमा : यह प्रजाति पत्ती व दानों के लिए उगाई जाती है. 130-135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. दाना गोल, सुडौल व छोटा होता है. इस की उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. तना सूजन के प्रति मुक्त है.
कुंभराज : इस की पकने की अवधि 115-120 दिनों की है. इस के दाने छोटे सफेद फूल, उकठा स्टेमगाल प्रतिरोधी, भभूतिया रोग सहनशील प्रजाति है. पौधे मध्यम ऊंचाई के होते हैं और इस की उपज क्षमता 14-15 हेक्टेयर प्रति क्विंटल है.
आरसीआर 728 : यह प्रजाति 125-130 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इस के दाने छोटे गोल, सफेद फल, भभूतिया सहनशील, उकठा, स्टेमगाल निरोधक, सिंचित, असिंचित एवं हरी पत्तियों के लिए उपयुक्त है. जेडी 1 : यह प्रजाति 120-125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इस के दाने गोल मध्यम आकार के, पौधे मध्यम ऊंचाई के, उकठा, स्टेमगाल, भभूतिया सहनशील, सिंचित एवं असिंचित के लिए उपयुक्त है.
उपज : सिंचित फसल की वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर 15-18 क्विंटल बीज एवं 100-125 क्विंटल पत्तियों की उपज और असिंचित फसल की 5.7 क्विंटल उपज प्राप्त होती है.
सिंपो एस 33 : यह प्रजाति लंबे समय के लिए होती है. इस की पकने की अवधि 140-150 दिनों की है. इस के दाने बड़े, अंडाकार, पौधे मध्यम ऊंचाई के, उकठा, स्टेमगाल प्रतिरोधक, भभूतिया सहनशील, बीज के लिए यह सब से उपयुक्त प्रजाति है और इस की उपज क्षमता 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.