फसलों में कवक, जीवाणु, विषाणु व सूत्रकृमि द्वारा होने वाले रोगों से हर साल बहुत नुकसान होता है. इन को काबू में लाने के लिए रसायनों के इस्तेमाल से पर्यावरण प्रदूषण होता है. ऐसे में फसलों में रोगों की रोकथाम के लिए जैव उत्पादों का इस्तेमाल करना ही बेहतर है.

खतरनाक रासायनिक दवाओं का जमाना अब पुराना पड़ चुका है. किसान इस हकीकत को जान चुके हैं कि रासायनिक कीटनाशक और दवाएं इस्तेमाल करना कितना घातक है. लिहाजा सभी खेती करने वालों को जैव उत्पादों की हकीकत और अहमियत समझाना जरूरी हो गया है. माहिर कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि अब जल्दी से जल्दी हमें रासायनिक दवाओं से छुटकारा पा लेना चाहिए.

यहां तमाम जैव उत्पादों की पूरी जानकारी दी जा रही है:

ट्राइकोडर्मा : ट्राइकोडर्मा एक मित्र फफूंद के रूप में मिट्टी में मौजूद हानिकारक शत्रु फफूंदों से फसलों की रक्षा करता है. ‘ट्राइकोडर्मा विरिडि’ व ‘ट्राइकोडर्मा इकजिएनम’ तमाम फसलों जैसे जीरा, मूंगफली, कपास, चना वगैरह में भूमि जनित फफूंद रोगों जैसे जड़ गलन, उकटा व तना गलन के खिलाफ असरदार होते हैं. इन के इस्तेमाल से फ्यूजेरियम, राइजोक्टोनिया, मैक्रोफोमिना, स्क्लोरोशियम, पीथियम, फाइरोफ्थोरा आदि रोग फैलाने वाले कवकों को काबू किया जा सकता है.

इस्तेमाल का तरीका : जैव फफूंदनाशी ट्राइकोडर्मा से बीज उपचार, मिट्टी उपचार व मिट्टी ड्रेचिंग कर के रोगों से छुटकारा पाया जाता है. 8 से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज की दर से ले कर बीजोपचार करने और ढाई किलोग्राम ट्राइकोडर्मा 100 किलोग्राम गोबर की खाद में 15 दिनों तक रख कर बोआई के समय खेत की मिट्टी में मिला कर देने से रोगों पर काबू किया जा सकता है. खड़ी फसलों में 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से ड्रेचिंग कर के उकटा व जड़ गलन रोगों की रोकथाम कर सकते हैं.

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