पोषक तत्वों से भरपूर रामदाना को कौन नहीं जानता है. रामदाना में 12-15 फीसदी प्रोटीन, 6-7 वसा, फीनाल्स- 0.045-0.068 फीसदी एवं एंटीऔक्सीडेंट डीपीपीएच 22.0-270 फीसदी पाया जाता है. इसीलिए शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए रामदाने के दाने से लइया और लड्डू बनाया जाता है, जो खाने में कुरकुरा व बेहद स्वादिष्ठ होता है. इसलिए यह सब के लिए प्यारा खाद्य प्रदार्थ माना जाता है.
रामदाना की खेती दाना प्राप्त करने व पशुओं के लिए चारा प्राप्त करने के लिए की जाती है. इन की खेती रबी व खरीफ दोनों ही सीजन में की जाती है. यह गरम एवं नम जलवायु की फसल है. कम वर्षा वाले क्षेत्रों में रामदाना की खेती भरपूर मात्रा में की जाती है.
रामदाना की खेती के लिए भारत में जम्मूकश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडु, बिहार, गुजरात, पूर्वी उत्तर प्रदेश व बगांल प्रमुख रूप से जाना जाता है. रामदाना की खेती संयुक्त फसल के रूप में भी बेहद सफल रही है.
रामदाना की खेती के लिए दोमट, बलुई दोमट व उचित जलनिकासी वाली मिट्टी ज्यादा उपयुक्त होती है. रामदाना की बोआई करने से पहले खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो से कर के सितंबर माह में पाटा लगा कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए.
बीज का चयन
रामदाना की बोआई के लिए खेत की तैयारी करने के साथ ही उन्नतशील व अधिक उत्पादन वाले बीज का चयन भी कर लेना जरूरी होता है. रबी सीजन की बोआई के लिए रामदाना की 3 उन्नतिशील प्रजातियों खेती के लिए योग्य पाई गई है.
पहली, जीए-1- रामदाना की किस्म 110-115 दिन में पक कर तैयार होती है. पौधे की ऊंचाई 200-200 सैंटीमीटर होती है. इस किस्म की बाली का रंग हरा एवं पीला होता है. उपज 20-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
दूसरी, जीए- 2- रामदाना की किस्म कम समय में पक कर तैयार होती है. इस की फसल तैयार होने में 98-102 दिन का समय लगता है. इस के पौधे 180-190 सैंटीमीटर व उपज 23-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पाई जाती है जबकि तीसरी को तैयार होने में 105-110 दिन का समय लगता है. इस के पौधों की लंबाई 200-205 सैंटीमीटर व उपज 20-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
रामदाना की इन प्रजातियों की बोआई का उपयुक्त समय सितंबर के आखिरी सप्ताह से नवंबर का प्रथम सप्ताह तक होता है.
रामदाना के बीजों की खेत में बोआई करने से पहले बीज की मात्रा एवं उपचार सुनिश्चित वजन 8 ग्राम होता है. इसलिए एक हेक्टेयर में मात्र 1 किलोग्राम बीज ही बोआई के लिये पर्याप्त होता है. बीज को बोआई के पहले 2-2.5 ग्राम थीरम में प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लेना चाहिए.
रामदाना की बोआई विधि
रामदाना की बोआई 2 विधियों से की जाती है. पहली छिटकवां विधि से, जिस में बीज को छिटक कर पाटा चला दिया जाता है. इस विधि में फसल के दानों के कमजोर होने की शंका बनी रहती है. वहीं दूसरी विधि में रामदाना की बोआई लाइन से की जाती है. इस में लाइन से लाइन की दूरी 45 सैंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 15 सैंटीमीटर रखते हैं. इस विधि से रामदाना की फसल अच्छी व दाने मोटे होते हैं.
खाद एवं उर्वरक
रामदाना की बोआई के समय नाइट्रोजन 30 किलोग्राम, फासफोरस 40 किलोग्राम व पोटाश 20 किलोग्राम की मात्रा की आवश्यकता पड़ती है. इस के बाद नाइट्रोजन की 15-15 किलोग्राम मात्रा 2 बार में रामदाना की फसल को देनी चाहिए.
निराईगुड़ाई एवं सिंचाई
रामदाना फसल की सिंचाई जरूरत होने पर अवश्य देनी चाहिए. इस के अलावा फसल में फल आने के पहले हलकी सिंचाई जरूरी होती है. फसल की उचित बढ़वार व अच्छी उपज के लिए बोआई के 20-25 दिन बाद एक बार निराईगुड़ाई आवश्यक होती है. इस के अलावा पौधे की उचित बढ़वार के लिए 2 बार सिंचाई व गुड़ाई करनी चाहिए.
कीट एवं बीमारियों का नियंत्रण
रामदाना की फसल में आमतौर पर कीट व बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है. रामदाना की फसल में ब्लास्ट झोका व ब्लास्ट सड़न का प्रकोप होता है. इस के नियंत्रण के लिए डाइथेन जेड 78 व 0.05 फीसदी बाविस्टीन के घोल का छिड़काव करना चाहिए.
कटाईमड़ाई व भंडारण
प्रगतिशील किसान प्रवींद्र राय का कहना है कि जब रामदाना की पत्तियां व फसल पीली पड़ जाए, तो फसल की कटाई कर उस की मड़ाई कर लें. इस के बाद दानों को 2 घंटे धूप में सुखा कर उस का भंडार किसी शुष्क स्थान पर कर देना चाहिए.