आज से 3-4 दशक पहले की अगर बात करें तो उस समय फसल अवशेषों का किसान पूरा इस्तेमाल करता था. उसे न के बराबर ही खेत में जलाया जाता था. पशु चारे के रूप में भूसे का बहुत इस्तेमाल होता था. लोग भूसे को फसल के समय सस्ते में खरीद कर बेमौसम में महंगा बेचते थे जो उन के लिए रोजगार का जरीया भी था.

मुझे आज भी वह समय याद है जब हमारे खेत में गेहूं की फसल आती थी तो हमारी दादी खेत का काफी भूसा स्टोर कर के रखती थीं और बाद में वही भूसा दुगुनेतिगुने दामों पर लोग खरीद कर ले जाते थे. इसी भूसे में गेहूं की बोरियां भी सहेज कर रख दी जाती थीं. इस गेहूं को भी बाद में महंगे दामों पर बेचा जाता था.

यह तो एक सामान्य उदाहरण दिया गया है. यह काम आज भी किया जा सकता है. हमारे खेतों में बहुत सी जगह बेकार खाली रह जाती है. वहां पर बोगी गाड़ कर भूसे को स्टोर कर सकते हैं.

पिछले कई सालों से भारत दूध उत्पादन के मामले में दुनियाभर में पहले नंबर पर है. जब हमारे यहां अधिक पशु हैं तभी तो हमारा पहला नंबर है तो फिर भूसे को चारे के रूप में स्टोर कर के रखने में हर्ज क्या है.

आज पशुपालकों के सामने सब से बड़ी समस्या चारे की ही होती है. उन्हें महंगा चारा खरीदना पड़ता है. नतीजतन, दूध उत्पादन के समय उन्हें मुनाफा भी कम मिल पाता है. अगर यही भूसा किसान खेतों में न जलाएं तो उन्हें चारे की समस्या से दोचार नहीं होना पड़ेगा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
सब्सक्राइब करें
अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...