बारिश न हो या कम हो, तो सभी किसान परेशान रहते हैं, लेकिन समझदार किसान लगातार तेज बारिश से भी घबराते हैं, क्योंकि इस से मिट्टी का कटाव होता है, जो खेत का आकार तो बिगाड़ता ही है, साथ ही जरूरी पोषक तत्त्वों को भी अपने साथ बहा ले जाता है

फलां जगह की मिट्टी दमदार है या फलां जगह की मिट्टी कमजोर है, यह कहने के पीछे वजह मिट्टी में पोषक तत्त्वों की मौजूदगी रहती है, जिस पर तेज बारिश का खासा असर पड़ता है. उपजाऊ मिट्टियों में पोषक तत्त्व इफरात से पाए जाते हैं, पर इन की खूबी यह होती है कि ये मिट्टी की ऊपरी सतह पर ही रहते हैं. तेज बारिश का पानी इन्हें बहा ले जाता है, तो इस का बुरा असर मिट्टी की क्वालिटी और सेहत पर भी पड़ता है.

बारिश में मिट्टी का कटाव होना तय रहता है, पर यह ज्यादा हो तो खेत का हुलिया तो बिगड़ता ही है, साथ ही साथ पैदावार पर भी बुरा असर पड़ता है.

बारिश के पानी से मिट्टी के कटाव को पूरी तरह तो नहीं रोका जा सकता, लेकिन कुछ उपाय किए जाएं तो इतना कम जरूर किया जा सकता है कि नुकसान न के बराबर हो.

खेतीकिसानी के माहिरों का जोर हमेशा से ही मिट्टी संरक्षण पर रहा है कि कैसे मिट्टी का कटना कम किया जाए और ऐसे तरीके ईजाद किए जाएं, जिन्हें किसान अपने तौर पर अपना सकें.

इस साल भी मानसून कमजोर है और इसे कमजोर मानसून की खूबी कह लें या खामी, पर इस में कुछ दिनों के लिए लगातार और तेज बारिश होती है, जिस का दूरगामी असर मिट्टी की पैदावार की कूवत और खेती की बनावट पर पड़ता है. बहुत ज्यादा तेज बारिश हो, तो खेत

के खेत गायब हो जाते हैं यानी मिट्टी बह जाती है और गड्ढे, नालियां और बीहड़ बन जाते हैं. इस से जमीन ऊबड़खाबड़ हो कर बेकार हो जाती है.

यहां कुछ ऐसे उपाय बताए जा रहे हैं, जिन्हें अपना कर किसान मिट्टी का कटाव रोक सकते हैं :

कंटूर खेती

पहाड़ी इलाकों में जहां बारिश ज्यादा होती है, वहां कंटूर खेती पर जोर दिया जाता है. इस में ढलान के विपरीत यानी नीचे से ऊपर की तरफ कृषि क्रियाएं की जाती हैं. इस में सब से अहम है जुताई. ढलान के ऊपर की तरफ जुताई करते रहने से ढलान कम होता है, जिस से मिट्टी का कटाव कम होता है और उस के पोषक व उपजाऊ तत्त्व ज्यादा तादाद में नहीं बह पाते.

अगर फसलों की खेती न की जानी हो, तो ढलान पर मोटे तने वाले पेड़ या ऐसी घासें लगानी चाहिए, जिन की जड़ें मिट्टी में ज्यादा फैलती हों और मजबूती से मिट्टी से चिपकी रहती हों. इस से मिट्टी का बहाव

और कटाव कम होता है. बीचबीच में एक तयशुदा दूरी पर ब्रेकर भी मेंड़ की शक्ल में बनाए जा सकते हैं, जिस से मिट्टी एकदम नीचे न जाने पाए.

फैलने वाली फसलें

बारिश में मिट्टी का कटाव रोकने का कारगर व सरल तरीका यह?है कि ऐसी फसलों की खेती की जाए, जो ज्यादा जगह घेरती हों यानी फैलती ज्यादा हों, मसलन लोबिया और मूंग. इन की जड़ें, तने व पत्तियां मिट्टी का कटाव कम करते हैं, सीधेसीधे कहें तो मिट्टी और उस के कणों को ज्यादा बहने नहीं देते.

एक सर्वे रिपोर्ट में यह बात मानी भी गई है कि अगर ये फसलें बोई जाएं, तो मिट्टी का कटाव एक हेक्टेयर रकबे से 26 टन के लगभग होता है, जबकि खेत खाली छोड़ दिया जाए

तो यही कटाव 42 टन प्रति हेक्टेयर एक साल में होता है. जाहिर है, किसी भी सूरत में खरीफ की फसल में खेत खाली छोड़ना नुकसानदेह साबित होता है.

माहिरों का मशवरा यह भी है कि ज्यादा जगह घेरने वाली फसलों के साथ क्यारियों में कम जगह घेरने वाली फसलें भी लगाई जाएं, जैसे मूंगफली, उड़द और सोयाबीन के साथ मक्का और अरंडी को लगाया जाए, तो मिट्टी का कटाव कम होता है.

पट्टीदार खेती

इस तरीके में ऐसी फसलें जो घनी होती हैं, बोई जाती हैं. ये मिट्टी का कटाव रोकती हैं. लेकिन ऐसी फसलें जो दूरदूर बोई जाती हैं और मिट्टी का कटाव नहीं रोकतीं, उन्हें संकरी पट्टियों में बोया जाता है.

ये पट्टियां ढाल के आरपार बनाई जाती हैं. इस पट्टीदार खेती की खासीयत यह है कि घनी बोई जाने वाली फसलें मिट्टी का कटाव रोकती हैं, मसलन मूंगफली और मोठ को ज्वार या मक्का के साथ पट्टियां बना कर लगाया जाता है.

घास लगाना

घास हालांकि खरपतवार है, लेकिन मिट्टी का कटाव रोकने के गुण इस में मौजूद हैं. वजह इस की जड़ें और तना है, जो खूब फैलता है. मिट्टी के कणों को घास बांध कर रखती है. मिट्टी का कटाव रोकने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ खास घासें हैं, जैसे अंजन घास, दूब घास, कुशल घास, मूंज घास और ब्लू पेनिक घास.

हालांकि बारिश के पानी से मिट्टी का कटाव रोकने के और भी तरीके हैं, लेकिन वे कारगर इसलिए नहीं हो पाते, क्योंकि वे महंगे पड़ते हैं और छोटी जोत वाले किसान उन्हें आसानी से अपना नहीं सकते. जैसे जगह-जगह मेंड़ें बनाना, नाली और गली बनाना वगैरह, लेकिन वृक्ष रोपण आसान काम है, जिस से भी मिट्टी का कटाव कम किया जा सकता है.

ऐसे इलाकों में जहां फसलें न ली जाती हों, पेड़ लगा कर इस परेशानी को काबू किया जा सकता है. यूकेलिप्टस का पेड़ इस के लिए काफी मुफीद साबित होता है.

रसायनों का इस्तेमाल

कुछ रसायन ऐसे भी हैं, जिन के छिड़काव से मिट्टी का कटाव कम किया जा सकता  है. पाली विनाइल एल्कोहल नाम के रसायन को अगर 500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़का जाए तो मिट्टी के कण आपस में मजबूती से बंध जाते हैं और उस की परत आसानी से टूटती नहीं है.

इसी तरह विटूमिन नाम के रसायन के इस्तेमाल से भी मिट्टी के कण आपस में मजबूती से बंध जाते हैं. वैसे, ये रसायन महंगे पड़ते हैं. लेकिन गोबर की खाद, हरी खाद और फसलों के अवशेषों से भी मिट्टी का कटाव कम किया जा सकता है. इन्हें पूरे खेत में फैला देना चाहिए.

आमतौर पर भारत के किसान इस तरह के तरीके आजमाने से कतराते हैं. इस से लगातार मिट्टियों का कटाव बढ़ रहा है और उन की क्वालिटी भी गिर रही है.

हर जगह खेतों में मिट्टी का कटाव होता देखा जा सकता है, जो अकसर ढाल के आसपास से शुरू होता है और वक्त रहते न रोका जाए तो साल दर साल बढ़ कर पूरे खेत को बहा डालता है, इसलिए किसानों को बारिश में मिट्टी के कटाव को ले कर सावधानी बरतनी चाहिए.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे देश में हर साल 5,337 मिलियन टन यानी प्रति हेक्टेयर 16.35 टन मिट्टी इधर से उधर हो जाती है, जो कतई अच्छी बात नहीं है.

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