टीकमगढ़ : कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़ के डा. बीएस किरार, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख के मार्गदर्शन में केंद्र के वैज्ञानिक डा. सुनील कुमार जाटव, डा. आईडी सिंह एवं बीज प्रमाणीकरण अधिकारी अजय पाटीदार द्वारा ग्राम पठा खास, मोखरा, बडोरा घाट, शिवराजपुर, वीरऊ एवं गोपालपुरा में निरीक्षण किया गया.

केंद्र के वैज्ञानिक डा. सुनील कुमार जाटव द्वारा उड़द फसल का निरीक्षण करते समय किसानों को बताया गया कि रोगिंग क्या होता है, इस से फसल को क्या नुकसान होता है. खड़ी फसल में रोगिंग का मतलब होता है कि अनचाहे पौधों या दोषपूर्ण पौधों को फसल से हटाना. इसे मुख्य रूप से फसल की गुणवत्ता बनाए रखने और रोग या कीट फैलाव को रोकने के लिए किया जाता है.

रोगिंग करने की प्रक्रिया सब से पहले फसल में दोषपूर्ण पौधों, अवांछित किस्मों, रोगग्रस्त पौधों या अन्य अनावश्यक पौधों की पहचान करनी होगी. इस के बाद इन पौधों को जड़ से उखाड़ कर खेत से बाहर निकालें. ध्यान रखें कि हटाए गए पौधे वापस खेत में न गिरें, ताकि वे फिर से जड़ न पकड़ लें.

वैज्ञानिकों ने बताया कि रोगिंग का सब से सही समय तब होता है, जब फसल के पौधे स्पष्ट रूप से पहचाने जा सकते हैं, लेकिन वे परिपक्व नहीं हुए होते. इस से यह सुनिश्चित होगा कि दोषपूर्ण पौधों का प्रभाव न्यूनतम हो.

रोगिंग की प्रक्रिया को एक बार करने के बाद इसे बारबार दोहराना चाहिए, ताकि नए उगे हुए दोषपूर्ण पौधों को भी हटाया जा सके. पौधों को उखाड़ कर हटाना आवश्यक है, ताकि वे किसी भी तरह से वापस खेत में न पहुंच सकें और अन्य पौधों को नुकसान न पहुंचा सकें.

रोगिंग एक महत्वपूर्ण कृषि प्रक्रिया है, जो बीजों की गुणवत्ता को बनाए रखने और उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती है.

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