जबलपुर : धान का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा जिले के किसानों को फसल की देखभाल से संबंधित महत्वपूर्ण सलाह दी है. साथ ही, धान की फसल में लगने वाले विभिन्न रोगों से अवगत कराते हुए उन की रोकथाम के उपायों को भी बताया गया है.

सहायक संचालक, किसान कल्याण एवं कृषि विकास, रवि आम्रवंशी ने बताया कि किसानों को धान की प्रारंभिक अवस्था में 25 से 30 दिनों तक फसल को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए. धान की फसल में फूल निकलते एवं बालियां बनते समय खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखना चाहिए और आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए.

उन्होंने किसानों को एक सिंचाई के बाद खेत का पानी सूखने के 2-3 दिन बाद दूसरी सिंचाई करने की सलाह दी है. साथ ही, किसानों को धान की फसल में नाइट्रोजन की तीसरी और अंतिम मात्रा टौप ड्रैसिंग के रूप में 55 से 60 दिन के बाद बाली बनने की प्रारंभिक अवस्था में देने को कहा है.

उन्होंने अधिक उपज देने वाली उन्नतशील प्रजातियों के लिए 30 किलोग्राम एवं सुगंधित बासमती प्रजातियों के लिए 15 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने की सलाह दी है.

सहायक संचालक, कृषि, ने किसानों को धान की फसल में जीवाणु झुलसा रोग की जानकारी देते हुए बताया कि पौधों की छोटी अवस्था से ले कर परिपक्व अवस्था तक यह रोग धान की फसल में कभी भी देखा जा सकता है. इस रोग में पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू हो कर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं और सूखे पीले पत्तों के साथसाथ आंख के आकार के चकत्ते भी दिखाई देते हैं. जीवाणु झुलसा रोग में संक्रमण की उग्र अवस्था में पूरी पत्ती सूख जाती है.

जीवाणु झुलसा रोग से फसल की सुरक्षा के उपायों की जानकारी देते हुए रवि आम्रवंशी ने बताया कि किसानों को बीज उपचारित करने के बाद ही बोना चाहिए. इस के लिए उन्हें 2.5 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन एवं 25 ग्राम कौपर औक्सीक्लोराइड का प्रति 10 लिटर पानी में घोल बना कर बीजों को घोल में 12 घंटे तक डुबो कर रखना चाहिए. इस के उपरांत बीजों को निकाल कर छांव में सुखाने के बाद ही नर्सरी में बोआई करनी चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि किसानों को नाइट्रोजन उर्वरक का प्रयोग कम करना चाहिए और जिस खेत में रोग लगा हो, उस का पानी दूसरे खेत में नहीं जाने देना चाहिए, ताकि रोग का फैलाव न हो. खेत में जीवाणु झुलसा रोग को फैलने से रोकने के लिए किसानों को समुचित जल निकास की व्यवस्था करनी चाहिए और 75 ग्राम एग्रीमाइसिन एवं 100 -500 ग्राम कौपर औक्सीक्लोराइड को 500 से 600 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से 3-4 बार छिड़काव करना चाहिए.

सहायक संचालक, कृषि, रवि आम्रवंशी के मुताबिक, किसानों को पहला छिड़काव रोग प्रकट होने पर और इस के बाद आवश्यकता के अनुसार 10-10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए. साथ ही, किसानों को रोग प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग ही करना चाहिए. इस के अलावा उन्होंने धान की फसल में लगने वाले अन्य रोगों की जानकारी भी दी.

उन्होंने फाल्स स्मर्ट रोग के बारे में किसानों को बताया कि इस रोग से धान की उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है. रोग ग्रस्त दाने आकार में सामान्य दानों से दोगुने या 4 से 5 गुना बड़े होते हैं. फाल्स स्मर्ट रोग की रोकथाम के लिए किसानों को 12 सौ ग्राम मैनकोजेब या कौपर औक्सीक्लोराइड का 500 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

रवि आम्रवंशी ने भूरा धब्बा रोग की रोकथाम के लिए किसानों को जिंक मैंगनीज कार्बोनेट 75 फीसदी की 2 किलोग्राम मात्रा 800 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने की सलाह दी है.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...