बढ़ती आमदनी और सेहत के प्रति सजग रहने के साथ खानपान में बदलाव आया है. जहां पहले सामान्य खाना खाया जाता था, अब खाने की थाली में सलाद ने भी अपनी जगह बना ली है. सलाद में मुख्य रूप से खीरे का ज्यादा उपयोग किया जाता है. इस की वजह से खीरे की मांग पूरे साल बनी रहती है. यही वजह है कि खीरे के दाम पूरे साल 20 से 30 रुपए प्रति किलोग्राम के आसपास बने रहते हैं.
सामान्य फसलों के मुकाबले खीरे की खेती से तिगुनी आमदनी हासिल कर सकते हैं और अगर खीरे की खेती मचान यानी टे्रलिस तरीके से की जाए तो आमदनी और ज्यादा बढ़ सकती है.
आमतौर पर खीरे की खेती जून या जुलाई माह में शुरू की जाती है, लेकिन अक्तूबर माह में भी इस की बोआई कर सकते हैं, जिस से पूरी सर्दी खीरे की फसल मिलती रहती है. खीरे की खेती के लिए हाईब्रिड लोंग या ह्वाइट लोंग किस्म के बीजों का उपयोग करना चाहिए. बीज बोने से पहले एक एकड़ खेत में तकरीबन 10 टन कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट खाद जरूर डालें, ताकि पौधों को पर्याप्त पोषक तत्त्व मिल सकें और अंकुरण भी ज्यादा से ज्यादा हो सके.
बोआई के तकरीबन 10 दिन बाद जब बीज अंकुरित हो कर पौधों का रूप लेने लगे तो हलकी सिंचाई करें. तकरीबन एक माह बाद फल आने शुरू हो जाते हैं. फल आने से पहले खेत में 10 किलोग्राम नाइट्रोजन, 10 किलोग्राम फास्फोरस और 10 किलोग्राम पोटाश एक एकड़ खेत के हिसाब से डालें. यदि जमीन में पोषक तत्त्वों की कमी है, तो सल्फर का उपयोग कर सकते हैं. सल्फर के उपयोग से फलों का आकार बड़ा होगा और चमकदार नजर आएंगे.
वैसे, बेलदार सब्जी वाली फसलों की खेती के लिए मचान पद्धति अधिक उपयोगी मानी गई है. इस पद्धति के द्वारा फल खराब नहीं होते और सीधे व चमकीले रहने के चलते इन का बाजार में भाव भी ज्यादा मिलता है. साथ ही, मचान खेती पद्धति में रोग लगने की संभावना भी काफी कम होती है और पानी की जरूरत भी सामान्य के मुकाबले तकरीबन 25 फीसदी कम हो जाती है. मचान पद्धति के फल सीधे व चमकीले होने की वजह से बाजार में ज्यादा भाव में बिकते हैं.