जबलपुर : मिट्टी के महत्वपूर्ण जीवों में केंचुआ एक है. केंचुए में मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने की क्षमता होती है, इसलिए ये मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इन्हें किसान का मित्र, खेत का हल चलाने वाला, धरती की आंत, पारिस्थितिक इंजीनियर और जैविक संकेतक के रूप में भी जाना जाता है.

उपसंचालक, किसान कल्याण एवं कृषि विकास रवि आम्रवंशी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि केंचुए किसानों के सच्चे मित्र और सहायक हैं.  उन के मुताबिक, भारत में कई जातियों के केंचुए पाए जाते हैं. इन में से केवल 2 ऐसे हैं, जो आसानी से प्राप्त होते हैं. एक है, फेरिटाइमा और दूसरा है, यूटाइफियस.

फेरिटाइमा पौसथ्यूमा पूरे भारत में मिलता है. फेरिटाइमा की वर्म कास्टिंग मिट्टी की पृथक गोलियों के छोटे ढेर जैसी होती है और यूटाइफियस की कास्टिंग मिट्टी की उठी हुई रेखाओं के समान होती है. इन का मिट्टी खाने का ढंग लाभदायक है. ये भूमि को एक प्रकार से जोत कर किसानों के लिए उपजाऊ बनाते हैं. वर्म कास्टिंग की ऊपरी मिट्टी सूख जाती है, फिर बारीक हो कर भूमि की सतह पर फैल जाती है. इस तरह जहां केंचुए रहते हैं, वहां की मिट्टी पोली हो जाती है, जिस से पानी और हवा भूमि के भीतर सुगमता से प्रवेश कर सकती है. इस प्रकार केंचुए हल के समान काम करते हैं.

उन्होंने बताया कि एक एकड़ में तकरीबन 10,000 से ऊपर केंचुए रहते हैं. ये केंचुए एक वर्ष में 14 से 18 टन यानी 400 से 500 मन मिट्टी भूमि के नीचे से ला कर सतह पर एकत्रित कर देते हैं. इस से भूमि की सतह आधी इंच ऊंची हो जाती है. यह मिट्टी केंचुओं के पाचन अंग से हो कर आती है, इसलिए इस में नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ भी मिल जाते हैं और यह खाद का काम करती है. इस प्रकार ये मनुष्य के लिए भूमि को उपजाऊ बनाते रहते हैं.

उपसंचालक, किसान कल्याण एवं कृषि विकास रवि आम्रवंशी ने कहा कि यदि इन को पूरी तरह से भूमि से हटा दिया जाए तो हमारे लिए समस्या हो जाएगी. यह महत्वपूर्ण है कि मिट्टी में इन छोटे जीवों को किसी भी कीमत पर संरक्षित किया जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ये मानव जाति को अपनी अमूल्य सेवाएं प्रदान करना जारी रखें.

 

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