कहने को तो देश में खेती की बहुतायत है, किसान हमारे अन्नदाता हैं व देश की रीढ़ हैं, लेकिन खेती के असल हालात ठीक इस के उलट हैं इसलिए ज्यादातर किसान परेशानियों से घिरे रहते हैं. फिर भी सरकारें तरहतरह से किसानों को ज्यादा पैदावार लेने के लिए उकसाती रहती हैं. यह बात अलग है कि बहुत से किसानों को अच्छे बीज तक समय पर आसानी से नहीं मुहैया हो पाते हैं.
हालांकि खेती महकमे के अफसर यह दावा करते नहीं थकते कि सरकारी व सहकारी बीज भंडारों पर किसानों को उम्दा क्वालिटी के बीज वाजिब कीमतों पर मुहैया कराए जाते हैं, लेकिन हर इलाके में ऐसे बीज भंडार नहीं हैं. दूसरे, मांग से भी कम होने की वजह से सरकारी बीज छोटे किसानों की पहुंच से अकसर बाहर ही रहते हैं.
जब सरकारी बीज केंद्रों पर बीज बंटने के लिए आता है तो कोई मुनादी नहीं कराई जाती इसलिए ज्यादातर किसानों को कानोंकान खबर तक नहीं होती और बीज बंट कर खत्म भी हो जाते हैं. ज्यादातर सरकारी मुलाजिम निकम्मे व भ्रष्टाचार की कीचड़ में गले तक डूबे हैं.
सरकारी मुलाजिम बीजों की बिक्री में घटतौली व मिलावट वगैरह करने से बाज नहीं आते इसलिए उन से आजिज आ चुके किसान सरकारी बीज केंद्रों पर भरोसा नहीं करते. वे उन से बीज खरीदना भी पसंद नहीं करते. ऐसे बहुत से किसान हैं जिन्हें सरकारी बीजों के मुकाबले आपस में एकदूसरे पर ज्यादा भरोसा रहता है.
कई बार वे अपने आसपास के किसानों या बाजार में निजी दुकानदारों से ही बीज खरीद कर बो देते हैं. हालांकि बीजों की क्वालिटी, कीमत व बिक्री वगैरह के बारे में सरकार ने बहुत से नियमकानून बना रखे हैं, लेकिन बड़ीबड़ी बीज कंपनियां अकसर उन सब को धता बता देती हैं और बीजों के मामले में किसान अकसर ठगे जाते हैं.
बाजार में ज्यादातर बीजों की कीमतें ऊंची होने के चलते किसानों को काफी रकम खर्च करनी पड़ती है. किसानों की दिक्कतें यहीं खत्म नहीं होतीं. कई बार बोया गया बीज नकली या मिलावटी निकल जाता है या बीज अंकुरित ही नहीं होता है और अगर होता भी है तो बहुत कम जमता है. इसलिए किसानों को बहुत सी दिक्कतों का सामना करना होता है.
गन्ना बीज
देश के कुल गन्ना क्षेत्रफल का तकरीबन आधा हिस्सा अकेले उत्तर प्रदेश में आता है. खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर व सहारनपुर वगैरह जिलों में गन्ने की खेती बहुतायत से होती है. इस इलाके में किसान साल में 2 बार गन्ने की बोआई करते हैं. 10 फीसदी सितंबरअक्तूबर में शरदकालीन व बाकी मार्च के आसपास वसंतकालीन में.
सरकार किसानों को बीज मुहैया कराने के कितने ही दावे क्यों न करे, लेकिन ज्यादातर किसानों को समय पर गन्ने की नई किस्मों का अच्छा बीज आसानी से नहीं मिलता. सरकारी शोध केंद्रों से जो थोड़बहुत रस्मअदायगी के लिए गन्ना विकास परिषदों के जरीए किसानों को अलौट किया जाता है, वह कभी पूरा नहीं पड़ता.
गन्ना बीज की मांग ज्यादा होने व सप्लाई कम होने से भी कई बार किसानों को निजी फार्मों से रोगी व खराब बीज भी मजबूरी में लेना पड़ जाता है. इस के अलावा बहुत दूर से लाने की वजह से काफी गन्ना बीज तो रास्ते में ही सूख जाता है इसलिए उस का जमाव अच्छा नहीं होता और उस का खमियाजा किसानों को ही उठाना पड़ता है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना किसानों की सहूलियत के लिए राज्य के 4 हिस्सों में गन्ना बीज और विकास निगम बनाए थे. अफसरशाही, भ्रष्टाचार व बदइंतजामी के चलते ये चारों गन्ना बीज की नर्सरी को बढ़ावा देने की गरज से छूट के तौर पर माली इमदाद देने की सरकारी स्कीम भी हकीकत में कम कागजों पर ही ज्यादा है.
बीज व अनाज में अंतर
बीज का हर दाना अनाज होता है, लेकिन अनाज का हर दाना बीज हो, यह जरूरी नहीं है. दरअसल, वैज्ञानिक तरीके से आधार बीज ले कर तयशुदा तरीकों से उम्दा बीजों का उत्पादन करना आम फसल उगाने से अलग होता है.
माहिरों के मुताबिक, इस विधि में आनुवांशिक नजरिए से बीज का बेहतर और निरोगी होना जरूरी होता है.
हालांकि परंपरागत तरीके से देश में बीजों का उत्पादन सदियों से होता रहा है. यह बात दीगर है कि बिना योजना बनाए व तकनीकी जानकारी के बगैर रहने से इस में बीज की किस्मों से जुड़ी क्वालिटी की कोई जांचपरख नहीं होती. ऐसे बीजों की वंशावली, क्वालिटी व अंकुरण की कूवत पता नहीं लगती इसलिए बोआई करने में जोखिम ज्यादा रहता है.
अकसर मजबूर किसान अपने अड़ोसपड़ोस या एकदूसरे से बीज ले तो लेते हैं, लेकिन इस से बचना चाहिए इसीलिए तरक्कीपसंद किसान हमेशा जांचपरख कर प्रमाणित बीज ही लेते हैं. दरअसल, वैज्ञानिक तरीके से बीज उत्पादन में निरीक्षण व परीक्षण का माकूल इंतजाम रहने से उस की क्वालिटी बनी रहती है.
सरकारी इंतजाम
किसानों के लिए बीजों का इंतजाम व बिक्री वगैरह के लिए राज्यों में एसएससी यानी स्टेट सीड कारपोरेशन, राष्ट्रीय स्तर पर एनएससी यानी नैशनल सीड कारपोरेशन व कृषि विश्वविद्यालय खास काम कर रहे हैं. इस के अलावा बीजों की क्वालिटी की जांचपरख के लिए राज्यों में बीज प्रमाणीकरण बोर्ड भी हैं.
किसानों को हमेशा टैग लगे हुए प्रमाणीकृत बीज खरीदने चाहिए.
राष्ट्रीय बीज निगम : किसानों का सच्चा साथी खेती की तरक्की में उम्दा बीजों का उत्पादन व किसानों को वाजिब कीमत पर आसानी से मुहैया कराने का काम सब से अहम है. यह काम देश में बीते 60 सालों से नैशनल सीड कारपोरेशन कर रहा है.
भारत सरकार के खेती मंत्रालय के तहत साल 1963 से चल रही इस कंपनी को मिनीरत्न होने का तमगा हासिल है. देशभर में इस निगम के 2500 बीज बिक्री केंद्र चल रहे हैं.
बीज संबंधी बुनियादी ढांचों को बढ़ावा देने की गरज से निजी यूनिट लगाने के लिए यह निगम 25 लाख रुपए तक की माली मदद व किसानों को ट्रेनिंग की सहूलियत देता है. खुद बीज पैदा करने वाले किसान इस से फायदा उठा सकते हैं.