बस्ती : खेती में रसायनों के अधिक प्रयोग से अधिक पानी की आवश्यकता होती है, लगातार रासायनिक खाद के उपयोग से उपजाऊ से उपजाऊ भूमि के उपज क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
रासायनिक खाद से उपजे अनाज से मनुष्य के अंदर के कहीं न कहीं धीमा जहर भी पहुंच रहा है. इससे लोग तरह-तरह की बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. अगर स्वस्थ जीवन जीना है, तो प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन करना जरूरी है.
भारत सरकार ने “नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फॉर्मिंग” के अंतर्गत किसानों की आर्थिक हालत में सुधार के लिए कई कदम उठाए जाने का ऐलान किया है, जिसमें जीरो बजट खेती मुख्य बिन्दु है.
जीरो फॉर्मिंग के जरिए कृषि के पारंपरिक और मूलभूत तरीके पर लौटने पर जोर दिया जा रहा है. जीरो बजट फॉर्मिंग में किसान जो भी फसल उगाएंगे उसमें फर्टिलाइजर, कीटनाशकों के स्थान पर प्राकृतिक खेती के तरीकों को अपनाएंगे. इसमें रासायनिक खाद के स्थान पर खरपतवार से बनी देशी खाद, गोबरखाद, गौमूत्र, चने के बेसन, गुड़ और मिट्टी से बनी खाद आदि का इस्तेमाल किया जाता है.
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की अधिकांश आबादी आजीविका के लिए कृषि पर आधारित हैं . कृषि क्षेत्र से ही सबसे ज्यादा रोजगार मिलता हैं .
प्रदेश में किसानों के हित से जुड़ी अनेकों योजनाएं संचालित की जा रही हैं. किसान को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गोवंश आधारित जीरो बजट प्राकृतिक को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे कम लागत में अधिक उत्पादन हो और किसानों की आय बढ़ सके. जीरो बजट की प्राकृतिक खेती किसान की आय दोगुनी करने का सबसे सस्ता माध्यम है. प्रदेश में निराश्रित गोवंश पशुशालाओं को गौ आधारित प्राकृतिक कृषि एवं अन्य गौ उत्पादों को प्रशिक्षण केन्द्र में विकसित किया जा रहा है, जो बुंदेलखण्ड को जीरो बजट खेती के माध्यम से संभव हो सकेगा. प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है.
गोवंश आधारित प्राकृतिक खेती का मुख्य आधार देसी गाय है. गोबर, गौमूत्र और कुछ कृषि उत्पादों को मिलाकर बनने वाले जीवामृत और घनजीवामृत में जमीन को उपजाऊ बनाने और फसल को पोषण देने की पर्याप्त क्षमता होती है. निराश्रित गायों के पालनपोषण के लिए गोपालकों को प्रति माह प्रति गाय 1500 रूपये की सहायता राशि प्रदान की जा रही है. देसी गायों के पालन और उनके गोबर के इस्तेमाल से बेहतर खेती की जा सकती है और काफी पानी बचाया जा सकता है. ऐसे में सूखे का दंश झेलने वाले बुंदेलखण्ड में प्राकृतिक खेती किसी अचंभे से कम नहीं है.
कम खर्च में अधिक पैदावार प्राकृतिक खेती का मुख्य उद्देश्य है. किसानों को महंगे बीज, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की खरीद के चंगुल से मुक्त कराना है. किसान प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग कर खेती कर आत्मनिर्भर हो जायेंगे. कम लागत लगने से खेती करने पर किसानों को अधिक मुनाफा प्राप्त होता है.
सोने पे सुहागा यह है कि इस विधि से जो भी फसल उगाई जाती है वह सेहत के लिए काफी लाभदायक होती है, क्योंकि इसे उगाने के लिए किसी भी तरह के रासायनिक पदार्थाे का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इन्हीं विशेषताओं के कारण योगी सरकार प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित कर रही है.
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र पोषित “नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फॉर्मिंग” के अंतर्गत प्रदेश सरकार ने प्रदेश के 49 जनपदों की 85710 हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती कराने की व्यवस्था की है ,जिसे भारत सरकार ने स्वीकृति सहित धनराशि दे दी है.
राज्य सेक्टर से बुंदेलखण्ड के समस्त जनपदों में 23500 हेक्टेयर क्षेत्र में गौ-आधारित प्राकृतिक खेती कार्यक्रम संचालित करते हुए कार्य शुरू हो गए है.
गंगातट के 1038 ग्राम पंचायतों में व्यापक रूप से प्राकृतिक खेती 27 जिलों, 21 नगर निकाय, 1038 ग्राम पंचायतों और 1648 राजस्व ग्रामों में आयोजित गंगा यात्रा के दौरान प्राकृतिक खेती के प्रति किसानों को विशेष रूप से जागरूक किया गया.
गंगा के तटवर्ती दोनों ओर नमामि गंगे परियोजना के तहत व्यापक रूप से प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है. गंगा किनारे कुल 4909 क्लस्टरों के 92180 हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती कराई जा रही है. पहले चरण में 1038 ग्राम पंचायतों में मास्टर ट्रेनर तैयार किये जा रहे हैं, जो गांवों में जाकर किसानों को गो आधारित खेती का प्रशिक्षण दे रहे हैं.
गंगा किनारे गंगा मैदान, गंगा उद्यान, गंगा वन तथा गंगा तालाब को विकसित किया जा रहा है, जो प्राकृतिक खेती के लिए काफी सहायक होंगे.
कृषि विज्ञान केन्द्रों और विश्वविद्यालयों के माध्यम से न सिर्फ प्राकृतिक कृषि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, बल्कि अधिक से अधिक किसानों को इसके प्रति प्रोत्साहित भी किया जा रहा है. मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक खेती का रकबा बढ़ाना है. प्राकृतिक कृषि उत्पाद मूल्यों का उचित मूल्य मिल सकें, इसके लिए भी सरकार द्वारा व्यापक कार्य किये गये हैं.
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गो आधारित प्राकृतिक खेती के लिए बुंदेलखण्ड के 07 जनपदों के 47 विकासखण्डों में योजना की शुरूआत कर दी है. प्रत्येक ब्लाक में 500 हेक्टेयर क्षेत्र में चरणबद्ध ढंग से विकसित किया जा रहा है. प्रथम चरण में (वर्ष 2022-23 से 2025-26) में 23500 क्लस्टर व दूसरे चरण में (वर्ष 2023-24 से 2026-27) में 235 क्लस्टर कुल 2350 हेक्टेयर भूमि में प्राकृतिक खेती किये जाने का प्राविधान किया गया है. प्रत्येक क्लस्टर 50 हेक्टेयर क्षेत्रफल का होगा.
जनपद स्तर पर समस्त कृषि कर्मी, कृषि वैज्ञानिकों, प्राकृतिक खेती से जुड़े कृषकों को प्रशिक्षण दे रहे है. प्रदेश सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती हेतु किसानों को प्रोत्साहन स्वरूप आवश्यक सहयोग भी दिया जा रहा है.