बहुत समय से अदरक (Zinger) का इस्तेमाल मसाले के रूप में, सागभाजी, सलाद, चटनी और अचार व अलगअलग तरह की भोजन सामग्रियों के बनने के अलावा तमाम तरह की औषधियों के बनाने में होता है. इसे सुखा कर सौंठ भी बनाई जाती है.
मिट्टी व खेत की तैयारी
उचित जल निकास वाली दोमट या रेतीली दोमट भूमि इस की खेती के लिए अच्छी होती है. जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी व समतल कर लेना चाहिए.
बोआई का समय
जहां पर सिंचाई की सुविधा हो, वहां इस की बोआई अप्रैल के मध्य पखवारे से मई महीने तक करनी चाहिए.
किस्में व अवधि
अदरक की उन्नत किस्में सुप्रभा, सुरुचि, सुरभि वगैरह हैं, जो 200 से 225 दिनों में तैयार हो जाती हैं.
बीज की मात्रा व बोने की विधि
एक कट्ठा क्षेत्रफल (125 वर्गमीटर) के लिए तकरीबन 24 से 30 किलोग्राम बीज प्रकंदों की जरूरत होती है, जिन्हें 4 से 5 सैंटीमीटर के टुकड़ों में बांट लेते हैं. हर टुकड़े का भार 25 ग्राम से 30 ग्राम होना चाहिए और उस में 2 आंखें जरूर हों.
बीज प्रकंदों को बोने से पहले 2.5 ग्राम मैंकोजेब और 1 ग्राम बाविस्टीन मिश्रित प्रति लिटर पानी के घोल में आधे घंटे तक डुबोना चाहिए. फिर छाया में सुखाने के बाद इन्हें 4 सैंटीमीटर की गहराई में बोआई कर दें. पंक्तियों की आपसी दूरी 25 सैंटीमीटर से 30 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की आपसी दूरी 15 सैंटीमीटर से 20 सैंटीमीटर रखते हैं. बीज प्रकंदों को मिट्टी से अच्छी तरह ढक देना चाहिए.
बोआई के तुरंत बाद ऊपर से घासफूस, पत्तियों व गोबर की सड़ी हुई खाद से अच्छी तरह ढक देना चाहिए. ऐसा करने से मिट्टी के अंदर नमी बनी रहती है और तेज धूप के चलते अंकुरण पर बुरा असर नहीं पड़ता है.
खाद व उर्वरक
खाद व उर्वरक के इस्तेमाल के लिए मिट्टी की जांच करना बेहद जरूरी है. किसी वजह से मिट्टी की जांच न हो सके, तो उन हालात में गोबर की सड़ी हुई खाद या कंपोस्ट 200-250 किलोग्राम प्रति कट्ठा की दर से जमीन में मिला दें.
रासायनिक उर्वरक यूरिया 1.37 किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 6.25 किलोग्राम व म्यूरेट औफ पोटाश 1.06 किलोग्राम, 250 ग्राम जिंक सल्फेट व 125 ग्राम बोरैक्स रोपाई के समय जमीन में मिला दें. रोपाई के 75 दिन बाद मिट्टी चढ़ाते समय यूरिया 1.37 किलोग्राम देनी चाहिए.
सिंचाई
अदरक की फसल में भूमि में बराबर नमी बनी रहनी चाहिए. पहली सिंचाई बोआई के कुछ दिन बाद ही करते हैं और जब तक बारिश शुरू न हो जाए, 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहते हैं. गरमियों में हर हफ्ते सिंचाई करनी चाहिए.
खरपतवार प्रबंधन
अदरक के खेत को खरपतवाररहित रखने और मिट्टी को भुरभुरी बनाए रखने के लिए जरूरत के मुताबिक निराईगुड़ाई करनी चाहिए.
अदरक की फसल अवधि में 2-3 बार निराईगुड़ाई करना सही होता है. हर गुड़ाई के बाद मिट्टी जरूर चढ़ाएं. पत्तियों का पलवार (ऊपर से ढक) देने से अंकुरण अच्छा होता है और खरपतवार भी कम उगते हैं. 3-4 बार पलवार देने से अच्छी उपज मिलती है.
50-60 किलोग्राम हरी पत्तियों का पलवार बोआई के तुरंत बाद, इतनी ही पत्तियों का पलवार 30 दिन व 60 दिन बाद देते हैं. जब पौधे 20-25 सैंटीमीटर ऊंचे हो जाएं, तो उन पर मिट्टी चढ़ा देते हैं.
खुदाई व उपज
बोआई के तकरीबन 7-8 महीने बाद फसल को खोदा जा सकता है, पर सौंठ के लिए फसल को पूरी तरह से पक जाने पर ही खोदते हैं. फसल के पकने में मौसम और किस्म के मुताबिक 7-8 महीने लगते हैं.
जब पौधों की पत्तियां सूखने लगें, तब प्रकंदों को फावड़े या खुरपी से खोद कर निकाल लेते हैं. प्रति बिस्वा 200-250 किलोग्राम प्रकंद मिल जाते हैं. सूखने पर इस से 20 से 30 किलोग्राम तक सौंठ हासिल होती है.
अंत:फसल
अदरक की अंत:फसल मिर्च व दूसरी फसलों के साथ खासतौर पर सब्जी वाली फसलों में कर सकते हैं. अंतरवर्ती फसल के रूप में बगीचों में जैसे आम, कटहल, अमरूद वगैरह लगा कर ज्यादा आमदनी हासिल की जा सकती है.