भारत में राजस्थान और गुजरात मेथी पैदा करने वाले खास राज्य हैं. 80 फीसदी से ज्यादा मेथी का उत्पादन राजस्थान में होता है. मेथी की फसल मुख्यतया रबी मौसम में की जाती है, लेकिन दक्षिण भारत में इस की खेती बारिश के मौसम में की जाती है. मेथी का उपयोग हरी सब्जी, भोजन, दवा, सौंदर्य प्रसाधन वगैरह में किया जाता है.

Feenugreek
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मेथी के बीज खासतौर पर सब्जी व अचार में मसाले के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं. तमाम बीमारियों के इलाज में भी मेथी का देशी दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है. यदि किसान मेथी की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इस की फसल से अच्छी उपज हासिल की जा सकती है.

 

मेथी की अच्छी बढ़वार और उपज के लिए ठंडी जलवायु की जरूरत होती है. इस फसल में कुछ हद तक पाला सहन करने की कूवत होती है. वातावरण में ज्यादा नमी होने या बादलों के घिरे रहने से सफेद चूर्णी, चैंपा जैसे रोगों का खतरा रहता है.

जमीन का चयन : वैसे तो अच्छे जल निकास वाली और अच्छी पैदावार के लिए सभी तरह की मिट्टी में मेथी की फसल को उगाया जा सकता है, लेकिन दोमट व बलुई दोमट मिट्टी में मेथी की पैदावार अच्छी मिलती है.

खेत की तैयारी : मेथी की फसल के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और बाद में 2-3 जुताइयां देशी हल या हैरो से करनी चाहिए. इस के बाद पाटा लगाने से मिट्टी को बारीक व एकसार करना चाहिए.

बोआई के समय खेत में नमी रहनी चाहिए, ताकि सही अंकुरण हो सके. अगर खेत में दीमक की समस्या हो तो पाटा लगाने से पहले खेत में क्विनालफास (1.5 फीसदी) या मिथाइल पैराथियान (2 फीसदी चूर्ण) 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए.

उन्नत किस्में : मेथी की फसल से अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए उन्नत किस्मों को बोना चाहिए. अच्छी उपज देने वाली कुछ खास किस्में जैसे हिसार सोनाली, हिसार सुवर्णा, हिसार मुक्ता, एएफजी 1, 2 व 3, आरएमटी 1 व 143, राजेंद्र क्रांति, को 1 और पूसा कसूरी, पूसा अर्ली बंचिंग वगैरह खास हैं.

बोआई का उचित समय : आमतौर पर उत्तरी मैदानों में इसे अक्तूबर से नवंबर माह में बोया जाता है. देरी से बोआई करने पर कीट व रोगों का खतरा बढ़ जाता है व पैदावार भी कम मिलती है, जबकि पहाड़ी इलाकों में इस की खेती मार्च से मई माह में की जाती है. दक्षिण भारत, विशेषकर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु में यह फसल रबी व खरीफ दोनों मौसमों में उगाई जाती है.

बीज दर : सामान्य मेथी की खेती के लिए बीज दर 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए. बोआई करने से पहले खराब बीजों को छांट कर अलग निकाल देना चाहिए.

बीजोपचार : बीज को थाइरम या बाविस्टिन 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोने से बीजजनित रोगों से बचा जा सकता है.

मेथी की बोआई से पहले बीजों को सही उपचार देने के बाद राइजोबियम कल्चर द्वारा उपचारित करना फायदेमंद रहता है.

बोआई की विधि : मेथी की बोआई छिटकवां विधि या लाइनों में की जाती है. छिटकवां विधि से बीज को समतल क्यारियों में समान रूप से बिखेर कर उन को हाथ या रेक द्वारा मिट्टी में मिला दिया जाता है.

छिटकवां विधि किसानों द्वारा अपनाई जा रही पुरानी विधि है. इस तरीके से बोआई करने में बीज ज्यादा लगता है और फसल के बीच की जाने वाली निराईगुड़ाई में भी परेशानी होती है.

वहीं, इस के उलट लाइनों में बोआई करना सुविधाजनक रहता है. इस विधि में निराईगुड़ाई और कटाई करने में आसानी रहती है. बोआई 20 से 25 सैंटीमीटर की दूरी पर कतारों में करनी चाहिए. इस में पौधे से पौधे की दूरी 4-5 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

खाद और उर्वरक : खेत में मिट्टी जांच के नतीजों के आधार पर खाद और उर्वरक की मात्रा को तय करना चाहिए. आमतौर पर मेथी की अच्छी पैदावार के लिए बोआई के तकरीबन 3 हफ्ते पहले एक हेक्टेयर खेत में औसतन 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद डाल देनी चाहिए, वहीं सामान्य उर्वरता वाली जमीन के लिए प्रति हेक्टेयर 25 से 35 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 से 25 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश की पूरी मात्रा खेत में बोआई से पहले डाल देनी चाहिए.

सिंचाई प्रबंधन : यदि बोआई की शुरुआती अवस्था में नमी की कमी महसूस हो तो बोआई के तुरंत बाद एक हलकी सिंचाई की जा सकती है वरना पहली सिंचाई 4-6 पत्तियां आने पर ही करें. सर्दी के दिनों में 2 सिंचाइयों का अंतर 15 से 25 दिन (मौसम व मिट्टी के मुताबिक) और गरमी के दिनों में 10 से 15 दिन का अंतर रखना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण : खेत को खरपतार से मुक्त रख कर मेथी की अच्छी फसल लेने के लिए कम से कम 2 निराईगुड़ाई, पहली बोआई के 30 से 35 दिन बाद और दूसरी 60 से 65 दिन बाद जरूर करनी चाहिए, जिस से मिट्टी खुली बनी रहे और उस में हवा अच्छी तरह आजा सके.

खरपतवार की रोकथाम के लिए कैमिकल दवा का छिड़काव बहुत सोचसमझ कर करना चाहिए. अगर जरूरी हो तो किसी कृषि माहिर से सलाह ले कर ही खरपतवारनाशक का इस्तेमाल करें.

रोग व उस की रोकथाम : छाछया रोग मेथी में शुरुआती अवस्था में पत्तियों पर सफेद चूर्णिल पुंज दिखाई पड़ सकते हैं, जो रोग के बढ़ने पर पूरे पौधे को सफेद चूर्ण के आवरण से ढक देते हैं. बीज की उपज और आकार पर इस का बुरा असर पड़ता है.

रोकथाम के लिए बोआई के 60 या 75 दिन बाद नीम आधारित घोल (अजादिरैक्टिन की मात्रा 2 मिलीलिटर प्रति लिटर) पानी के साथ मिला कर छिड़काव करें. जरूरत होने पर 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव किया जा सकता है. चूर्णी फफूंद से संरक्षण के लिए नीम का तेल 10 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के घोल से छिड़काव (पहले कीट प्रकोप दिखने पर और दूसरा 15 दिन के बाद) करें.

मृदुरोमिल फफूंद : मेथी में इस रोग के बढ़ने पर पत्तियां पीली पड़ कर गिरने लगती हैं और पौधे की बढ़वार रुक जाती है. इस रोग में पौधा मर भी सकता है.

इस रोग पर नियंत्रण के लिए किसी भी फफूंदनाशी जैसे फाइटोलान, नीली कौपर या डाईफोलटान के 0.2 फीसदी सांद्रता वाले 400 से 500 लिटर घोल का प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए. जरूरत पड़ने पर 10 से 15 दिन बाद यही छिड़काव दोहराया जा सकता है.

जड़ गलन : यह मेथी का मृदाजनित रोग है. इस रोग में पत्तियां पीली पड़ कर सूखना शुरू होती हैं और आखिर में पूरा पौधा सूख जाता है. फलियां बनने के बाद इन के लक्षण देर से नजर आते हैं. इस से बचाव के लिए बीज को किसी फफूंदनाशी जैसे थाइरम या कैप्टान द्वारा उपचारित कर के बोआई करनी चाहिए. सही फसल चक्र अपनाना, गरमी में जुताई करना वगैरह ऐसे रोग को कम करने में सहायक होते हैं.

फसल कटाई: अक्तूबर माह में बोई गई फसल की 5 बार व नवंबर माह में बोई गई फसल की 4 बार कटाई करें. उस के बाद फसल को बीज के लिए छोड़ देना चाहिए वरना बीज नहीं बनेगा.

मेथी की पहली कटाई बोआई के 30 दिन बाद करें, फिर 15 दिन के अंतराल पर कटाई करते रहें. दाने के लिए उगाई गई मेथी की फसल के पौधों के ऊपर की पत्तियां पीली होने पर बीज के लिए कटाई करें. फल पूरी तरह सूखने पर बीज निकाल कर और सुखा कर साफ कर लें और भंडारण कर लें.

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