हर घर में पसंद की जाने वाली भिंडी को बड़े ही चाव से खाया जाता है. इसे सालभर उगाया जा सकता है. भिंडी को सब्जी की तरह इस्तेमाल में लाया जाता है, लेकिन भिंडी के पौधे का देसी गुड़ बनाने के कारोबार में भी इस्तेमाल किया जाता है. इस की फली से प्रोटीन, कैल्शियम व कई खनिज लवण मिलते हैं.
इसे बड़ी मात्रा में विदेशों में भेजा जाता है. बीमार लोगों के लिए भिंडी बहुत ही फायदेमंद होती है, लेकिन इस के दूसरे भागों जैसे तना वगैरह को कारोबारी तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है.
आबोहवा : बीज जमाव के लिए सही तापमान 17 से 22 डिगरी सैल्सियस है. पौधे की सही बढ़वार के लिए 25-35 डिगरी सैल्सियस तापमान सही माना जाता है.
भिंडी की फसल सूखा व पाला सहन नहीं कर सकती है. तापमान 42 डिगरी सैल्सियस से ऊपर बढ़ने पर इस के फूलों का झड़ना शुरू हो जाता है. भिंडी की बढ़वार के लिए सूरज की रोशनी व गरम दिनों का होना जरूरी है.
उन्नतशील किस्में : पूसा ए 4 प्रभनी क्रांति, आजाद क्रांति वर्षा उपहार, अर्का अनामिका, पंजाब 7, अर्का अभय, हिसार उन्नत.
संकर किस्में : डीवीआर 1, डीवीआर 2, डीवीआर 3.
मिट्टी : हलकी जमीन भिंडी की खेती के लिए सही मानी जाती है. जमीन का पीएच मान 6-7 के बीच होना चाहिए. मिट्टी में खाद की मात्रा भरपूर होनी चाहिए. खेत से पानी निकलने का सही बंदोबस्त होना चाहिए.
जमीन की तैयारी : खेत तैयार करने के लिए 2-3 गहरी जुताई करें. इस के बाद पाटा लगा कर खेत को समतल कर लेना चाहिए. भिंडी की जड़ गहरी होने के कारण जमीन की 25-30 सैंटीमीटर गहरी जुताई करनी चाहिए.
बोआई का समय : फरवरी से मार्च तक बोआई का सही समय होता है. बरसात के मौसम (खरीफ) में जून से जुलाई तक बोआई के लिए सही समय माना गया है.
बीज की मात्रा : गरमी की फसल में 18-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और बारिश के मौसम में 10-12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है.
अंतराल : गरमी की फसल में लाइन से लाइन की दूरी 45 सैंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 30 सैंटीमीटर रखें. बरसात की फसल में लाइन से लाइन की दूरी 60 सैंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 30 सैंटीमीटर रखें.
बोआई का तरीका : भिंडी की मेंड़ के दोनों ओर बराबर से बोआई की जाती है. मेंड़ पर बोआई करने से गरमी में सिंचाई में कम पानी लगता है वहीं दूसरी ओर बरसात में पानी का जमाव नहीं होता है. एकसाथ 2 बीज बोना फायदेमंद होता है ताकि पौधों की तादाद सही रह सके.
बीजों को बोने से पहले 12 घंटे तक पानी में भिगोने से अंकुरण जल्दी हो जाता है. बोआई से पहले 2 ग्राम बावस्टीन प्रति किलोग्राम बीज में मिला कर बीजों का उपचार करें. बोआई के समय खेत में नमी का होना बहुत जरूरी है.
खरपतवार की रोकथाम : बरसात में खरपतवार की समस्या ज्यादा होती है. पहली निराई बोआई के 20-25 दिनों बाद करें, फिर 15 दिनों के अंतराल पर निराई करते रहना चाहिए. बोआई के बाद व जमाव से पहले स्टांप 30 ईसी का 750 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से 4-5 हफ्ते में खरपतवार काबू किए जा सकते हैं.
खाद व उर्वरक : खेत की तैयारी के समय 150 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद खेत में मिला देनी चाहिए. नाइट्रोजन 50 किलोग्राम (108 किलोग्राम यूरिया), फास्फोरस 50 किलोग्राम (312 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट) और पोटाश 50 किलोग्राम (83 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश) आखिरी जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए. 50 किलोग्राम नाइट्रोजन (108 किलोग्राम यूरिया) बोआई के 4 हफ्ते बाद खड़ी फसल में डालें. यदि फसल की बढ़वार ठीक न हो तो 1 फीसदी यूरिया (10 ग्राम प्रति लिटर पानी में) के 2-3 छिड़काव पैदावार बढ़ाने में मदद करते हैं. जब फूल आने लगे तो नाइट्रोजन की 50 किलोग्राम (108 किलोग्राम यूरिया) मात्रा कतारों में देनी चाहिए. मिट्टी के नमूने की जांच करने के बाद पता चल जाता है कि इस में कौनकौन से जरूरी तत्त्व मिलाए जाएं.
सिंचाई : पहली सिंचाई अंकुरण के बाद पहली पत्ती निकलने पर करनी चाहिए, वरना बीज सड़ सकता है. भिंडी में मेंड़ों के बीच मेंड़ के आधे भाग से ज्यादा ऊंचाई पर पानी नहीं देना चाहिए. फल बनने के समय सही नमी रहना जरूरी है, नहीं तो फलों में पकने से पहले ही रेशा बन जाता है, जिस से भिंडी की गुणवत्ता कम हो जाती है. बरसात में पानी निकलने की व्यवस्था होनी चाहिए. गरमी के दिनों में 4-5 दिनों के अंतर पर हलकी सिंचाई करनी चाहिए.
तुड़ाई : भिंडी की फलियों को फूल खिलने के 3-4 दिनों बाद हर तीसरे दिन तोड़ते रहें. भिंडी की नसों में रेशा पड़ने से पहले तुड़ाई जरूर कर लेनी चाहिए. अगेती तुड़ाई में पैदावार भी कम होती है और फली की तुड़ाई के बाद वह जल्दी सड़ने लगती है.
भिंडी की तुड़ाई हाथों पर दस्ताने पहन कर करनी चाहिए और तोड़ी गई भिंडी को कपड़े के थैले में रखना चाहिए, इस से हाथों को होने वाली खुजली से बचाया जा सकता है. फलियों की तुड़ाई सुबह या शाम के समय करनी चाहिए.
तुड़ाई के बाद रखरखाव : भिंडी की फलियों की तुड़ाई उन की नरम अवस्था में कर के छाया में रखें. फलियों की तुड़ाई हर तीसरे दिन करते रहें. अगर बाजार दूर है तो पकने से पहले फली की तुड़ाई करनी चाहिए. तुड़ाई के बाद भिंडी को खरोंच से बचाने के लिए उसे अच्छी तरह से पैक करना चाहिए. तुड़ाई के बाद भिंडी को ठंडी जगह पर रखने से फलियां ज्यादा दिनों तक ताजी बनी रहती हैं.
उपज : गरमी की फसल से 90 से 100 क्विंटल और बरसात की फसल से 150-170 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भिंडी की उपज हासिल होती है.
भिंडी की खेती में कीड़ों की ऐसे करें रोकथाम
तैला या जैसिड : इस के बच्चे व जवान दोनों कीड़े हरे रंग के व छोटे आकार के होते हैं. ये पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियां किनारों से ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं. पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है और बाद में वे सूख जाती हैं.
* कीटनाशी थायोमिथाक्सोम 25 डब्ल्यूपी 100 जी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 125 मिलीलिटर या डायमेथोएट की 1 लिटर मात्रा का 500-600 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
सफेद मक्खी : इस मक्खी का प्रकोप बरसात में ज्यादा होता है. इस के बच्चे और जवान दोनों सफेद रंग के होते हैं. ये कीड़े पत्ती में मोड़क बीमारी फैलाते हैं.
रोकथाम :
* पीले रंग के कार्ड खेत में कई जगह लगाएं.
* नीम का तेल 5 फीसदी (5 मिलीलिटर प्रति लिटर) या 5 किलोग्राम नीम की खली प्रति एकड़ डालें.
* इमिडाक्लोप्रिड 05 मिलीलिटर प्रति 10 लिटर पानी के हिसाब से मिला कर 8-10 दिनों के अंतर पर छिड़काव करें.
फलीबेधक व तनाभेदक : यह कीड़ा फलियों में छेद कर के बीजों को नुकसान पहुंचाता है. फली खाने लायक नहीं रहती है. यह कीड़ा पौधे की आखिरी शिरा में छेद कर देता है, जिस से पौधे का ऊपरी हिस्सा मुरझा जाता है.
रोकथाम :
* कीड़ा लगी शाखा व फल को तोड़ कर हटा दें.
* प्रकाश प्रपंच व फैरोमौन जाल की व्यवस्था करें.
* फसल की शुरू से निगरानी रखें. जैसे ही पौधे पर कीड़े का हमला दिखाई दे तो ट्राइकोकार्ड (ट्राइकोग्राम किलोनिस) नामक परजीवी कीट के 1,00,000 अंडे/प्यूपा प्रति हेक्टेयर की दर से 5-6 बार 15 दिनों के अंतर पर फसल पर छोड़ने चाहिए.
ज्यादा प्रकोप होने पर कीटनाशक लैम्डा सायहेलोथ्रिन 5 ईसी की 800 मिलीलिटर मात्रा या फेंथोएट 50 ईसी की 1 लिटर मात्रा को 500 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें.
जड़ सड़न या डंपिंग औफ : इस बीमारी में पौधा शुरुआत में ही जमीन के पास से सड़ जाता है और गिर कर सूख जाता है. बारिश के मौसम में ज्यादा बुरा असर होता है.
रोकथाम :
* बीजों को बोने से पहले बाविस्टीन या थीरम से उपचारित करें.
* फफूंदनाशक से जमीन को उपचारित करें.
पीला विषाणु रोग : इस बीमारी में पौधे की पत्तियों की नसें पीली पड़ जाती हैं. बाद में पूरी पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और सिकुड़ जाती हैं. यह बीमारी सफेद मक्खी द्वारा फैलाई जाती हैं.
रोकथाम :
* खेत के पास लगे बीमार पौधों को उखाड़ कर दबा दें.
* सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए मेलाथियान 50 ईसी की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लिटर पानी में मिला कर 800 लिटर घोल का प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिनों के अंतर पर छिड़काव करें.
* इमिडाक्लोप्रिड 05 मिलीलिटर प्रति 10 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें.
* रोग के लक्षण दिखते ही बीमार पौधों को खेत से निकाल कर जला दें या कहीं दबा दें.