अदरक की खेती भारत को विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का एक प्रमुख जरीया है. विश्व में उत्पादित अदरक का आधा भाग भारत पूरा करता है. भारत में अदरक की खेती मुख्यत: केरल, ओडिशा, असम, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड जैसे प्रदेशों में मुख्य व्यावसायिक फसल के रूप में की जाती है. देश में अदरक उत्पादन में केरल पहले नंबर पर है.

भूमि : अदरक की खेती बलुई दोमट, जिस में अधिक मात्रा में जीवांश या कार्बनिक पदार्थ हों, सब से ज्यादा उपयुक्त रहती है.

मिट्टी का पीएच मान 5.6 से 6.5 तक होना चाहिए. अदरक की अधिक उपज के लिए अच्छे जल निकास वाली भूमि सब से अच्छी रहती है. एक ही भूमि पर बारबार फसल लेने से भूमिजनित रोग एवं कीटों में वृद्धि होती है, इसलिए फसलचक्र अपनाना चाहिए. उचित जल निकास न होने से कंदों का विकास अच्छे से नहीं होता है.

खेत की तैयारी : मार्चअप्रैल में मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करने के बाद खेत को धूप लगने के लिए छोड़ देते हैं. मई महीने में डिस्क हैरो या रोटावेटर से जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लेते हैं. अनुशंसित मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट और नीम की खली को समान रूप से खेत में डाल कर दोबारा कल्टीवेटर या देशी हल से 2-3 बार आड़ीतिरछी जुताई कर के पाटा चला कर खेत को समतल कर लेना चाहिए.

सिंचाई की सुविधा एवं बोने की विधि के अनुसार तैयार खेत को छोटीछोटी क्यारियों में बांट लेना चाहिए. अंतिम जुताई के समय उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए. शेष उर्वरकों को खड़ी फसल में देने के लिए बचा लेना चाहिए.

बीज कंद की मात्रा : अदरक के कंदों का चयन बीज के लिए 6-8 माह की अवधि वाली फसल में पौधों को चिह्नित कर के काट लेना चाहिए. अच्छे प्रकंद के 2.5-5 सैंटीमीटर लंबे कंद, जिन का वजन 20-25 ×5द्मद्ग तथा जिन में कम से कम 3 गांठें हों, प्रवर्धन के लिए कर लेना चाहिए. बीज उपचार मैंकोजेब फफूंदी से करने के बाद ही प्रवर्धन के लिए उपयोग करना चाहिए.

बोआई का उचित समय : अदरक की बोआई दक्षिण भारत में मानसून फसल के रूप में अप्रैलमई माह में की जाती है, जो दिसंबर में पक जाती है, जबकि मध्य एवं उत्तर भारत में अदरक एक शुष्क क्षेत्र फसल है. इस का अप्रैल से जून माह तक बोआई योग्य समय है.

सब से उपयुक्त समय 15 मई से 30 मई है. 15 जून के बाद बोआई करने पर कंद सड़ने लगते हैं और अंकुरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है. केरल में अप्रैल के प्रथम सप्ताह पर बोआई करने पर उपज 20 फीसदी तक अधिक पाई जाती है. वहीं सिंचाई क्षेत्रों में बोआई की सब से अधिक उपज फरवरी के मध्य बोने से प्राप्त हुई पाई गई और कंदों के जमाने में 80 फीसदी की वृद्धि आंकी गई. पहाड़ी क्षेत्रों में 15 मार्च के आसपास बोआई की जाने वाली अदरक में सब से अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है.

बीज (कंद की मात्रा) अदरक के कंदों का चयन बीज के लिए 6-8 माह की अवधि वाली फसल में पौधों को चिह्नित कर के काट लेना चाहिए, अच्छे प्रकंद के 2.5-5 सैंटीमीटर लंबे कंद, जिन का वजन 20-25 ग्राम और जिन में कम से कम 3 गांठें हों, प्रवर्धन के लिए कर लेना चाहिए.

बीजों का उपचार

प्रकंद बीजों को खेत में बोआई, रोपण एवं भंडारण के समय उपचारित करना आवश्यक है. बीजों को उपचारित करने के लिए मैंकोजेब मैटालैक्जिल या कार्बंडाजिम की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लिटर के पानी के हिसाब से घोल बना कर कंदों को 30 मिनट तक डुबो कर रखें. साथ ही, स्टै्रप्टोसाइक्लिन+प्लांटोमाइसिन भी 5 ग्राम की मात्रा 20 लिटर पानी के हिसाब से मिला लेते हैं, जिस से जीवाणुजनित रोगों की रोकथाम की जा सके.

पानी की मात्रा घोल में उपचारित करते समय कम होने पर उसी अनुपात में मिलाते जाएं और फिर से दवा की मात्रा भी. 4 बार के उपचार करने के बाद फिर से नया घोल बनाएं. उपचारित करने के बाद बीज की थोड़ी देर बाद बोआई करें.

अदरक 20-25 क्विंटल प्रकंद प्रति हेक्टेयर के लिए बीज दर उपयुक्त रहता है और पौधों की संख्या 1,40,000 प्रति हेक्टेयर पर्याप्त मानी जाती है. मैदानी भागों में 15-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीजों की मात्रा का चुनाव किया जा सकता है, क्योंकि अदरक की लागत का 40-46 फीसदी भाग बीज में लग जाता है, इसलिए बीज की मात्रा का चुनाव, प्रजाति, क्षेत्र एवं प्रकंदों के आकार के अनुसार ही करना चाहिए.

बोने की विधि एवं बीज व क्यारी अंतराल

प्रकंदों को 40 सैंटीमीटर के अंतराल पर बोना चाहिए. मेंड़ या कूंड़ विधि से बोआई करनी चाहिए. प्रकंदों को 5 सैंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए. बाद में अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या मिट्टी से ढक देना चाहिए.

यदि रोपण करना है तो कतार से कतार 30 सैंटीमीटर और पौध से पौध 20 सैंटीमीटर पर करें. अदरक की रोपाई 15×15, 20×40 या 25×30 सैंटीमीटर पर भी कर सकते हैं. भूमि की दशा या जलवायु के प्रकार के अनुसार समतल कच्ची क्यारी, मेंड़, नाली आदि विधि से अदरक की बोआई या रोपण किया जाता है.

ऊंची क्यारी विधि : इस विधि में 1×3 मीटर आकार की क्यारियों को जमीन से 20 सैंटीमीटर ऊंची बना कर प्रत्येक क्यारी में 50 सैंटीमीटर चौड़ी नाली जल निकास के लिए बनाई जाती है. बरसात के बाद यही नाली सिंचाई के काम में आती है. इन उथली क्यारियों में 30×20 सैंटीमीटर की दूरी पर 5-6 सैंटीमीटर गहराई पर कंदों की बोआई करते हैं. भारी भूमि के लिए यह विधि अच्छी है.

मेंड़ नाली विधि : इस विधि का प्रयोग सभी प्रकार की भूमियों में किया जा सकता है. तैयार खेत में 60 या 40 सैंटीमीटर की दूरी पर मेंड़ नाली का निर्माण हल या फावड़े से काट कर किया जा सकता है. बीज की गहराई 5-6 सैंटीमीटर रखी जाती है.

रोपण के लिए नर्सरी तैयार करना

यदि पानी की उपलब्धता नहीं या कम है, तो अदरक की नर्सरी तैयार करते हैं. पौधशाला में एक माह अंकुरण के लिए रखा जाता है. अदरक की नर्सरी तैयार करने के लिए उपस्थित बीजों या कंदों को गोबर की सड़ी खाद और रेत (50:50) के मिश्रण से तैयार बीज शैया पर फैला कर उसी मिश्रण से ढक देना चाहिए और सुबहशाम पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए. कंदों के अंकुरित होने एवं जड़ों से जमाव शुरू होने पर उसे मुख्य खेत में मानसून की बारिश के साथ रोपण कर देना चाहिए.

छाया का प्रभाव

अदरक को हलकी छाया देने से खुले में बोई गई अदरक से 25 फीसदी तक अधिक उपज प्राप्त होती है और कंदों की गुणवत्ता में भी उचित वृद्धि पाई गई है.

पलवार

अदरक की फसल में पलवार बिछाना बहुत ही लाभदायक होता है. रोपण के समय इस से भूमि का तापमान एवं नमी का तालमेल बना रहता है, जिस से अंकुरण अच्छा होता है. खरपतवार भी नहीं निकलते और वर्षा होने पर भूमि का क्षरण भी नहीं होने पाता है.

रोपण के तुरंत बाद हरी पत्तियां या लंबी घास पलवार के लिए ढाक, आम, शीशम, केला या गन्ने के ट्रेस का भी उपयोग किया जा सकता है. 10-12 टन या सूखी पत्तियां 5-6 टन प्रति हेक्टेयर बिछानी चाहिए. दोबारा इस की आधी मात्रा को रोपण के 40 दिन और 90 दिन के बाद बिछाते हैं.

पलवार बिछाने के लिए उपलब्धतानुसार गोवर की सड़ी खाद एवं पत्तियां, धान का पुआल प्रयोग किया जा सकता है.

काली पौलिथीन को भी खेत में बिछा कर पलवार का काम लिया जा सकता है. निराईगुड़ाई और मिट्टी चढ़ाने से भी उपज पर अच्छा असर पड़ता है. ये सारे काम एकसाथ करने चाहिए.

गुड़ाई और मिट्टी चढ़ाना

पलवार के कारण खेत में खरपतवार नहीं उगते. अगर उगे हों तो उन्हें निकाल देना चाहिए. दो बार निदाई 4-5 माह बाद करनी चाहिए. साथ ही, मिट्टी भी चढ़ानी चाहिए. जब पौध 20-25 सैंटीमीटर ऊंची हो जाए, तो उन की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है. इस से मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और प्रकंद का आकार बड़ा होता है. भूमि में हवा का आनाजाना अच्छा होता है.

अदरक के कंद बनने लगते हैं, तो जड़ों के पास कुछ कल्ले निकलते हैं. इन्हें खुरपी से काट देना चाहिए, ऐसा करने से कंद बड़े आकार के हो पाते हैं.

पोषक तत्त्व प्रबंधन

अदरक एक लंबी अवधि की फसल है, जिसे अधिक पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है. उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए. खेत तैयार करते समय 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हई गोबर या कंपोस्ट की खाद खेत में समान रूप से फैला कर मिला देना चाहिए. प्रकंद रोपण के समय 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से नीम की खली डालने से प्रकंदलन एवं सूत्रकृमि या भूमिजनित रोगों की समस्या कम हो जाती है.

रासायनिक उर्वरकों की मात्रा को कम कर देना चाहिए. यदि गोबर की खाद या कंपोस्ट डाला गया है, तो संतुलित उर्वरकों की मात्रा 75 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर रखें. इन उर्वरकों को विघटित मात्रा में डालना चाहिए. हर बार उर्वरक डालने के बाद उस के ऊपर मिट्टी में 6 किलोग्राम जिंक प्रति हेक्टेयर (30 किलोग्राम जिंक सल्फेट) डालने से उपज अच्छी प्राप्त होती है.

खुदाई

अदरक की खुदाई लगभग 8-9 महीने रोपण के बाद कर लेना चाहिए. जब पत्तियां धीरेधीरे पीली हो कर सूखने लगें. खुदाई से देरी करने पर प्रकंदों की गुणवत्ता और भंडारण क्षमता में गिरावट आ जाती है और भंडारण के समय प्रकंदों का अंकुरण होने लगता है.

खुदाई कुदाल या फावडे़ की सहायता से की जा सकती है. बहुत शुष्क और नमी वाले वातावरण में खुदाई करने पर उपज को क्षति पहुंचती है, जिस से ऐसे समय में खुदाई नहीं करनी चाहिए. खुदाई करने के बाद प्रकंदों से पत्तियों और अदरक में लगी मिट्टी को साफ कर देना चाहिए.

यदि अदरक का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाना है, तो खुदाई रोपण के 6 महीने के अंदर किया जाना चाहिए. प्रकंदों को पानी से धो कर एक दिन तक धूप में सुखा लेना चाहिए. सूखी अदरक के प्रयोग के लिए बोआई के 8 महीने बाद खुदाई की जानी चाहिए. 6-7 घंटे तक पानी में डुबो कर रखें, इस के बाद नारियल के रेशे या मुलायम ब्रश आदि से रगड़ कर साफ कर लेना चाहिए.

धुलाई के बाद अदरक को सोडियम हाईड्रोक्लोरोइड के 100 पीपीएम के घोल में 10 मिनट के लिए डुबोना चाहिए, जिस से सूक्ष्म जीवों के आक्रमण से बचाव के साथसाथ भंडारण क्षमता भी बढ़ती है.

भंडारण

ताजा उत्पाद बनाने और उस का भंडारण करने के लिए जब अदरक कड़ी, कम कड़वाहट और कम रेशे वाली हो, यह अवस्था परिपक्व होने के पहले आती है. सूखे मसाले और तेल के लिए अदरक को पूर्ण परिपक्व होने पर खुदाई करनी चाहिए. अगर परिपक्व अवस्था के बाद कंदों को भूमि में पड़ा रहने दें तो उस में तेल की मात्रा और तीखापन कम हो जाएगा और रेशों की अधिकता हो जाएगी. तेल एवं सौंठ बनाने के लिए 150-170 दिन के बाद भूमि से खोद लेना चाहिए.

अदरक की परिपक्वता का समय भूमि की प्रजातियों पर निर्भर करता है. गरमियों में ताजा प्रयोग के लिए 5 महीने में, भंडारण के लिए 5-7 महीने में सूखे, तेल प्रयोग के लिए 8-9 महीने में बोआई के बाद खोद लेना चाहिए.

बीजों के उपयोग के लिए जब तक ऊपरी भाग पत्तियों सहित पूरा न सूख जाए, तब तक भूमि से नहीं खोदना चाहिए, क्योंकि सूखी हुई पत्तियां एक तरह से पलवार का काम करती हैं अथवा भूमि से निकाल कर कवकनाशी एवं कीटनाशियों से उपचारित कर के छाया में सुखा कर एक गड्डे में दबा कर ऊपर से बालू से ढक देना चाहिए.

उपज

ताजा हरी अदरक के रूप में 100-150 क्विंटल उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है, जो सुखाने के बाद 20-25 क्विंटल तक आ जाती है. उन्नत किस्मों के प्रयोग एवं अच्छे प्रबंधन द्वारा औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है. इस के लिए अदरक को खेत में 3-4 सप्ताह तक अधिक छोड़ना पड़ता है, जिस से कंदों की ऊपरी परत पक जाती है और मोटी भी हो जाती है.

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