करेला, तुरई, लौकी वगैरह बेल वाली सब्जियों की खेती मैदानी इलाकों में फरवरीमार्च और जूनजुलाई में की जाती है. पौलीहाउस तकनीक से सर्दियों के मौसम में इन सब्जियों की नर्सरी तैयार कर के इन की अगेती खेती की जा सकती है.
इन बेल वाली सब्जियों की पौध नर्सरी में तैयार की जाती है और फिर जड़ों को बिना नुकसान पहुंचाए खेत में रोप दिया जाता है. इस तकनीक में खर्च कम और मुनाफा अच्छा होता है.
परंपरागत खेती की तुलना में बेल वाली सब्जियां कम समय लेती हैं. इस से किसानों को मनमाफिक कीमतें मिलने की उम्मीद बढ़ जाती है और वे इन्हें मंडियों में जल्दी पहुंचा सकते हैं.
जिस सीजन में सब्जियों की कमी आ जाती है, उस दौरान भी किसान इन्हें कोल्ड स्टोरेज से निकाल कर बेच सकते हैं.
बेल वाली सब्जियों पर इन कीड़ों का हमला ज्यादा होता है:
सफेद मक्खी : इस कीट के शिशुओं द्वारा रस चूसने से पत्ते पीले पड़ जाते हैं. इन के मधुबिंदु पर काली फफूंद आने पर पौधों की भोजन बनाने की कूवत कम हो जाती है.
ऐसे करें रोकथाम : इंडोसल्फान 35 ईसी 2 मिलीलिटर प्रति लिटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 1 मिलीलिटर प्रति 3 लिटर या डाइमिथिएट 30 ईसी 2 मिलीलिटर प्रति लिटर का छिड़काव करने से इस कीट हमला रोका जा सकता है.
इस के अलावा नीम बीज का अर्क 5 फीसदी या बीटी 1 ग्राम प्रति लिटर या इंडोसल्फान 35 ईसी 2 मिलीलिटर प्रति लिटर या कार्बारिल 50 डब्ल्यूपी 2 मिलीलिटर प्रति लिटर या स्पिनोसेड 45 एससी 1 मिलीलिटर प्रति लिटर का छिड़काव कर कीट हमलों से बचा जा सकता है.
खाद : बेल वाली सब्जियों में खेत की तैयारी के समय 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद, 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है.
बोआई : खेत में तकरीबन 45 सैंटीमीटर चौड़ी व 30 से 40 सैंटीमीटर गहरी नालियां बना लेते हैं. एक नाली से दूसरी नाली की दूरी फसल की बेल की बढ़वार के मुताबिक 1.5 से 5 मीटर तक रखें.
बोआई करने से पहले नालियों में पानी लगा देते हैं. जब नाली में नमी की मात्रा बीज बोआई के लिए सही हो जाए तो बोआई की जगह पर मिट्टी भुरभुरी कर के 0.05 से 1.0 मीटर की दूरी पर बीज बोएं.
बोआई का समय : इस की बोआई फरवरीमार्च में करते हैं और बारिश के मौसम में यानी जून के अंत से जुलाई के पहले या दूसरे सप्ताह में करते हैं.
सिंचाई : समयसमय पर फसल की सिंचाई करें ताकि फसल की सेहत अच्छी रहे. सिंचाई व निराईगुड़ाई का काम नालियों में ही करें.
बीज की दर : लौकी 4 से 5 किलोग्राम, करेला 6 से 7 किलोग्राम, कद्दू 3 से 4 किलोग्राम, तुरई 5 किलोग्राम, चप्पन कद्दू 5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है.
उपज : लौकी 250 से 420 क्विंटल, करेला 75 से 120 क्विंटल, कद्दू 250 से 500 क्विंटल, तुरई 100 से 130 क्विंटल, चप्पन कद्दू 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिलने की संभावना रहती है.
किस्में व संकर प्रजातियां
लौकी : पूसा नवीन, पूसा संदेश, पूसा संतुष्टि, पूसा समृद्धि, पीएसपीएल और पूसा हाईब्रिड 3.
करेला : पूसा 2 मौसमी, पूसा विशेष, पूसा हाईब्रिड 1 और पूसा हाईब्रिड 2.
तुरई : पूसा सुप्रिया, पूसा स्नेहा, पूसा चिकनी, पूसा नसदार, सतपुतिया, पूसा नूतन और को 1.
चप्पन कद्दू : आस्ट्रेलियन ग्रीन, पैटी पेन, अर्ली यैलो, पूसा अलंकार व प्रोलिफिक.
कद्दू : पूसा विश्वास, पूसा विकास, अर्का चंदन व पूसा हाईब्रिड 1.