आजकल लोग खानपान व स्वास्थ्य को ले कर काफी सजग रहने लगे हैं, इसलिए बाजार में मिलने वाली रसायनयुक्त सागसब्जियों से बचने के लिए लोग घरों के किचन गार्डन में सब्जियां और फलफूल उगाते रहते हैं. इस के दो फायदे हैं. एक तो पैसे की बचत होती है, वहीं दूसरा फायदा यह है कि ताजी व रसायनमुक्त सागसब्जियों की उपलब्धता हनेशा रहती है.
बाजार में स्वास्थ्य के नजरिए से मुफीद अनाजों, फलों और सागसब्जियों की डिमांड काफी बढ़ी है. लोगों में बढ़ रही बीमारियों की रोकथाम में ऐसी तमाम सागसब्जियां हैं, जिस का अगर नियमित रूप से सेवन किया जाए, तो होने वाली जानलेवा व गंभीर बीमारियों की चपेट में आने की संभावना काफी कम हो जाती है.
ऐसी ही बेल वाली बहुवर्षीय साग का नाम है पोई. इसे अलगअलग प्रदेशों में अलगअलग नामों से भी जाना जाता है. इस का अंगरेजी नाम मालाबार स्पीनेच है, जबकि इसे बंगाली में पुई, हिंदी भाषी राज्यों में पोई और कन्नड़ में बेसल सोप्पू के नाम से जाना जाता है.
डायटिशियन डा. राम भजन गुप्ता के अनुसार, पोई साग में अन्य साग की अपेक्षा कई गुना ज्यादा पोषक तत्व होते हैं. इस में विटामिन ए, बी और सी की प्रचुर मात्रा पाई जाती है. साथ ही, पोई में दूसरे सागों की तुलना में कई गुना ज्यादा आयरन पाया जाता है.
पोई साग की 100 ग्राम मात्रा में 10 मिलीग्राम आयरन, 87 मिलीग्राम कैल्शियम और 35 मिलीग्राम फास्फोरस पाया जाता है.
डा. राम भजन गुप्ता के अनुसार, पोई साग का अगर नियमित रूप से सेवन किया जाए, तो हार्ट की बीमारी की संभावना बहुत कम होती है. साग के रूप में इस का उपयोग करने से आंत के कैंसर से बचाव होता है. वहीं पोई स्किन को सुरक्षित रखता है.
पोई में पाया जाने वाला डायटरी फाइबर कब्ज से बचाता है, वहीं इस का उपयोग कोलेस्ट्राल लेवल को कम करने के साथ ही रक्त में थक्का बनने से रोकता है.
पोई का साग उपयोग करने वालों को नींद अच्छी आती है. विदेशों में पोई के साग की काफी मांग है. पोई का उपयोग पकौड़े बनाने में भी किया जाता है, जो खाने में बेहद लजीज होता है.
पोई का उपयोग : डा. राम भजन गुप्ता के मुताबिक, पोई की पत्तियों से साग, पकौड़े, सलाद, और सूप जैसे पकवान तैयार किए जाते हैं. पोई से घरों को सजाने के लिए इंडोर पौध के रूप में सजावट के लिए भी उपयोग किया जाता.
वैसे तो पोई का पौधा बारिश के मौसम में अपनेआप उग आता है. इस के तने का रंग लाल और पत्तियां हरे रंग की होती हैं. इस के पत्ते दिल के आकार के मोटे होते हैं. इस की 2 किस्में अधिक पाई जाती हैं, पहली लाल और दूसरी हरी.
खेती करने योग्य मिट्टी
कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के वैज्ञानिक (कृषि प्रसार) राघवेंद्र विक्रम सिंह का कहना है कि पोई की रोपाई के लिए जीवांशयुक्त दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अच्छी होती है. पोई की रोपाई अगर खेतों में करनी है, तो खेत की अच्छी तरह से जुताई कर मिट्टी में सड़े गोबर की खाद, नाडेप या वर्मी कंपोस्ट को मिला देना उपयुक्त होता है. किचन गार्डन में रोपाई के लिए गमलों में गोबर की खाद मिली मिट्टी भर दें और उस में पानी डाल कर उपयुक्त नमी बना लें. जब मिट्टी भुरभुरी हो जाए, तो उचित नमी रहते हुए इस में पोई की रोपाई कर दें.
रोपाई का उचित समय : यह बहुवर्षीय फसल के रूप में उगाया जाता है. इसे एक बार रोपने के बाद कई वर्षों तक इस से साग योग्य पत्तियां प्राप्त की जा सकती हैं. जहां तक इस की रोपाई के उचित समय का सवाल है, तो फरवरी से ले कर जुलाई माह तक का समय सब से मुफीद होता है. वैसे, इसे पूरे साल कभी भी रोपा जा सकता है. सर्दी के मौसम में बीज से पौध उगने में समय लगता है.
रोपाई की विधि : इस की रोपाई 2 विधियों से की जाती है. पहली कटिंग विधि से और दूसरी बीजों द्वारा. बीज को गमलों या जमीन में बोने के लिए 2 से 3 बीज एकसाथ मिट्टी में डालने चाहिए. बीज को 1 से 2 इंच की गहराई में डालें. अगर इसे कटिंग विधि से रोपा जाना है, तो बेल को 14 इंच की लंबाई में टुकड़ेटुकड़े काट कर मिट्टी में 5 इंच की गहराई में गाड़ दें. अगर पोई को सीधे ही जमीन पर रोपा जाना है, तो न्यूनतम पौध से पौध की दूरी 30 सैंटीमीटर और लाइन से लाइन की 75 सैंटीमीटर न्यूनतम दूरी रखें. बीज से रोपे गए पौधे एक से दो सप्ताह में और कटिंग विधि से रोपे गए पौधे 10 से 20 दिन में उग आते हैं.
चूंकि यह बेल वाली पौध है, इसलिए इस के लिए मचान या बाड़ लगा कर बेलों को उस के ऊपर फैलने दें. इस के पौधे 10-20 फुट तक लंबे होते हैं.
सिंचाई और उर्वरक : 15 दिनों के अंतराल पर पोई की फसल को पानी देते रहना चाहिए. गरमियों में 5 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. पोई के पौधों में कैमिकल खाद का उपयोग करने से बचना चाहिए. इस के प्रत्येक पौधों में प्रत्येक 3 माह पर 500 ग्राम गोबर, नाडेप या वर्मी खाद का उपयोग करें.
कीट और रोग नियंत्रण : इस के पौधों में आमतौर पर किसी तरह की बीमारियों और कीटों का प्रकोप नहीं होता है. लेकिन कभीकभी एक परजीवी के कारण पत्तियों पर लाल धब्बे से बन जाते हैं. इस रोग का प्रकोप दिखने पर रोगग्रस्त पत्तियों को तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.
उपज : पोई के पौधों से प्रत्येक सप्ताह पत्तियों की तुड़ाई करते रहना चाहिए. पोई की फसल से एक वर्ष में 10 वर्गमीटर में लगभग 40-60 किलोग्राम पत्तियां प्राप्त होती हैं, जिस का आम बाजार रेट 50 से 100 रुपया किलोग्राम है.