पुदीना यानी मेंथा का नाम जेहन में आते ही चटपटी चटनी, जलजीरा का स्वाद मुंह में आ जाता है, पर यह पौधा इस से बहुत ज्यादा गुणकारी है और किसानों को आदमदनी देने वाला भी है. जापानी पुदीने को ही मेंथा या मिंट के नाम से जानते हैं. मेंथा के समूह में कई प्रजातियां शामिल हैं, जिन में से एक जापानी पुदीना भी है.

मौजूदा समय में जापानी पुदीना के उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है और चीन पहले नंबर पर आता है.

मेंथा से हासिल तेल व दूसरे पदार्थ से भारत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपना कब्जा व दबदबा बनाए रखने की ओर बढ़ रहा है. हमारे देश में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा इस के खास उत्पादक राज्य हैं. बिहार में भी मेंथा की खेती शुरू हो चुकी है.

बिहार में बढ़ती हुई सुगंधित फसलों में मेंथा की खेती बड़े पैमाने पर अपनाई जा रही है, जिस से किसानों को अच्छा फायदा भी हो रहा है.

रबी फसल के बाद बाकी बचे खाली समय में खेतों में मेंथा की फसल उगाई जा रही है. इस तरह किसानों को रबी फसल के बाद अलग से आमदनी हासिल करने का अच्छा मौका मिल रहा है. उपजाऊ खेत, सामान्य मौसम, अच्छी सहूलियतों के चलते बिहार में मेंथा की खेती की काफी अधिक गुंजाइश है. कम कैमिकल खाद व कीटनाशकों का इस्तेमाल करना मेंथा की कारोबारी खेती के लिए अच्छा माना जाता है.

हालांकि, बिहार में सुगंधित पौधों की खेती अभी शुरुआती दौर में है, फिर भी पिछले कुछ सालों में मेंथा की कारोबारी खेती कई जिलों में बड़े पैमाने पर की जा रही है.

खेत में मेंथा की फसल एक साल तक रहती है. एक साल के दौरान इस की 2 से 3 फसलें ली जाती हैं.

आबोहवा : मेंथा की खेती के लिए दिन का तापमान 30 डिगरी सैंटीग्रेड व रात का तापमान 18 डिगरी सैंटीग्रेड होना चाहिए. बारिश की कमी के दौरान फसल की सिंचाई नहर या ट्यूबवैल से करनी चाहिए. इस की खेती के लिए बिहार की आबोहवा एकदम माकूल है.

कैसा हो खेत : समतल व पानी की निकासी वाले खेत, जिन की मिट्टी बलुई दोमट हो और उस में अच्छी मात्रा में जीवांश मौजूद हों, मिट्टी का पीएच मान 6 से साढ़े 7 के बीच हो, ऐसे खेत जापानी पुदीना की खेती के लिए अच्छे माने जाते हैं.

अच्छी पैदावार के लिए पोषक तत्त्व अलग से देना भी जरूरी होता है. भारी व चिकनी मिट्टी में इन पौधों के विकास में परेशानी होती है. आलू उगाए जाने वाले खेतों में मेंथा की काफी अच्छी बढ़त होती है.

किस्में : मेंथा की उन्नतशील किस्में कोसी, हिमालय, कुशल, गोमती, शिवालिक वगैरह हैं. इन किस्मों में कुशल किस्म तेजी से बढ़ती है और इस का उत्पादन भी दूसरी किस्मों के मुकाबले दोगुना होता है.

मेंथा की फसल में काफी ज्यादा सकर्स का उत्पादन होता है. पहले साल में अगर एक क्विंटल सकर्स लगाएं, तो अगले साल इस से 50 गुना ज्यादा सकर्स तैयार हो जाते हैं.

इस तरह अगली फसल के लिए सकर्स खेत में तैयार हो जाता है. यही वजह है कि ज्यादातर किसान चाह कर भी फसल की पुरानी किस्म नहीं बदल पाते और मेंथा की फसल से भरपूर पैदावार हासिल नहीं कर पाते.

Farmingफसल लगाना : मेंथा के नए पौधे पुराने पौधे की जड़ से तैयार किए जाते हैं, जिसे सकर्स कहते हैं. 5 से 7 सैंटीमीटर लंबा सकर्स 4-5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से जरूरी होता है. हर सकर्स के टुकड़े में कम से कम एक आंख होनी चाहिए. अच्छे सकर्स रसीले और सफेद होते हैं. सकर्स पर किसी भी बीमारी का असर नहीं होना चाहिए. पहले से लगाई गई फसल को उखाड़ कर उस के निचले हिस्से से सकर्स हासिल करते हैं.

एक एकड़ खेत के लिए जापानी पुदीना की तकरीबन एक क्विंटल सकर्स की जरूरत होती है. सकर्स की कीमत 10 रुपए प्रति किलोग्राम से ले कर 25 रुपए प्रति किलोग्राम तक हो सकती है.

बिजाई का समय : वैसे तो जापानी पुदीना की बिजाई ज्यादा ठंड को छोड़ कर कभी भी की जा सकती है, लेकिन इस का सही समय, जब सर्दी का मौसम खत्म हो रहा हो और गरमी का मौसम शुरू हो रहा हो, होता है. मैदानी इलाकों और बिहार में मध्य जनवरी से मध्य फरवरी माह तक का समय इस की बोआई के लिए सब से अच्छा है.

जिन इलाकों में रबी की फसल लगाई गई हो, वहां उस की कटाई के बाद 30 मार्च तक जापानी पुदीना की बोआई की जा सकती है.

खेत की तैयारी : मिट्टी पलटने वाले हल से 2-3 बार अच्छी जुताई कर के मिट्टी भुरभुरी कर लें. आखिरी जुताई से पहले 15 से 20 टन गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट डाल कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें.

दीमक से बचाव के लिए 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से नीम की खली मिट्टी में मिलाई जाती है. खेत की तैयारी के बाद खेत को छोटीछोटी क्यारियों में बांट दें, ताकि सिंचाई में आसानी रहे.

मेंथा फसल में खरपतवार काफी उगते हैं. इन खरपतवारों से निबटने के लिए बिजाई से पहले खरपतवारनाशकों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे औक्सीफ्लुरोफेन 400  मिलीलिटर मात्रा 20 किलोग्राम रेत में मिला कर खेत में छिड़की जा सकती है. जापानी पुदीना में किसी भी कैमिकल उर्वरक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

बोआई का तरीका : पुदीना की बोआई 2 तरीके, नर्सरी द्वारा व मुख्य खेत में सीधे बोआई कर के की जाती है.

नर्सरी द्वारा : सब से पहले 5×10 फुट की क्यारियां बनाते हैं. क्यारियों के किनारे को एक फुट ऊंचा रखते हैं. हर क्यारी में 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद डाल कर अच्छी तरह जोत कर मिट्टी भुरभुरी बना लें. तैयार क्यारियों को धान की क्यारी की तरह पानी से भर दें व पुदीना की कटी हुई सकर्स यानी जड़ों को नर्सरी में बिखेर दें.

सकर्स को बिखेरने से पहले उन्हें साफ कर के रातभर गाय के पेशाब में डुबो कर रखते हैं या कार्बंडाजिम दवा से उन का उपचार किया जा सकता है.

2-3 दिन के अंतर पर हलकी सिंचाई करते हैं. सिंचाई फव्वारे या स्प्रिंकलर से करें. एक से डेढ़ हफ्ते के अंदर सकर्स उगने शुरू हो जाते हैं. 40-45 दिन के बाद जब 4-5 पत्ते आ जाते हैं, तब पौधों को नर्सरी से उखाड़ कर खेत में रोप दिया जाता है.

तैयार किए गए खेत में रात में एक बार पानी खुला छोड़ देते हैं, ताकि सुबह तक खेत अच्छी तरह गीला हो जाए. इस से यह सहूलियत होती है कि केवल हाथ की उंगलियों के दबाव से ही पौध को खेत में रोपा जा सकता है.

पौध को 20 से 35 सैंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए. इस तरीके से बोआई करने पर तकरीबन 75 से 100 किलोग्राम सकर्स की जरूरत होती है. इस तरह से सकर्स की मात्रा कम लगती है और खर्चा भी कम आता है.

खेत में सीधे बोआई : इस की नर्सरी में पौधों को तैयार करने की जरूरत नहीं होती. सकर्स की सीधे खेत में रोपाई कर दी जाती है.

खेत को तैयार कर लेने के बाद देशी हल से मक्का की बोआई की तरह सकर्स की सीधे कूंड़ में बोआई की जाती है. बोआई के बाद हलकी सिंचाई करें.

यह तरीका ज्यादा सही नहीं है, क्योंकि एक तो फसल उगने के साथ ही खरपतवार भी उग आते हैं, जिन की रोकथाम में काफी खर्चा आता है. दूसरा, खेत में ज्यादा खाली जगह रह जाने की संभावना होती है, क्योंकि कुछ सकर्स से पौधे नहीं बन पाते हैं.

इस तरीके से बोआई के लिए 1 से 2 क्विंटल सकर्स की रोपाई वैसे ही करते हैं, जैसे धान की रोपाई करते हैं, पर खेत को केवल गीला रखते हैं. पानी लगा कर बोआई करने से फायदा यह रहता है कि सकर्स का उगाव ज्यादा होता है और खेत खाली नहीं रहता है. पौधों को 60×45 सैंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाना ठीक रहता है.

सिंचाई : मेंथा की अच्छी पैदावार के लिए सिंचाई की जरूरत होती है. जहां सिंचाई की सहूलियत न हो, वहां मेंथा न लगाएं. खेत में हमेशा नमी बनाए रखने की जरूरत होती है, इसलिए जल्द व हलकी सिंचाई बहुत जरूरी है.

मार्च महीने में 10-15 दिन के अंतर पर, अप्रैल से जून महीने में 6-7 दिन के अंतर पर और सर्दियों में 20-25 दिन पर हलकी सिंचाई करते रहना चाहिए.

ड्रिप तकनीक से सिंचाई करने से समय के साथसाथ पानी की भी बचत होती है. फसल की हर कटाई के बाद सिंचाई जरूर करें. खेत में नमी की कमी होने पर फसल की बढ़वार रुक सकती है.

खाद : आमतौर पर 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फासफोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर सालाना देना चाहिए. फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा व नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा सकर्स रोपाई के पहले दें.

नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा हर कटाई के बाद 2-3 बार में देनी चाहिए. अगर खेत की तैयारी के समय 15-20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट डाली गई हो, तो उर्वरकों की अलग से मात्रा देने की जरूरत नहीं होती है.

खरपतवार : खरपतवार पुदीना की बढ़वार को तो रोकते ही हैं. साथ ही, पुदीना के तेल में बदबू पैदा कर उस की क्वालिटी को भी खराब करते हैं. खरपतवार की उचित रोकथाम निराईगुड़ाई द्वारा व दवा के इस्तेमाल से की जा सकती है.

खरपतवार की रोकथाम करने के लिए कारमेक्स 80 डब्ल्यूपी (डाइयरान) 700 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लिटर पानी में घोल कर फसल के जमाव के पहले छिड़काव करें और फिर 30-40 दिन बाद हाथ से निराई करें. इस तरह दूसरी कटाई के एक महीने बाद हाथ से ही एक और निराईगुड़ाई कर दें.

बीमारी व कीट : मेंथा को नुकसान पहुंचाने वाले कीट सैमीलूपर, सूंड़ी, रोएंदार सूंड़ी व जालीदार कीट हैं. इन में सब से ज्यादा नुकसान रोएंदार सूंड़ी से होता है. यह पत्तों को खा कर उन्हें जालीदार बना देती है.

इस की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान या क्विनालफास की 400-500 मिलीलिटर का घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. सैमीलूपर सूंड़ी व जालीदार कीट की रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ईसी का 300-400 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

कभीकभी इस फसल पर सूत्रकृमियों का भी हमला हो जाता है, जिस से सकर्स में गांठें बन जाती हैं, जड़ें फूल जाती हैं और जड़ों पर लाललाल धारियां बन जाती हैं. पौधा पीला व बौना हो जाता है.

इस की रोकथाम के लिए खेत की तैयारी के समय ही 5-7 क्विंटल नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दें.

फसल चक्र : मेंथा को चावल, गेहूं, सरसों, हलदी, आलू वगैरह के साथ फसल चक्र बना कर लगाने की सलाह दी जाती है. जैसे धान के बाद आलू और आलू के बाद पुदीना, धान के बाद पुदीना, धान के बाद सरसों और फिर पुदीना वगैरह फसल चक्र अपनाएं.

कटाई : मेंथा सालाना फसल है और साल के दौरान इस की 3 फसलें ली जा सकती हैं. इस की पहली कटाई 100 से 120 दिन बाद पौधों पर हलके सफेद, जामुनी रंग के फूल दिखाई देने पर करें.

पौधों की कटाई मिट्टी की सतह से 6 से 8 सैंटीमीटर की ऊंचाई से करते हैं. दूसरी कटाई 70 से 80 दिन बाद व तीसरी कटाई फिर से 70 से 80 दिन बाद करते हैं. तीसरी कटाई के बाद पौधों का विस्तार नहीं करना चाहिए. फसल की कटाई चमकीली धूप में दोपहर के समय तेज धारदार हंसिया से करें.

फसल काटने के बाद पुदीने को कम से कम 6 घंटे तक खेत में ही पड़ा रहने दें, ताकि नमी सूख जाए. फसल काटने के 3 दिन के अंदर ही आसवन कर के तेल निकाल लेना चाहिए.

तेल निकालना : मेंथा की खेती तेल हासिल करने के लिए की जाती है. पत्तियों से तेल आसवन विधि से निकाला जाता है. किसान लागत व सहूलियत को देखते हुए वाष्पन यानी आसवन तरीके से तेल हासिल करते हैं. इस तकनीक से चलने वाले आसवन संयंत्र कम लागत में बनाए जाते हैं.

किसान खेत में ही संयंत्र लगाते हैं, ताकि कच्चे माल को ढोने की लागत व समय की बचत हो और तेल की क्वालिटी को बरकरार रखा जाए. ढेर में रखने से पत्तियों का सड़ना शुरू हो जाता है. गरमी निकलने से तेल में कमी आ जाती है. इन सभी वजहों को देखते हुए ज्यादातर किसान खेत में ही संयंत्र लगाना ठीक सम?ाते हैं.

तेल का इस्तेमाल : मेंथा के तेल से तरहतरह के अवयव जैसे मिथाइल एसीटेट हासिल किया जाता है. इन अवयवों व तेल का इस्तेमाल दवा, च्युइंगम, टौफी व कैंडी बनाने में होता है. तेल का इस्तेमाल खांसी, खुजली की दवा, कंडोम, सिगरेट वगैरह में भी किया जाता है. मेंथा फ्लैक्स, मेंथा क्रिस्टल का इस्तेमाल टूथपेस्ट, पान मसाला, बाम, शैंपू, आफ्टर शेव लोशन वगैरह में भी बखूबी होता है.

तेल की पैदावार : मेंथा से तकरीबन 250 से 300 लिटर तेल प्रति हेक्टेयर हासिल होता है. तेल की मात्रा कई बातों पर निर्भर करती है. जैसे उगाई गई किस्म, फसल की बढ़वार, फसल की कटाई का समय और आसवन संयंत्र वगैरह.

तेल का भंडारण : एल्यूमीनियम, पौली पैक, डब्बों या कनस्तरों में तेल को स्टोर किया जा सकता है. डब्बे में तेल पूरा भरा होना चाहिए. डब्बा खाली रहने पर उस में हवा रहने पर तेल की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ता है. अगर तेल को ज्यादा दिनों तक महफूज रखना हो, तो सोडियम मेटाबाईसल्फाइट 2 ग्राम प्रति लिटर की दर से भंडारित तेल में डालें.

जापानी पुदीना काफी फायदेमंद फसल है. इस की खेती आसान है, इस के बीज पर ज्यादा खर्च नहीं होता. मध्य भारत की आबोहवा इस के लिए अनुकूल है. इस का बाजार बहुत बड़ा है. इसे पशुओं से कोई नुकसान नहीं होता और कुदरती मुसीबतों का इस पर कोई खास असर नहीं होता. जहां सिंचाई की सहूलियत हो, वहां मेंथा की खेती काफी फायदेमंद है.

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