धान्य फसलों में गेहूं की फसल काफी महत्त्वपूर्ण है. भारत में इस का भूसा पशुओं को खिलाते हैं. गेहूं के आटे में खमीर पैदा कर के इस का इस्तेमाल डबलरोटी, बिसकुट वगैरह तैयार करने के लिए किया जाता है. गेहूं प्रोटीन का मुख्य स्रोत है, जिस में औसतन 14.7 फीसदी प्रोटीन पाया जाता है.
भारत में गेहूं का ज्यादातर क्षेत्रफल उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, मध्य प्रदेश वगैरह राज्यों में है. उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक क्षेत्र 82.19 लाख हेक्टेयर में गेहूं पैदा करने वाला राज्य है. उत्तर प्रदेश गेहूं का सालाना उत्पादन 152.85 लाख टन करता है.
फसल की पूरी अवधि के लिए 10-15 सैंटीमीटर बारिश (पानी) और 25-26 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान सही है.
गेहूं को बलुई दोमट, बलुई, भारी दोमट या चिकनी मिट्टी वगैरह में उगा सकते हैं, लेकिन इन सभी मिट्टी में दोमट मिट्टी सब से अच्छी मानी जाती है. जमीन का पीएच मान 5.0 से 7.5 तक मुफीद होता है.
खेत की तैयारी
* बोआई के समय जमीन में 16 फीसदी नमी हो.
* खेत खरपतवाररहित हो.
* 21-22 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान हो, इस से कम या ज्यादा तापमान बीजों के अंकुरण के लिए सही नहीं होता है. खेत की अच्छी तैयारी के लिए खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए और 3-4 जुताई देशी हल, हैरो या कल्टीवेटर से करनी चाहिए.
* जमीन में नमी बनाए रखने के लिए हर जुताई के बाद पाटा चलाना चाहिए. गेहूं के लिए खेत तब तैयार मानना चाहिए, जब खेत में गीली मिट्टी का लड्डू बना कर ऊपर से छोड़ा जाए तो वह टूटे नहीं.
* छत्तीसगढ़ राज्य के लिए गेहूं की संस्तुति किस्में सुजाता, संगम, राजकंचन डब्लूएच 147, सी 306 वगैरह हैं.
बोआई का सही समय
गेहूं की बोआई का सही समय 15-30 नवंबर है, लेकिन इस के बाद बोआई की जाए तो उपज में भारी कमी आने लगती है. बोआई में देरी होने पर सामान्य अरहर और गेहूं फसल चक्र अपनाना सही होता है.
बीज दर : यह बोने की विधि और समय पर निर्भर है. आमतौर पर 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर सही होता है.
बीजोपचार : बीजों को 2.5 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लेना चाहिए. इस से फसलों को बीजजनित रोगों से बचाया जा सकता है.
बोआई की गहराई : गेहूं के बीज की बोआई के लिए 5 सैंटीमीटर गहराई सही मानी जाती है. इस से ज्यादा गहराई में बीजों का अंकुरण ठीक से नहीं हो पाता है.
सीड ड्रिल से अच्छी बोआई
गेहूं की बोआई आमतौर पर छिटकवां विधि से, हल के पीछे कूंड़ में, सीड ड्रिल द्वारा या हल के पीछे नाई बांध कर डिब्बर विधियों द्वारा की जाती है. इन सभी विधियों में सीड ड्रिल द्वारा बोआई सब से अच्छी विधि मानी जाती है.
खाद और उर्वरक : मिट्टी जांच के बाद ही खाद की जरूरत का निर्धारण किया जाना चाहिए.
गेहूं की फसल में आमतौर पर 100-200 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40-50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर दिया जाना चाहिए. पोषक तत्त्वों को निम्न ढंग से दिया जाना चाहिए:
* आधा नाइट्रोजन और पूरी फास्फोरस व पोटाश बोआई के समय छिड़काव के रूप में.
* एकचौथाई भाग नाइट्रोजन पहली सिंचाई के बाद (25-30 दिन की अवस्था पर) टौप ड्रैसिंग के दौरान.
* बाकी एकचौथाई भाग नाइट्रोजन पर्णीय छिड़काव के समय.
जल प्रबंधन : साधारण गेहूं की फसल में 5-6 बार सिंचाई की जरूरत होती है.
* क्राउन रूट इनिटिएशन पर -बोआई के 20-25 दिन बाद.
* कल्ले फूटने पर – बोआई के 40-50 दिन बाद.
* गांठ बनने की अवस्था पर – बोआई के 60-65 दिन बाद.
* फूल आने के समय – बोआई के 90-95 दिन बाद.
* दानों में दूध पड़ने पर – 110-115 दिन बाद.
* दाना कड़ा होने पर – बोआई के 120-125 दिन बाद.
फसल सुरक्षा
खरपतवार पर नियंत्रण : गेहूं की खरपतवार मुख्य रूप से पोआ घास, जंगली जई, कृष्णनील, हिरनखुटी, गेहूं का मामा (गुल्लीडंडा, बंदराबंदरी) वगैरह पाए जाते हैं. इन की रोकथाम खुरपी से की जा सकती है, इन खरपतवारों को रासायनिक विधि से खत्म करने के लिए भी खरपतवानाशी का उपयोग किया जाता है. कम चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों जैसे गेहूं का मामा व जंगली जई के लिए आइसोप्रोट्यूरौन की 0.75 से 1.0 किलोग्राम दवा को 800-1000 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से अंकुरण से पहले या बाद में 30-35 दिन की अवस्था में करना सही होता है.
रोग नियंत्रण:गेहूं में मुख्य रूप से गेरूई और कंडुआ रोग का प्रकोप अधिक होता है.
गेरूई : इसे रतुआ रोग भी कहते हैं. इस रोग में पत्तियों पर जंग लगा हुआ जैसा लवण दिखाई देता है, इस की रोधक किस्में हैं:
* एचडी 2009 (अर्जुन), यूपी 262, सोनालिका.
* इस की रोकथाम डाइथेन एम 45 या डाइथेन जैड 78 की दवा को 0.2 फीसदी के हिसाब से पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए.
कंडुआ रोग : इस रोग में बालियों पर काला चूर्ण बन जाता है, जिस से पूरी बाली खराब हो जाती है. इस की रोकथाम के लिए केवल प्रमाणित बीज ही बोएं.
बीजोपचार के लिए 0.25 फीसदी की दर से थीरम या बीटावैक्स का इस्तेमाल करना चाहिए.
कीट नियंत्रण
गेहूं का एफिड : यह कीट पौधों में दाना पड़ने की अवस्था में लगता है, जो बालियों में पड़े दानों का रस चूसता है. इस की रोकथाम बीएचसी या 0.2 फीसदी फौलीडौल के छिड़काव से की जाती है.
दीमक : इस कीट की रोकथाम के लिए एल्ड्रिन की 5 फीसदी धूल 20-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करनी चाहिए.
कटाई : फसल पकने पर पत्तियां व बालियां सूख जाती हैं और बालियां मुड़ कर झुक जाती हैं. ऐसी अवस्था में फसल की कटाई की जानी चाहिए.
उपज : बौनी किस्मों में 40-50 क्विंटल दाना प्रति हेक्टेयर और 60-65 क्विंटल भूसा हासिल किया जा सकता है. देशी किस्मों से 25-30 क्विंटल दाना ही मिल पाता है.