मशरूम एक उच्चवर्गीय कवक है, जो औषधि और भोजन दोनों के रूप में प्रयोग किया जाता है. भिन्नभिन्न ऋतु में विभिन्न प्रकार की   मशरूम की खेती की जाती है. वर्षा ऋतु में मुख्यत: मिल्की और ऋषि मशरूम की खेती की जाती है, जिन की खेती के लिए उच्च तापक्रम और अंधकार की आवश्यकता होती है. कुछ मशरूम के लिए कम तापक्रम और अधिक आर्द्रता की आवश्यकता होती है, जिन्हें शरद ऋतु में उगाया जाता है.

मशरूम को अंधेरे कमरे में उगाया जा सकता है और इस से गांव के गरीब किसान अपनी आय को आसानी से बढ़ा सकते हैं. मशरूम का बाजार में मूल्य 100 रुपए से ले कर 250 रुपए प्रति किलोग्राम होता है, जबकि औषधीय मशरूम का मूल्य लाख रुपए प्रति किलोग्राम तक होता है.

मशरूम मुख्यत: सड़ीगली चीजों पर वर्षा ऋतु में उगता है. इस में क्लोरोफिल नहीं पाया जाता, इसलिए इस का रंग हरा नहीं होता.

यह भोजन की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. इस में पौष्टिक और औषधीय दोनों गुण होने के कारण इस का बहुतायत में उपयोग किया जा रहा है. इस में कार्बोहाइड्रेट और वसा कम मात्रा में पाई जाती है. इस में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. साथ ही, इस में विटामिन और खनिज लवण भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं.

इसे क्षेत्रीय भाषाओं में धरती के फूल, खुंबी, कुकुरमुत्ता, छत्रक, भूमि कवक आदि नामों से भी जाना जाता है. इस की सब्जी को शाकाहारी मीट भी कहा जाता है.

आजकल इस की खेती का प्रचलन बढ़ रहा है, क्योंकि इसे आसानी से घरों में ही उगाया जा सकता है. इस के लिए भूमि की आवश्यकता नहीं होती. मशरूम को गेहूं के भूसे, सूखी पत्तियों, धान के पुआल, लकड़ी के बुरादे, गन्ने की सूखी पत्तियों और नारियल के कचरे आदि पर उगाया जा सकता है. वर्षा ऋतु में गोबर के ढेरों पर कुछ मशरूम अपनेआप उग जाती हैं, जो जहरीली होती हैं, उन्हें नहीं खाना चाहिए.

वैसे, मशरूम में खाने योग्य और विशिष्ट गुण होते हैं. ऐसी मशरूम के लिए उस का बीज किसी ऐसे संस्थान से लिया जाए, जो विश्वसनीय है. जैसे कि मशरूम प्रयोगशाला, कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्रों आदि स्थानों से लिया जा सकता है.

मशरूम उत्पादन का तरीका

वर्षा ऋतु में मुख्यत: 2 प्रकार की मशरूम उगाई जा सकती?हैं, जिन में दूधिया (मिल्की) मशरूम और गैनोडर्मा (ऋषि) मशरूम आती हैं.

दूधिया मशरूम या मिल्की मशरूम की खेती भारत में काफी समय से की जा रही है. यह मशरूम देखने में दूध जैसी सफेद होती है, इसीलिए इस को दूधिया मशरूम भी कहते हैं.

इस मशरूम की खेती के लिए उच्च तापक्रम और अधिक आर्द्रता की आवश्यकता होती है. इस मशरूम की खेती जुलाई से नवंबर महीने तक की जा सकती है.

Mushroomमिल्की यानी दूधिया मशरूम को गेहूं के भूसे पर अथवा पुआल पर उगाया जा सकता है, जिस के लिए भूसे को रातभर पानी में भिगो कर रखा जाता है. इस पानी में फौर्मलीन और कार्बंडाजिम नामक 2 रसायन एक निश्चित अनुपात में इसलिए मिलाए जाते हैं, जिस से यह भूसा रोगाणुमुक्त हो जाता है. अगली सुबह भूसे से अतिरिक्त पानी निकाल कर साफ फर्श पर सुखाने के लिए फैला दिया जाता है.

भूसे को उपचारित या रोगाणुमुक्त करने की एक अन्य विधि भी है, जिस में भूसे को गरम पानी में 2 से 3 घंटे तक उबाला जाता है. इस विधि को जैविक विधि भी कहते हैं. लगभग 60 फीसदी नमी रह जाने पर भूसे में मशरूम का बीज मिला दिया जाता है और उसे फिर पौलीथिन में भर देते हैं. इस पौलीथिन में 10 से 12 छेद कर दिए जाते हैं और इस का मुंह बांध दिया जाता है. इसे अंधेरे कमरे में रख दिया जाता है.

जब फफूंद पूरे भूसे को अपने जाल में बंद कर लेती है, तब पौलीथिन का मुंह खोल दिया जाता है और इस के मुंह पर एक से 2 सैंटीमीटर मोटी केसिग की परत चढ़ा दी जाती है. इस केसिग में कंपोस्ट, नदी का रेत और बाग की मिट्टी होती है जो समान अनुपात में मिक्स करने के बाद रोगाणुरहित की जाती है.

केसिग के 3 से 4 दिन बाद बैग से छोटेछोटे आकार की मशरूम निकलने लगती हैं. अब इस पर पानी का हलका स्प्रे करना शुरू करते हैं और यह धीरेधीरे बढ़ने लगती है. लगभग 8 दिन के बाद मशरूम तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है, जिसे तोड़ कर बेच दिया जाता है. इस का बाजार में 100 रुपए से ले कर 150 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव में मिल जाता है.

मशरूम की खेती के ये हैं महत्त्व

* मशरूम कृषि से बचे अवशेषों का उपयोग कर के उत्पादन करती है और उन्हें सड़ागला कर खाद बना देती है.

* मशरूम प्रकृति के चक्र को बनाए रखती है.

* मशरूम विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयोग की जाती है.

* यह अतिरिक्त आय का स्रोत है.

* ग्रामीण और कम पढ़ेलिखे लोगों के लिए आय का अच्छा साधन है.

* मशरूम के उत्पादन को गांव में रहने वाली औरतें भी आसानी से कर सकती हैं.

* मशरूम में काफी पौष्टिक गुण पाए जाते हैं, जो कुपोषण के शिकार लोगों के लिए अच्छा साधन हैं.

* मशरूम प्रत्येक वर्ग के व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करती है.

* मशरूम से प्रति क्षेत्रफल अधिक उत्पादन मिल जाता है.

मशरूम को उगाने के लिए बीज विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए, जिन के कुछ उदाहरण निम्न हैं :

      •  पादप रोग विज्ञान विभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ.
      •   पादप रोग विज्ञान विभाग, चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर.
      •   पादप रोग विज्ञान विभाग, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हरियाणा.
      •   पादप रोग विज्ञान विभाग, गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर.
      •   पादप रोग विज्ञान विभाग, राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर, बिहार.
      •   साथ ही, विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों से भी मशरूम के बीज हासिल किए जा सकते हैं.

कितना जरूरी है मशरूम प्रशिक्षण

मशरूम के उत्पादन के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है, अपितु इस के रखरखाव और देखभाल के लिए कुछ जानकारी की आवश्यकता होती है. यह जानकारी विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि विश्वविद्यालय से प्राप्त की जा सकती है. समयसमय पर इन कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्रों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं, जिन में भाग ले कर यह जानकारी हासिल की जा सकती है.

सरकार द्वारा मशरूम के प्रोत्साहन के लिए विभिन्न परियोजनाएं चलाई जा रही?हैं, जिन के अंतर्गत कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्र मुफ्त प्रशिक्षण देते हैं. इन में अखिल भारतीय समन्वित मशरूम विकास परियोजना मुख्य है. इस के अंतर्गत सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय खुंबी अनुसंधान केंद्र, चंबाघाट, सोलन, हिमाचल प्रदेश विभिन्नविभिन्न स्थानों पर अलगअलग समय पर प्रशिक्षण देते हैं और राज्य सरकारें भी इस के लिए विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कराती हैं.

यह प्रशिक्षण उद्यान निदेशालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेश, पादप रोग विज्ञान विभाग, कृषि विश्वविद्यालय चंद्रशेखर आजाद, कानपुर और सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ और विभिन्न राज्यों के उद्यान विज्ञान विभाग से प्राप्त किया जा सकता है.

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