सब्जियों में खरपतवार की समस्या दूसरी फसलों से ज्यादा होती है क्योंकि सब्जी की ये फसलें दूसरी फसलों की अपेक्षा शुरू में ज्यादा बढ़ती हैं.

* सब्जी की फसलों को ज्यादा उर्वरक की जरूरत होती है, जो खरपतवार की बढ़वार को प्रोत्साहित करते हैं.

* सब्जी में कम मात्रा में परंतु थोड़ेथोड़े समय बाद ही सिंचाई की जरूरत पड़ती है, जिस से खरपतवार के बीज आसानी से अंकुरित हो जाते हैं.

* सब्जी के पौधों की बढ़वार धीरे होने से खरपतवारों को उगने में मदद मिलती है.

* किसान आमतौर पर ज्यादा मात्रा में सड़ी हुई गोबर की खाद का इस्तेमाल करते हैं. इस वजह से भी खरपतवार उगने में मददगार होते हैं.

* ज्यादातर सब्जियां शुरू में धीमी रफ्तार से बढ़ती हैं, इसलिए वे खरपतवार की बढ़वार के लिए अनुकूल माहौल बना लेती हैं. जब खरपतवार की तादाद ज्यादा हो जाती है तो सब्जियां उन के साथ प्रतियोगिता नहीं कर पाती हैं.

खरपतवार के मुख्य लक्षण

* ये प्राकृतिक रूप से स्थायी प्रवृत्ति वाले होते हैं.

* ये एक, दो और बहुवर्षीय होते हैं.

* ये अपनेआप ही दोबारा पनप जाते हैं.

* इन में मुश्किल हालात में भी जिंदा रहने की वंशागत कूवत पाई जाती है.

* इन में फूल और बीज जल्दी और ज्यादा तादाद में बनते हैं.

* ये सब्जियां जल्दी पक जाती हैं.

* इन के बीज अगर अनुकूल माहौल में नहीं पनप पाते हैं तब भी काफी लंबे समय तक सही और योग्य अवस्था में जमीन में पड़े रहते हैं.

* यह फसलों की अपेक्षा प्रति पौधा लाखों की तादाद में बीज पैदा करते हैं.

* बीजों के अलावा खरपतवार अपने दूसरे कायिक भागों से भी वंश बढ़ोतरी करते हैं. जैसे दूब घास तने से, हिरनखुरी जड़ों से, कांस प्रकंदों से और पत्तियों द्वारा भी कई बार खरपतवार उग आते हैं.

* कुछ की जड़ें तो काफी गहरी जाती हैं और वे अपनी राइजमों में काफी समय तक के लिए भोजन एकत्रित कर लेती हैं.

* इन के बीजों की बनावट, रंग, आकार सहचर फसलों की तरह होता है, जैसे प्याज व जंगली प्याज, सरसों और सत्यानाशी के बीज काफी मिलतेजुलते हैं.

* प्रतिकूल हालात में भी जैसे कम नमी, बंजर जमीन, कीटों व रोगों के बावजूद सब्जी की फसलों की अपेक्षा ये अच्छी बढ़वार करते हैं.

* इन के बीज गंभीर हालात में भी पनप जाते हैं.

* इन को नियंत्रित करने के लिए ज्यादा मजदूर, खास कलपुरजों व कैमिकल की जरूरत होती है, जो उत्पादन लागत को कम करती है.

खरपतवार (Weeds)

खरपतवार से नुकसान

* खरपतवार पानी, हवा के लिए फसल के पौधों से प्रतियोगिता करते हैं और उन की बढ़वार को प्रभावित करते हैं.

* जमीन में मौजूद पोषक तत्त्व और जमीन में इस्तेमाल किए गए उर्वरक को खरपतवार से ले लेते हैं. इस से फसल पोषक तत्त्वों का समुचित प्रयोग नहीं है.

* खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए ज्यादा मजदूर, नए यंत्र और कैमिकल दवाओं का इस्तेमाल करना पड़ता है. ये न केवल उत्पादन की लागत को बढ़ाते हैं, बल्कि उत्पादन को भी प्रभावित करते हैं.

* कैमिकल दवाओं के इस्तेमाल से उत्पाद की क्वालिटी पर उलटा असर पड़ता है.

* खरपतवारयुक्त हानिकारक कीटों को प्रतिकूल और अनुकूल माहौल में आश्रय देते हैं. इस से फसलों में बीमारियों व कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है और उत्पादन में कमी आती है.

* खरपतवारयुक्त जमीन की कीमत घट जाती है.

* खरपतवार आम इनसान की सेहत पर भी बुरा असर डालते हैं.

* खरपतवार में बड़े और ज्यादा तादाद में पत्ते निकलते हैं, जो सब्जी के पौधों को छाया देते हैं. इस से पौधों में प्रकाश संश्लेषण प्रभावित होता है.

खरपतवार पर नियंत्रण : खरपतवार को खत्म करना बहुत ही मुश्किल काम है, क्योंकि इन का फैलाव एक खेत से दूसरे खेत में कई त्रिकोण से होता है. जैसे बीज के द्वारा, कंदोंप्रकंदों और जड़ द्वारा, जो जमीन में काफी गहराई तक जा सकती है, इसलिए हमें खरपतवार नियंत्रण पर ही ध्यान देना चाहिए.

अगर फसल में उगने वाले खरपतवारों को समय पर न उखाड़ा जाए तो हमारी सारी पूंजी व मेहनत बेकार चली जाती है. इसलिए खरपतवारों को सही समय पर उखाड़ें और लागत को ध्यान में रखते हुए ऐसा करना चाहिए.

यांत्रिक विधि

हाथ से खरपतवार उखाड़ना : यह विधि व्यावहारिक है. इस से खरपतवार नियंत्रण छोटे क्षेत्र पर संभव है या ऐसे खरपतवारों को निकालना जो कृषि यंत्र की पहुंच से बाहर हो.

हैंड हो : पंक्तियों में लगाई गई सब्जियों में इस का प्रयोग किया जा सकता है.

जुताई : पौध को खेत में लगाने से पहले 2-3 गहरी जुताई कर के खरपतवारों की बढ़वार को कम किया जा सकता है.

पानी में डुबो कर रखना : परती या खाली खेतों में पानी भर कर बहुवर्षीय खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है.

खरपतवार जलाना : इस विधि से खाली खेतों में उगे खरपतवारों को बीज या पौध लगाने से पहले जला कर खत्म किया जाता है.

मल्चिंग का प्रयोग : अधिक दूरी पर लगाई जाने वाली सब्जी में मल्च बिछा कर खरपतवारों को रोका जा सकता है.

कृषि विधि : इस विधि को अपना कर खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है. इन में ऐसी परिस्थिति पैदा की जाती है, जिस से सब्जी में पौधे खरपतवारों की बढ़वार को दबाए रखें. इस के तहत निम्न पद्धतियां अपनाई जाती हैं:

* फसलों का चयन.

* अच्छी बीज शैया का बनना.

* सही फसल चक्र का इस्तेमाल.

* गरमी में खेत को परती रखना.

* ऐसी सब्जी और किस्मों का इस्तेमाल करना, जो ज्यादा बढ़वार व फैलाव के चलते खरपतवारों को ढक लें.

* फसल की बढ़वार बढ़े, इस के लिए सही समय पर बीजों को रोपें.

निरोधी उपाय या बचाव विधि : इस के तहत वे सभी विधियां शामिल हैं, जिन के द्वारा किसी क्षेत्र में नए खरपतवार के उगने पर रोक लगाई जा सकती है और उन्हें होने से रोका जा सकता है.

* शुद्ध बीज इस्तेमाल में लाएं.

* सड़ी खाद डालें.

* खरपतवारमुक्त पशु चारे का इस्तेमाल करें.

* खरपतवार से प्रभावित क्षेत्रों में चरने वाले जानवरों को स्वच्छ फसल वाले क्षेत्र में जाने से रोकना.

* स्वच्छ उपकरण का इस्तेमाल.

* खरपतवार प्रभावित क्षेत्रों में चरने वाले जानवरों को स्वच्छ फसल वाले क्षेत्र में जाने से रोकना.

* स्वच्छ उपकरण का इस्तेमाल.

* खरपतवार प्रभावित क्षेत्र की मिट्टी या बालू को इस्तेमाल में न लाना.

* सिंचाई नालियों द्वारा खरपतवार से मुक्त रखना.

* खेत की मेंड़ों को खरपतवार से मुक्त रखना.

खरपतवार को जड़ से उखाड़ना : खरपतवारों के सभी जीवित अंगों और बीजों को पूरी तरह से निकाल देते हैं. यह विधि आकर्षक होने के साथसाथ काफी खर्चीली भी है. इस के लिए ऐसे कैमिकल का मिट्टी में इस्तेमाल किया जाता है, जिस से सभी खरपतवार प्रभावित हों, परंतु कई बार यह खर्च जमीन की कीमत से भी ज्यादा हो जाता है. इसलिए उन्मूलन के तरीकों को छोड़ कर नियंत्रण के तरीकों पर खास ध्यान देना फायदेमंद होता है.

नियंत्रण : खरपतवार के संक्रमण को उस सीमा तक ही रखना, जिस से वे सब्जी की फसल के साथ प्रतियोगिता न कर सकें और फसल उत्पादन पर कोई प्रभाव न पड़े, साथ ही फायदेमंद उत्पादन संभव हो.

फसल और खरपतवार प्रतियोगिता विधि : इस विधि में ऐसे उपाय किए जाते हैं, जिस से खरपतवारों की बढ़वार कम हो और फसलों को कम से कम नुकसान हो.

नीचे दी गई बातों पर अमल करना जरूरी होता है:

* खेतों में खरपतवार से प्रतियोगिता रखने वाली फसल उगाना.

* जल्दी बढ़ोतरी करने वाली किस्मों को लगाना ताकि खरपतवार की बढ़वार को रोक सके और उसे जगह, हवा, पोषक तत्त्व और रोशनी कम मिले.

* कम बढ़ोतरी करने वाली सब्जियों के पौधे को आसपास लगाना और बीज की मात्रा प्रति एकड़ बढ़ा कर इस्तेमाल करना.

* साफसुथरे बीज बोना, जिस में खरपतवार के बीज न हों और फसल चक्र अपनाना ताकि खरपतवारों को उगने में कठिनाई हो.

जैविक विधि : प्राकृतिक शत्रुओं को इस्तेमाल में लाना ताकि वे फसल के पौधों को नुकसान न पहुंचाएं.

इस विधि में आमतौर पर ऐसे कीटों का इस्तेमाल किया जाता है, जो खरपतवारों को फल, फूल और बीज को खाते हैं. साथ ही, फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाते.

कैमिकल विधि : खरपतवारों की बढ़वार को रोकने के लिए कैमिकल का इस्तेमाल आजकल काफी प्रचलित है. इस से न केवल फसल लगाने से पहले बल्कि खड़ी फसल पर भी इस्तेमाल किया जा रहा है.

सब्जियों में खरपतवार नियंत्रण आमतौर पर हाथों से किया जाता है, परंतु इस में ज्यादा मेहनत लगती है. इस वजह से उत्पादन भी प्रभावित होता है.

आजकल शाकनाशी के इस्तेमाल पर काफी बल दिया जा रहा है, पर सब्जियों में कैमिकल खरपतवार नियंत्रण कम पैमाने पर करना चाहिए. इस की वजह यह है कि सब्जियों को हम अपरिचित अवस्था में प्रयोग करते हैं, जिस से हानिकारक कैमिकल की कुछ मात्रा पौधों में रह जाती है जो सेहत के लिए हानिकारक हो सकती है.

किसानों को शाकनाशी के इस्तेमाल में काफी परेशानी भी आती है. यह शाकनाशी भी काफी महंगे हैं और किसानों को इस की पूरी जानकारी भी नहीं होती है.

शाकनाशियों के इस्तेमाल के लिए जरूरी पूर्व दशाएं

* बताई गई यानी संस्तुत मात्रा ही इस्तेमाल में लाएं.

* प्रयोग से पहले उन पर लिखे निर्देशों को अच्छी तरह से पढ़ लेना चाहिए.

* शाकनाशी के इस्तेमाल से पहले या बाद में छिड़काव यंत्र को अच्छी तरह से धो कर साफ कर लेना चाहिए.

* कैमिकलों को आसपास के खेतों में बह कर जाने से रोकना चाहिए.

* छिड़काव यंत्र के टैंक तली में कैमिकल के घोल को बैठने से रोकने के लिए उसे लगातार हिलाते रहना चाहिए.

* छिड़काव के दौरान गति नियंत्रित रखनी चाहिए, जिस से समूचे खेत में छिड़काव बराबर से हो.

* शाकनाशी का कुप्रभाव पड़ने की हालत में तुरंत माहिर डाक्टर से मिलना चाहिए.

* कैमिकल का इस्तेमाल करते समय नाक और मुंह को अच्छी तरह ढक लेना चाहिए.

* शाकनाशी का इस्तेमाल हवा की दिशा में और नोजल के साथ इस्तेमाल करना चाहिए.

* कैमिकल का इस्तेमाल सुबह या शाम के समय ही करना चाहिए.

* मिट्टी में प्रयुक्त होने वाले कैमिकल को छिड़कने के बाद उस पर चलना नहीं चाहिए, क्योंकि कैमिकल की फिल्म के टूटने का डर रहता है.

अहम पहलू

* फसल उगने से पहले खेत की 2 से 3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए. हो सके तो मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई जरूर करें.

* साफसुथरे बीज ही इस्तेमाल में लाएं, जिस में खरपतवार के बीज न हों.

* गरमियों में खेत की गहरी जुताई करें और जुताई से पहले खरपतवार को जला देना चाहिए, ताकि खरपतवार के बीज खत्म हो जाएं.

* अगेती किस्मों को उगाना चाहिए, ताकि खरपतवारों को उगने का मौका न मिल सके.

* खाद का इस्तेमाल पौधों की जड़ों के पास ही करना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा पोषक तत्त्व पौधों को मिल सकें.

* सिंचाई का प्रयोग तब करें, जब फसलों को जलन हो और बहाव सिंचाई न कर थाले या नालियां बना कर करें.

* खरपतवारों को रोकने के लिए शाकनाशी कैमिकल का इस्तेमाल माहौल को देखते हुए करें और सही समय पर ही करें, जिस से ज्यादा लाभ हो सके.

* कार्बनिक मल्च यानी पलवार का इस्तेमाल करें. आजकल खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए प्लास्टिक की काली पन्नी का इस्तेमाल हो रहा है.

पौलीहाउस विधि से भी कर सकते हैं अगेती खेती

कद्दूवर्गीय सब्जियां मैदानी इलाकों में उगाई जाती हैं. गरमी में अगेती फसल तैयार करने के लिए पौलीहाउस में जनवरी में झोंपड़ी के आकार का पौलीहाउस बना कर पौध तैयार की जा सकती है.

पौधे तैयार करने के लिए 15×10 सैंटीमीटर आकार की प्लास्टिक की थैलियों में 1:1:1 मिट्टी, बालू व गोबर की खाद भर कर जल निकास की व्यवस्था के लिए सूजे की मदद से छेद कर सकते हैं. बाद में इन थैलियों में तकरीबन 1 सैंटीमीटर की गहराई पर बीज बोआई कर बालू की पतली परत बिछा लें और हजारे की मदद से पानी लगाएं, 4 हफ्ते में पौध खेत में लगाने लायक हो

जाते हैं.फरवरी में पाला पड़ने का डर जब खत्म हो जाए तो प्लास्टिक की थैली को ब्लेड से काट कर हटाने के बाद पौधे को मिट्टी के साथ खेत में बनी नालियों की मेंड़ पर रोपाई कर के पानी दें.

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