बढ़ती आबादी के साथसाथ कृषि, उद्योग और शहरी आबादी के बीच पानी की कमी होना अब चिता की बात है. इस समस्या से कैसे निबटा जाए, इस के लिए हर रोज नए प्रयोग भी हो रहे हैं.
जल प्रबंधन की अनेक तरकीबें जैसे ड्रिप व फव्वारा सिंचाई, छोटे पैमाने पर जल संचयन यानी पानी जमा करना मल्चिंग, शून्य या कम से कम जुताई जैसे तरीकों को अपनाया जा रहा है.
खेती में कम से कम पानी की जरूरत हो, इसी संदर्भ में विशेषज्ञों ने ऐसा पदार्थ ईजाद किया जिन्हें हाइड्रोजैल कहा जाता है. यह जल संरक्षण के लिए बेहद उपयोगी तकनीक है.
पूसा हाइड्रोजैल : कृषि की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पूसा कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि रसायन संभाग के वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजैल तैयार किया है जिसे पूसा हाइड्रोजैल का नाम दिया गया है.
यह कृषि रसायन प्राकृतिक पौलीमर सैल्यूलोस पर आधारित है. यह अपने शुष्क वजन के मुकाबले 350-500 गुना अधिक पानी ग्रहण कर फूल जाता है और पौधे की जरूरत के मुताबिक धीरेधीरे जड़ क्षेत्र में अपना प्रभाव छोड़ता है, जिस से पौधे की जड़ में नमी बनी रहती है. यह उत्पाद उच्च तापमान (40 से 50 डिगरी सैल्सियस) पर भी प्रभावी रहता है, इसलिए यह हमारे देश के गरम इलाकों के लिए भी बेहद लाभदायक है.
पूसा हाइड्रोजैल के लाभ : पौधों की जड़ों के आसपास की मिट्टी में नमी बनी रहती है. बारानी क्षेत्रों व सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में किसानों के लिए पानी की बचत होती है. मिट्टी में पूसा हाइड्रोजैल डालने से सभी तरह की फसलों, जिन में खाद्यान्न व बागबानी फसलें शामिल हैं, में कम सिंचाई करनी पड़ती है. इस प्रकार यह तकनीक सिंचाई, पैसा और समय की लागत को कम करती है.
गेहूं की फसल में इस के असर को जानने लिए पूसा संस्थान व देश के अन्य कई संस्थानों द्वारा परीक्षण किए गए. इन परीक्षणों के नतीजों में पाया गया कि सामान्य तौर पर गेहूं के लिए 5-6 सिंचाइयों की जरूरत रहती है, जबकि पूसा हाइड्रोजैल का इस्तेमाल कर के उपज में नुकसान के बिना आसानी से 2 सिंचाई बचाई जा सकती हैं. इसी तरह मूंगफली, आलू, सोयाबीन, फूलों, शाकीय व अन्य फसलों में भी इस के अच्छे नतीजे देखे गए हैं.
नर्सरी व पौध रोपाई के अच्छे नतीजे : नर्सरी लगाते समय व पौध रोपण के समय पूसा हाइड्रोजैल का प्रयोग अंकुरण व जड़ फुटाव को बढ़ावा देता है. संस्थान के संरक्षित कृषि व प्रौद्योगिकी केंद्र के पौलीहाउस व खेतों में किए गए परीक्षणों में देखा गया है कि गुलदाउदी में पूसा हाइड्रोजैल के इस्तेमाल से अच्छी गुणवत्ता की नर्सरी मात्र 18-20 दिन में तैयार हो जाती है जबकि आमतौर पर नर्सरी तैयार होने में 28-30 दिन का समय लगता है.
मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए पूसा हाइड्रोजैल न केवल बीज के फुटाव, फसल विकास में भी सहायक है, बल्कि यह पौधे को स्थायी रूप से मुरझाने की स्थिति में लंबे समय तक बचाता है.
कैसे काम करता है पूसा हाइड्रोजैल : मिट्टी में डालने पर पूसा हाइड्रोजैल इसी का एक हिस्सा बन जाता है. इस हाइड्रोजैल के चीनी के दानों जैसे छोटेछोटे कण जड़ के आसपास में सिंचाई या बारिश के बाद अतिरिक्त पानी, जो कि पौधों को नहीं मिल पाता है, को पा कर फूल जाते हैं और पौधों के विकास के दौरान पानी की कमी से पैदा होली वाली स्थिति में जड़ें इन फूले हुए कणों से जरूरत के मुताबिक पानी व पोषक तत्त्व लेती हैं.
कहां और किस कीमत पर : अनेक परिस्थितियों में उगाई जाने वाली अधिकांश फसलों के लिए पूसा हाइड्रोजैल 2.5 से 5.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना सही माना गया है. बाजार में यह उत्पाद निम्नलिखित कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है:
# कार्बोरंडम यूनिवर्सल प्रा. लि. बैंगलुरु, ब्रांड का नाम कावेरी, मोबाइल नंबर 9449081339.
# अर्थ इंटरनैशनल प्रा. लि., नई दिल्ली, ब्रांड का नाम वारिधर, जी 1, मोबाइल नंबर 9868259735.
इस के अलावा 2 और कंपनियां, हंटिन आर्गेनिक्स प्राइवेट लि., फरीदाबाद व नागार्जुन फर्टिलाइजर्स प्रा. लि., हैदराबाद भी इस उत्पाद को जल्दी ही बाजार में उपलब्ध कराएंगी.
पूसा हाइड्रोजैल की शुरुआती कीमत 1,200 रुपए प्रति किलोग्राम से ले कर 1,400 रुपए प्रति किलोग्राम रखी गई है. कंपनियों से मिली जानकारी के आधार पर मांगानुसार कीमत के कम या ज्यादा होने की संभावनाएं हैं.
हाइड्रोजैल का इस्तेमाल : पूसा हाइड्रोजैल का इस्तेमाल तय किए गए तौरतरीकों के अनुसार ही करें. जरूरत के मुताबिक तय की जाने वाली प्रत्येक विधि में यह ध्यान रखना जरूरी है कि हाइड्रोजैल के कण बीज या पौध के एकदम नीचे या आसपास ही डालें, जिस से पौधें को पूरी नमी मिले.
खास तरीका:
गेहूं, मक्का, दालों, तिलहन वगैरह जैसी फसलों के लिए:
* खेती की तैयारी, पूर्व बोआई व सिंचाई, उर्वरक आदि का प्रयोग सामान्य रूप
से करें.
* हाइड्रोजैल का प्रयोग बोआई के समय सब से ज्यादा लाभदायक है.
* खेत से 20-25 किलोग्राम सूखी मिट्टी लें व उसे एकसमान कर लें. इस में जरूरत के मुताबिक 2.5-5.0 किलोग्राम हाइड्रोजैल व बीज मिलाएं.
* यदि आप डीएपी का प्रयोग कर रहे हैं तो इसे भी खेत में डालने की अपेक्षा मिट्टी जैल के मिश्रण में मिलाना फायदेमंद रहता है.
* तैयार किए गए मिश्रण को सीड ड्रिल या हल द्वारा लाइनों में डालें, बाद में फसल की अवस्था व मिट्टी में नमी के आधार पर सिंचाई करें.
पौध तैयार करने के लिए
कुछ फसलों के लिए पौध भी तैयार करनी होती है जिस के लिए सही वातावरण व पोषण तत्त्वों की तय मात्रा बेहद जरूरी है. पूसा हाइड्रोजैल इस संदर्भ में बहुत उपयोगी है. बोआई से पहले मिट्टी की तैयारी के समय भी इस के इस्तेमाल की सिफारिश की जाती है.
ट्रे में पौध तैयार करने के लिए हाइड्रोजैल (2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है) को सूखे मिट्टी रहित माध्यम में अच्छी तरह मिलाएं. ट्रे को इस मिश्रण से भर लें और ट्रे में बीज बो दें और सामान्य रूप से प्रथम सिंचाई या फर्टीगेशन करें. बाद की सिंचाइयां बीज अंकुरण व समयसमय पर नमी की स्थिति को देखते हुए करनी चाहिए. खेत में पौध तैयार करने के लिए हाइड्रोजैल (2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) और बीज जरूरत के मुताबिक उतनी सूखी मिट्टी में मिलाएं जिसे आसानी से नर्सरी क्षेत्र में समान रूप से फैलाया जा सके.
पौध की खेत में रोपाई के समय
हाइड्रोजैल को सूखी मिट्टी में मिलाएं. तैयार मिश्रण को खेत में बनाई गई कुंड पंक्तियों में समान रूप से डालें. बाद में पौध रोपाई इस तरीके से करें कि डाला गया जैल जड़ के आसपास ही रहे.
डिबलिंग विधि द्वारा फसल (आलू, गन्ना) की रोपाई के समय जैल मिट्टी मिश्रण बीज कलम लगाने के लिए बनाए गए गड्ढों या कुंडों में समान रूप से बांट कर के डालें. बाद में बीज कलम रोप कर कुंड या गड्ढे को ढक दें.
सावधानियां
* पैकेट को अच्छी तरह से बंद कर के रखें, ताकि इस पर नमी का असर न हो.
* बोआई या पौध रोपण के समय हाइड्रोजैल मिट्टी मिश्रण को पूर्ण रूप से नमी रहित सूखी मिट्टी में तैयार करें.
* बीज व मिट्टी के साथ जैल का सभाग मिश्रण करना जरूरी है.
* जैल मृदा मिश्रण का खेत में समान रूप से प्रयोग सुनिश्चित करें.
* नमी रहित स्थान पर ही इस का भंडारण करें.