दुनियाभर में फसलों का जेनेटिक मोडिफिकेशन पर 50 सालों से ज्यादा समय से रिसर्च हो रही है. जो बदलाव कुदरती तौर पर सदियों से हो रहे हैं, वे इस टैक्नोलौजी द्वारा वैज्ञानिक तरीके से लाए जा रहे हैं. हर फसल के पौधे मे कोशिकाओं, क्रोमोसोम और जींस के सैट होते हैं. अगर कोई फायदेमंद जीन किसी दूसरे पौधे या बैक्टीरिया से ले कर फसल के जीनोम में डाल दिया जाता है, तो इसे जैनेटिक मोडिफिकेशन कहते हैं. इस विधि द्वारा फसल के पौधे में नई विशेषताएं पैदा की जाती हैं. उदाहरण के लिए समुद्री तटों पर उगने वाले पौधों में नमक वाली हवा और कम पानी की मिट्टी को सहने की ताकत होती है. उन की यह विशेषता उन में एक खास जीन की वजह से पैदा होती है, जो उन में पाया जाता है. अगर इस जीन को इन पौधों में से निकाल कर दूसरी फसलों में डाल दिया जाए, तो वे फसलें भी सैलाइन मिट्टी में उग सकेंगी. भारत में 2 करोड़ हेक्टेयर से ज्यादा जमीन सैलाइन है और किसान उन में फसल न उगा पाने के चलते बहुत नुकसान झेलते हैं. यह टैक्नौलोजी उन के लिए काफी फायदेमंद हो सकती है.

इस टैक्नौलोजी द्वारा फसल के पौधों को मजबूत बना कर उन्हें कीटों के हमलों, सूखे के हालात से सुरक्षा और वे कम उर्वरकों के साथ भी विकसित हो सकेंगे. कैमिकल कीटनाशकों और उर्वरकों के इस्तेमाल में कटौती भी कर सकेंगे. किसानों की लागत कम हो जाएगी. फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी होगी. खाद्य तेलों में फैटी एसिड प्रोफाईल को मोडिफाई कर के उन्हें सेहतमंद बनाया जा सकेगा, चावल में विटामिन ए की मात्रा बढ़ाई जा सकेगी और ऐसे ही कई फायदेमंद उपयोग किए जा सकेंगे, जिस से ग्राहकों को फायदा होगा.

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