अब तक उत्तर भारत में सर्दियां हद पर होती हैं. वहां के खेतों में गेहूं उगा दिए गए होते हैं. अगर गेहूं की बोआई किए हुए 20-25 दिन हो गए हैं, तो पहली सिंचाई कर दें.
फसल के साथ उगे खरपतवारों को खत्म करें. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को काबू में करने के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट और गेहूंसा खरपतवार को रोकने के लिए आईसोप्रोट्यूरोन खरपतवारनाशी का इस्तेमाल करें. इन कैमिकलों का बोआई के 30-35 दिन बाद इस्तेमाल करें.
अगर गेहूं की बोआई नहीं की गई है, तो बोआई का काम 15 दिसंबर तक पूरा कर लें. इस समय बोआई के लिए पछेती किस्मों का चुनाव करें. बीज की मात्रा 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें. साथ ही, कूंड़ों के बीच का फासला कम करें यानी 15-18 सैंटीमीटर तक रखें.
* इस महीने में गन्ने की सभी किस्में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. अपनी सुविधानुसार कटाई करें. शरदकालीन गन्ने में पिछले महीने सिंचाई नहीं की है, तो सिंचाई करें. गन्ने के साथ दूसरी फसलें यानी तोरिया, राई वगैरह की बोआई की गई है, तो निराईगुड़ाई करने से गन्ने की फसल के साथसाथ इन फसलों को भी बहुत फायदा पहुंचता है.
* वसंतकालीन गन्ने की बोआई के लिए खाली खेतों की अच्छी तरह तैयारी करें. अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, केंचुआ खाद वगैरह जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल करें.
दीमक का प्रकोप खेतों में है, तो दीमक के घरों को ढूंढ़ कर खत्म करें. साथ ही, पड़ोसी किसानों को भी ऐसा करने की सलाह दें.
* जौ की बोआई अगर अभी तक नहीं की है, तो फौरन बोआई करें. एक हेक्टेयर खेत की बोआई के लिए 100-110 किलोग्राम बीज डालें. पिछले महीने बोई गई फसल 30-35 दिन की हो गई है, तो सिंचाई करें. खरपतवार की रोकथाम करें.
* सरसों की फसल में जरूरत से ज्यादा पौधे हों, तो उन्हें उखाड़ कर चारे के तौर पर इस्तेमाल करें. खरपतवार की रोकथाम करें. कीटबीमारी का हमला दिखाई दे, तो फौरन कारगर दवाओं का इस्तेमाल करें.
* मटर की समय पर बोई गई फसल में फूल आने से पहले हलकी सिंचाई करें. मटर में तना छेदक कीट की रोकथाम के लिए डाईमिथोएट 30 ईसी दवा की एक लिटर मात्रा व फली छेदक कीट की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की एक लिटर मात्रा या मोनोक्रोटोफास 36 ईसी कीटनाशी की 750 मिलीलिटर मात्रा 600 से 800 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. मटर की रतुआ बीमारी की रोकथाम के लिए मैंकोजेब दवा की 2 किलोग्राम मात्रा 600 से 800 लिटर पानी में घोल कर खड़ी फसल पर छिड़काव करें.
* आलू की फसल में हलकी सिंचाई करें और मिट्टी चढ़ाने का काम करें. साथ ही, खरपतवारों को खत्म करते रहें. फसल को अगेती झुलसा बीमारी से बचाएं.
* बरसीम चारे की कटाई 30 से 35 दिन के अंतर पर करते रहें. कटाई करते वक्त इस बात का खयाल रखें कि कटाई 5-8 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर हो. पाले से बचाने के लिए हर कटाई के बाद सिंचाई करें.
* पिछले महीने अगर मसूर की बोआई नहीं की है, तो बोआई इस महीने कर सकते हैं. अच्छी उन्नतशीत किस्मों का चुनाव करें. बीज को उपचारित कर के ही बोएं. एक हेक्टेयर खेत की बोआई के लिए 50-60 किलोग्राम बीज का इस्तेमाल करें.
* मिर्च की फसल पर डाईबैक बीमारी का प्रकोप दिखाई दे, तो इस पर डाइथेन एम-45 या डाइकोफाल 18 ईसी दवा के 0.25 फीसदी घोल का छिड़काव करें.
* धनिया की फसल को चूर्णिल आसिता बीमारी से बचाने के लिए 0.20 फीसदी सल्फैक्स दवा का छिड़काव करें.
* लहसुन की फसल में सिंचाई की जरूरत महसूस हो रही है, तो सिंचाई करें. खरपतवारों को काबू में करने के लिए निराईगुड़ाई करें.
* प्याज की पौध तैयार हो गई है, तो रोपाई इस महीने के आखिरी हफ्ते में शुरू करें.
* गाजर, शलजम, मूली व दूसरी जड़ वाली फसलों की हलकी सिंचाई करें. साथ ही, खरपतवार की रोकथाम के लिए निराईगुड़ाई करते रहें. जरूरत के मुताबिक नाइट्रोजनयुक्त खाद का इस्तेमाल करें.
* आम के बागों की साफसफाई करें.
10 साल या इस से ज्यादा उम्र के पेड़ों में प्रति पेड़ 750 ग्राम फास्फोरस, 1 किलोग्राम पोटाश से तने से एक मीटर की दूरी छोड़ कर पेड़ के थालों में दें. मिली बग कीड़े की रोकथाम के लिए तने के चारों तरफ 2 फुट की ऊंचाई पर 400 गेज वाली 30 सैंटीमीटर पौलीथिन की शीट की पट्टी बांधें. इस बांधी गई पट्टी के नीचे की तरफ वाले किनारे पर ग्रीस का लेप कर दें.
* अगर मिली बग तने पर दिखाई दे, तो पेड़ के थालों की मिट्टी में क्लोरोपाइरीफास पाउडर की 250 ग्राम मात्रा प्रति पेड़ के हिसाब से तने व उस के आसपास छिड़क दें व मिट्टी में मिला दें. नए लगाए बागों के छोटे पेड़ों को पाले से बचाने के लिए फूस के छप्पर का इंतजाम करें व सिंचाई करें.
* लीची के छोटे पेड़ों को भी पाले से बचाने के लिए पौधों को छप्पर से तीनों तरफ से ढकें. उसे पूर्वदक्षिण दिशा में खुला रहने दें. बड़े पेड़ों यानी फलदार पेड़ों में प्रति पेड़ के हिसाब से 50 किलोग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद व 600 ग्राम फास्फोरस दें. बीमारी से ग्रसित टहनियों को काट कर जला दें.