चना भारत की सब से अहम दलहनी फसल है. चने को दालों का राजा भी कहा जाता है. पोषक मान के नजरिए से चने के प्रति 100 ग्राम दानों में औसतन 11 ग्राम पानी, 21.1 ग्राम प्रोटीन, 4.5 ग्राम वसा, 61.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 149 मिलीग्राम कैल्शियम, 7.2 मिलीग्राम नियासिन पाया जाता है.

दलहनी फसल होने के चलते यह जड़ों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन स्थिर करती है, जिस से खेत की उर्वराशक्ति बढ़ती है. भारत में चने की खेती में 7.62 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के औसत मान से 5.75 मिलियन टन उपज हासिल होती है.

जमीन का चुनाव : चने को उन क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है जहां रबी के सीजन में सर्दी कम रहती है और बारिश की संभावना कम होती है. ओले या पाला पड़ने की संभावना बिलकुल नहीं होती है.

सामान्यतौर पर चने की खेती हलकी से भारी जमीनों पर की जाती है, पर ज्यादा जल धारण की कूवत व सही जल निकास वाली जमीनें इस की खेती के लिए अच्छी रहती हैं. मिट्टी का पीएचमान 6-7.5 अच्छा माना जाता है. ऊसर व क्षारीय जमीन इस की खेती के लिए बिलकुल सही नहीं होती है. छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्रों में पाई जाने वाली डोरसा व कन्हारी जमीन चने की खेती के लिए सब से सही मानी जाती है.

जमीन की तैयारी : चने की खेती के लिए मिट्टी का बारीक होना जरूरी नहीं है, बल्कि ढेलेदार खेत ही चने की फसल के लिए अच्छा माना जाता है. खरीफ फसल कटने के बाद नमी की सही मात्रा होने पर एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से व 2 जुताई देशी हल या ट्रैक्टर से करनी चाहिए. दीमक प्रभावित क्षेत्रों में क्लोरपायरीफास 1.5 फीसदी चूर्ण 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिलाना चाहिए. इस से कटुआ कीटों पर भी नियंत्रण होता है.

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