पोषक गुणों से भरपूर प्रचलित शाकसब्जियों के अलावा कुछ ऐसी भी सब्जियां हैं, जो आमतौर पर मिट्टी और पानी दोनों जगहों पर बहुत कम लागत और मेहनत में उगाई जा सकती हैं.

चूंकि ऐसी शाकसब्जियों का बहुत ज्यादा व्यावसायिक उत्पादन नहीं किया जा रहा है. ऐसे में अगर किसान कम चलन वाली पोषक गुणों से भरपूर इन शाकसब्जियों की खेती करें, तो अच्छा मुनाफा कमा सकते है.

ऐसा नहीं है कि ऐसी शाकसब्जियों की खेती बड़े लेवल पर नहीं होती है, तो बाजार नहीं मिलेगा, क्योंकि इस में से कुछ ऐसी भी हैं, जिन्हें आमतौर पर हर व्यक्ति जानता है और उस के खास स्वाद व पोषक गुणों के चलते पसंद भी करता है. मगर बाजार में ज्यादा आवक न होने के कारण लोगों तक इन की पहुंच नहीं हो पा रही है. इन्हीं में एक है करमुआ का साग, जिसे आमतौर पर जलीय पालक, वाटर पालक, कलमी साग, स्वेम्प कैबेज, करेमू साग, वाटर स्पिनेच या नारी साग के नाम से भी जाना जाता है. यह साग आमतौर पर तालाबों में अपनेआप उगता है और विकसित होता है. लेकिन इस की कई उन्नत किस्में भी हैं, जिन का तालाब और खेत दोनों में खेती किया जाना आसान है.

कलमी साग खाने में जितना लजीज होता है, उस से कहीं ज्यादा इस में मौजूद पोषक तत्व इसे खास बनाते हैं. कलमी साग के संपूर्ण भाग का उपयोग खाने में किया जाता है.

आमतौर पर इस के पौधे लतादार होते हैं, जो पानी पर तैरते रहते हैं. यह मुख्यतया उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिसा एवं कर्नाटक में साग के लिए उगाया जाता है. विश्व स्तर पर कलमी साग को थाईलैंड एवं मलयेशिया में भी व्यावसायिक स्तर पर उगाया जाता है, जिस का निर्यात जरमनी, बेल्जियम एवं कनाडा को किया जाता है. सामान्यतः इसे 2 वर्षीय या बहुवर्षीय साग के रूप में उगाया जा सकता है. कलमी साग के पत्ते एवं तने से सब्जी एवं मुलायम भाग को सलाद के रूप में प्रयोग करते हैं.

पोषक तत्वों से है भरपूर

कलमी साग में प्रचुर मात्रा में विटामिन्स पाए जाते हैं, जिस में विटामिन ए, विटामिन सी, ई, के, विटामिन के अलावा डायटरी फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, कौपर, आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटैशियम, सोडियम, जिंक आदि भी प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है.

यह एक शुगर फ्री साग है, इसलिए इसे डायबिटीज के मरीज भी आसानी से खा सकते हैं. इस साग में वसा एवं ऊर्जा मूल्य कम होती है, जबकि जटिल कार्बोहाइड्रेटस की मात्रा अधिक होती है. यह शरीर में कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करने में मददगार है. शाकाहारी व्यक्तियों के लिए यह साग सस्ते प्रोटीन का एक उपयुक्त विकल्प है.

कलमी साग में लौह तत्व यानी आयरन (3.9 (1,980 माइक्रोग्राम), विटामिन सी (37 मिलीग्राम) एवं राइबोफ्लेविन (0.13 मिलीग्राम) प्रति 100 ग्राम खाने योग्य वजन में पाया जाता है. कलमी साग के सभी भागों में औषधीय गुण पाया जाता है, जो प्रमुख रूप से उच्च रक्त चाप यानी हाई ब्लड प्रेशर को ठीक करने में लाभदायक होता है.

यह साग अफीम एवं आर्सेनिक की विषाक्तता को दूर करने के उपायों में भी काफी लाभप्रद होता है. बहुधा यह घबराने की बीमारी, सामान्य कमजोरी, बवासीर, कीटों द्वारा संक्रमण, ल्यूकोडरमा, कुष्ठ रोग, पीलिया, आंख की बीमारी एवं कब्जियत के निदान में भी लाभदायक पाया गया है.

खेती के लिए मिट्टी का चयन

कलमी साग आमतौर पर तालाब और पोखरों में उगाया जाता रहा है, लेकिन बीते कुछ सालों में इस की उन्नत किस्मों के विकास ने इसे सामान्य खेत में उगाए जाने के रास्ते खोल दिए हैं. अब इसे आसानी से अपनी गृहवाटिका में सिंचाई की व्यवस्था द्वारा उगाया जा सकता है.

वर्षा ऋतु में यह हरी पत्तेदार सब्जी के रूप में बाजार में उपलब्ध होता है. इस की खेती के लिए अधिक नमी वाली भूमि की आवश्यकता होती है. ऐसी भूमि, जिस में पानी अधिक देर तक रुकता है, इस की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है. भारी चिकनी मिट्टी, जिस का पीएच मान 5.5-7.0 के मध्य होता है, इस की बढ़वार के लिए उपयुक्त होती है.

उन्नत किस्में

आमतौर पर देश में कलमी साग की खेती देशी किस्मों पर निर्भर रही है, लेकिन उन्नत किस्मों के विकास ने इस के व्यावसायिक खेती के दरवाजे खोल दिए हैं. बीते सालों में भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आईआईवीआर), वाराणसी द्वारा कलमी साग की ‘काशी मनु’ नाम से एक उन्नत किस्म विकसित की गई है, जिसे पानी के अलावा गमलों या गीली जमीन पर भी आसानी से उगाया जा सकता है.

कलमी साग (Kalmi Saag)

बोआई या पौध रोपण

अगर किसान कलमी साग की व्यावसायिक खेती करना चाहते हैं, तो ‘काशी मनु’ प्रजाति के बीजों से पहले नर्सरी तैयार कर रोपाई करें, तो इस का बेहतर परिणाम मिलता है. यह ध्यान रखें कि 2 साल से ज्यादा पुराना बीज न हो, अन्यथा जमाव की समस्या हो सकती है.

नर्सरी में बीज डालने के 24 घंटे पहले पानी में बीज भिगोने से जमाव अच्छा होता है. पौध तैयार करने के लिए जूनजुलाई का महीना सर्वोत्तम होता है. नर्सरी में बीज की बोआई के बाद 5-6 दिनों में जमाव होता है और 5-6 सप्ताह पुरानी पौध रोपण के लिए उपयुक्त होती है.

पौधों की रोपाई 30 x 20 सैंटीमीटर की दूरी पर की जानी चाहिए. कलमी साग का प्रसारण जड़युक्त लताओं द्वारा भी होता है. कलम तैयार करने के लिए 10-20 सैंटीमीटर लंबे, 4-8 गांठ वाले तने उपयुक्त होते हैं. एक हेक्टेयर के खेत में रोपण के लिए 1,70,000 कलमों की जरूरत होती है.

अप्रैलजून का महीना कलम रोपण के लिए अच्छा माना जाता है. इस समय लगाई गई कलमों में बढ़वार अधिक होती है. सूखे खेत में रोपण के लिए ऊंची क्यारियों और उन के साथ नालियां  बनानी चाहिए.

रोपण के पहले फसल को पर्याप्त पोषक तत्व दिए जाने चाहिए. पौध लगाने के बाद नाइट्रोजन 40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए. प्रत्येक फसल कटाई के बाद एक जैविक तरल उर्वरक के प्रयोग से अच्छी पैदावार होती है. नालियों में पानी भर कर सिंचाई का काम एवं अत्यधिक पानी भरने की दशा में जल निकासी का इंतजाम करना चाहिए. गीले खेत में रोपण के लिए खेत की अच्छी तरह जुताई कर के खेत में कलमों को लगा दिया जाता है और कलमों को लगाने के बाद 15-20 सैंटीमीटर गहरा पानी भर दिया जाता है.

कीट एवं बीमारियों का नियंत्रण

कलमी साग के मुख्य फफूंदजनित रोगों में स्टेम राट एवं ब्लैक राट आते हैं. इन रोगों की रोकथाम के लिए रोगरहित भूमि का उपयोग करना चाहिए और तीसरेचौथे साल के अंतराल पर फसल चक्र अपनाना चाहिए. इस में लगने वाले महत्वपूर्ण कीट पत्ती बीटल, एफिड्स और तार कीड़े हैं.

अगर फसल में उपरोक्त कीट व बीमारियों का प्रकोप दिखाई देता है, तो अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक फसल सुरक्षा से संपर्क कर सकते हैं.

कटाई एवं उपज

कलमी साग के पौधे नर्सरी से खेत में रोपने 35-40 दिनों बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. कटाई के दौरान ऊपर की हरी पत्तियों के साथ टहनियों को पानी की सतह से काट लिया जाता है. इस से नई शाखाएं निकलती हैं और पौधे की बढ़वार तेज गति से होती है.

सामान्यतया गरमी एवं बरसात के मौसम में हर एक सप्ताह बाद कटाई की जाती है. सब्जी के रूप में एक महीने में 4-5 कटाई की जाती है. जब पौधे में फूल आना शुरू हो जाता है, तब कटाई रोक दी जाती है.

दक्षिण एवं मध्य भारत में कलमी साग में अक्तूबरनवंबर महीने में फूल आता है. जुलाई से सितंबर के बीच इस के एक हेक्टेयर क्षेत्र से लगभग 50-60 क्विंटल हरी पत्तियों की उपज प्राप्त होती है. कलमी साग का आमतौर पर बाज़ार मूल्य 40 से 50 रुपया प्रति किलोग्राम होता है.

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