हमारे देश की जलवायु ऐसी है, जो तमाम तरह के औषधीय पौधों की खेती के लिए उपयुक्त है. इस से तमाम तरह के लाभदायक औषधीय पौधों की खेती कर के अत्यधिक मुनाफा कमाया जा सकता है, क्योंकि वर्तमान परिवेश में लोगों का हर्बल दवाओं की तरफ रुझान भी तेजी से बढ़ा है. इस की एक प्रमुख वजह इन दवाओं का शरीर पर किसी तरह का बुरा प्रभाव न पड़ना भी है.

औषधीय पौधों की खेती में कम जोखिम होने के कारण हाल के दशक में किसानों का रुझान काफी तेजी से इस की तरफ बढ़ा है. इस की एक वजह यह भी है कि सरकार की तरफ से औषधीय फसल के लिए जरूरी अनुदान मुहैया कराना भी रहा है. इसी के साथ प्रोसैसिंग, पैकेजिंग व मार्केटिंग में भी सरकार जरूरी सहयोग समयसमय पर मुहैया कराती रहती है.

कई जागरूक किसानों ने औषधीय पौधों की खेती में कामयाबी हासिल की है, जिस से उन की खेती की तकनीकी, बीज, रोपाई व मार्केटिंग में दिलचस्पी लेने लगे हैं.

इन्हीं औषधीय पौधों में पीली सतावर की खेती को अपना कर किसान दूसरी फसलों की अपेक्षा अत्यधिक मुनाफा ले सकते हैं. इस का वानस्पतिक नाम एस्पेरेगस रेसमोसुस है. इस के दूसरे नाम शतावर, सतमूली, सतवीर्या या बहुसुता भी है.

पीली सतावर एक कांटेदार आरोही लता है. इस की पत्तियां नुकीली व चिकनी होती हैं. इस की लंबाई 3-5 फुट तक और जडे़ं गुच्छों में 15-50 सैंटीमीटर तक लंबी होती हैं, जिस में एक पौधे से औसतन 10-14 किलोग्राम जड़ हासिल की जा सकती है.

सतावर की जड़ व बीजों की मांग बाजार में अत्यधिक बनी हुई है. इस की सूखी जड़ों की प्रोसैसिंग कर के इन को विदेशी बाजारों में बेच कर अत्यधिक लाभ कमाया जा सकता है, जबकि नामीगिरामी दवा कंपनियां भारत में भी किसानों को सतावर की उपज की अच्छी कीमत दे रही हैं. सतावर की जड़ का प्रयोग कई तरह के टौनिक, कैप्सूल व बलवर्धक दवाआंे को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है.

मिट्टी का चयन

सतावर के नर्सरी और रोपाई के लिए बलुई दोमट और जीवांश के मात्रा की अधिकता वाली जमीन उपयुक्त होती है. साथ ही, सतावर की फसल में पानी की उचित व्यवस्था भी जरूरी है.

उपयुक्त जलवायु

सतावर की खेती के लिए भारत की समस्त जलवायु उपयुक्त है. इस की खेती मैदानी, पहाड़ी, पठारी आदि सभी जगहों पर की जा सकती है.

बीजों का शोधन

नर्सरी में सतावर के बीजों को डालने से पहले बीजों का शोधन बहुत जरूरी है. 5 किलोग्राम बीजों को 15 ग्राम थीरम या कार्बंडाजिम से शोधित करें. बीजों के शोधन के लिए बायोपैस्टी साइड का प्रयोग करना चाहिए. अगर सतावर में उकठा रोग की आशंका है, तो राइजोबियम कल्चर का प्रयोग भी उपयुक्त होता है.

सतावर की नर्सरी

सतावर की खेती के लिए सब से पहले इस की नर्सरी तैयार की जाती है. इस के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. इस की 2 जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरा बना लिया जाता है, फिर इस में गोबर की सड़ी खाद नाडेप कंपोस्ट या केंचुआ खाद को मिला कर जीवांशयुक्त बना लेते हैं. इस के उपरांत 5ग्5 फुट की क्यारियां बना कर मध्य मई से मध्य जून तक सतावर के बीजों को नर्सरी में डाल दिया जाता है.

जब पौधा एक से डेढ़ सैंटीमीटर का हो जाए, तो इस में जैव खाद को छिटकवां विधि से डाल देना चाहिए. इस से नर्सरी में पौधा स्वस्थ होता है. 75 दिनों के पश्चात सतावर के पौधे को खेत में 15 अगस्त के पहले रोपा जाता है, तो 18 माह में इस की खुदाई कर ली जाती है और 15 अगस्त के बाद रोपित करने पर 24 माह बाद खोदा जाता है.

खेती की तैयारी

सतावर को खेत में रोपने से पहले खेत की अच्छी तरह से एक जुताई हैरो या रोटावेटर से कर के उस के पश्चात 2 जुताई कल्टीवेटर से की जाती है. जुताई के बाद 80 टन प्रति हेक्टेयर कंपोस्ट की सड़ी खाद और 50 ग्राम डीएपी और 50 किलोग्राम एमओपी को खेत में मिला दें.

अगर खेत में दीमक के प्रकोप की संभावना हो, तो 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मैलाथियान या 10 किलोग्राम फोरेटेक्स थाइमैंटेंजी या टेमैंटेंजी का उपयोग करें.

पौध रोपण

सतावर की नर्सरी से खेत में रोपित करने की 3 विधियां हैं:

पहली विधि, अति उपजाऊ खेत में लाइन से लाइन की दूरी 25 सैंटीमीटर और पौध से पौध की दूरी 60 सैंटीमीटर रखें. वहीं दूसरी विधि में सामान्य उपजाऊ खेत में लाइन से लाइन की दूरी 20 सैंटीमीटर और पौधे से पौध की दूरी 60 सैंटीमीटर रखें.

तीसरी विधि, कम उपजाऊ खेत में लाइन से लाइन की दूरी 15 सैंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 45 सैंटीमीटर रखी जाती है.

इस प्रकार एक एकड़ खेत में पौध रोपने के लिए 25,000 पौध प्रति हेक्टेयर की जरूरत पडे़गी, जबकि अधिक उपजाऊ खेत में 21,000 व कम उपजाऊ खेत में 30,000 पौधों को खेत में रोपने की जरूरत होती है. सतावर के पौध रोपण के तुरंत बाद खेत की सिंचाई इस प्रकार से करें कि खेत में पानी न रुके.

गैप फिलिंग

सतावर की रोपाई के बाद जो पौधे सूख जाते हैं, उन के स्थान पर दूसरे पौधों को तुरंत लगा देना चाहिए, ताकि पौधों की संख्या कम न होने पाए. अच्छी उपज के लिए खेत में निर्धारित मात्रा में पौधे अवश्य होने चाहिए.

खाद व उर्वरक

पौध रोपने के 2 माह बाद 50 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ की दर से सिंचाई करने के 2 दिन बाद छिटकवां विधि से बोआई करें. फसल की अच्छी पैदावार व बढ़वार के लिए जैविक खादों का प्रयोग करना चाहिए. औषधि निर्माता कंपनियां भी सतावर की फसल में जैव खादों का प्रयोग करने से अच्छा मूल्य देती हैं.

सिंचाई

वर्षा के समय सतावर की फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. यदि वर्षा कम हो, तो खेत की नमी को देखते हुए 1-2 सिंचाई करनी पड़ सकती है. जाड़े के दिनों में सतावर की फसल की एक माह पर सिंचाई की जानी चाहिए. मार्च माह से हर 15 दिन पर सिंचाई करते रहना चाहिए.

निराई, गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण

सतावर की फसल में निराई, गुड़ाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्यांेकि यह कंद वाली फसल है. इसे बढ़ने के लिए खेत का खरपतवार से मुक्त रखना जरूरी है. सतावर की फसल की हर एक माह पर गुड़ाई करते रहें, जिस से मिट्टी हलकी बनी रहे. इस से कंद का तेजी से विकास होता है और कल्ले भी ज्यादा मात्रा में निकलते हैं, इसलिए पौधों में कंदों की मात्रा ज्यादा लगती है. फसल में समयसमय पर निराई कर के खरपतवार को निकाल देना चाहिए. सतावर में खरपतवार नियंत्रण के लिए रसायनांे का प्रयोग न करें. इस से इस की औषधीय गुणवत्ता में कमी आ जाती है.

कीट व बीमारियां

सतावर की फसल में कोई विशेष कीट या बीमारियां नहीं लगती हैं. कभीकभी देखा गया है कि कुछ पौधों में उकठा बीमारी आ जाती है. इस के नियंत्रण के लिए पौध रोपण के समय 1 ग्राम थीरम या बाविस्टीन का घोल बना कर नर्सरी से उखाडे़ गए पौधों की जड़ों की 5 मिनट तक डुबो कर पानी सूखने पर रोपाई करें. अगर फिर भी फसल में किसी प्रकार का कीट लग जाए, तो जैव कीटनाशी या मक्का कीटनाशी का ही प्रयोग करें. अगर पौधों में उकठा का प्रकोप ज्यादा होने लगे, तो लहसुन का घोल बना कर 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. इस के अलावा तंबाकू व मदार की पत्तियों का घोल भी उकठा व कीट नियंत्रण में लाभदायक हैं.

बीज की तुड़ाई

सतावर की फसल में नवंबर या दिसंबर माह में फूल आता है और मार्च के अंतिम सप्ताह तक इस के बीज पक जाते हैं. जब पौधों में बीज का रंग काला हो जाए और यह काली मिर्च की तरह सूख कर हो जाए, तो इन को पौधों से तोड़ कर सुखा लेना चाहिए. इस से अगली फसल लेने के लिए नर्सरी का जमाव अच्छा होता है. बीज को सुखाने के बाद सीलन वाली जगह पर न रख कर सूखी जगह पर भंडारित कर देना चाहिए.

जड़ों की खुदाई

सतावर की जड़ों की खुदाई 18 माह से 24 माह के बीच में की जा सकती है. अगर सतावर के पौधों से अगले साल भी उपज लेनी है, तो पौधों के अगलबगल खुदाई कर के कंद को पौधों से अलग कर लेना चाहिए और पुनः पौधों की जड़ को मिट्टी से ढक कर सिंचाई कर दें.

जड़ों की प्रोसैसिंग

खुदाई करने के तुरंत बाद सतावर की जड़ों को पौधे से तोड़ कर अलग कर इस को आधा घंटे में उबाल कर इस का छिलका अलग कर लिया जाता है. फसल की अच्छी स्थिति होने पर 1 एकड़ खेत में 30-40 क्विंटल सूखी जड़ प्राप्त होती है.

औषधीय फसल सतावर की मांग विदेशों में काफी अधिक है. रसायनयुक्त खेती करने से पैदावार तो अधिक होती है, पर कीमत कम मिलती है और देश के अंदर ही इस की बिक्री हो पाती है.

भंडारण

सतावर की प्रोसैसिंग के बाद उस का सही तरीके से भंडारण करना बहुत जरूरी हो जाता है. भंडारण के लिए एयरटाइट बैग में जड़ों को पैक कर हाट स्टोर में भंडारित कर दें. अगर स्थानीय स्तर पर हाट स्टोर उपलब्ध नहीं हैं, तो भूसे के अंदर भी रख कर भंडारित किया जा सकता है. भंडारित किए गए सतावर की जड़ में हवा नहीं लगनी चाहिए, क्योंकि इस से जड़ें पसीज कर आपस में चिपक जाती हैं, जिस से इस में फफूंदी लग जाती है और जड़ें खराब हो जाती हैं. छिलकारहित जड़ को एयरटाइट बैग में पैक कर हाट स्टोर में भंडारित किया जाता है.

यदि सतावर की खेती जैविक विधि से की जाए, तो इस की मांग व मूल्य दोनों हर्बल कंपनियों में सब से ज्यादा है, जो अच्छे मुनाफे का एक माध्यम भी है. इस प्रकार सतावर की खेती न केवल अधिक मुनाफा देने वाली साबित होगी, बल्कि अच्छी सेहत के लिए एक अमूल्य खजाना भी है.

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