तिवड़ा को अलगअलग नामों से जाना जाता है, जैसे छत्तीसगढ़ में तिवड़ा को लाखड़ी या खेसारी के नाम से जाना जाता है. तिवड़ा की खेती मुख्य रूप से रबी के सीजन में की जाती है. इस की खेती दाना व चारा दोनों के लिए की जाती है.

छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश राज्यों के आदिवासी बहुल होने के चलते वहां तिवड़ा को दाल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है व इस की हरी फलियों को सब्जी की तरह भी इस्तेमाल करते हैं.

तिवड़ा में 26-28 फीसदी तक प्रोटीन पाया जाता है. इस में कार्बोहाइड्रेट व मिनरल भी पाए जाते हैं. वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक इस के दानों में हानिकारक बीटा एन औक्सीलाइल डाई अमीनो प्रोपियोनिक अम्ल पाया जाता है जिस के चलते लगातार सेवन करने से यह पैरों की मांसपेशियों के स्नायु तंत्र पर बुरा असर डालता है और लगातार सेवन करने वाले लोगों में लंगड़ापन होने का डर बना रहता है जिसे लैथरिज्म कहते हैं. वैसे, वर्तमान में वैज्ञानिकों के द्वारा इस की नवीन किस्मों की खोज की जा चुकी है जिस में ऐसे हानिकारक तत्त्वों की मात्रा न के बराबर रह गई है.

जमीन की तैयारी : तिवड़ा की खेती सभी तरह की जमीन पर की जा सकती है लेकिन डोरसा व कन्हार जमीन अच्छी होती है. इस के अंकुरण और ज्यादा उत्पादन के लिए खरपतवार रहित भुरभुरी मिट्टी होनी चाहिए और पाटा चला कर खेत को समतल कर लेना चाहिए.

सही जलवायु : यह रबी मौसम की फसल है. फसल की अच्छी बढ़वार के लिए ठंडे मौसम की जरूरत होती है. तिवड़ा की फसल सूखा व ज्यादा बारिश दोनों को सहन करने की कूवत रखती है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
सब्सक्राइब करें
अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...