हमारे देश में बाजरा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में खासकर उगाया जाता है और राजस्थान में तो बाजरा काफी मात्रा में उगाया जाता है क्योंकि बाजरा कम पानी में पैदा होने वाली फसल है और उत्तर प्रदेश में पैदावार के मामले में गेहूं, धान, मक्का के बाद बाजरे का ही नंबर आता है.
बाजरा मोटे अनाजों की श्रेणी में आता है और बाजरे की फसल को पशुओं के लिए पौष्टिक हरे चारे के रूप में भी उगाया जाता है.
पुराने समय में लोग ज्यादातर बाजरा व मक्का जैसे मोटे अनाजों की ही रोटी खाते थे. उस समय गेहूं की खेती बहुत ही कम होती थी. आज के समय में भी बाजरे को लोग बड़े चाव से इस्तेमाल करते हैं. तरहतरह के पकवानों में इस का इस्तेमाल होता है.
आज अनेक बड़ी कंपनियां मल्टीग्रेन आटे में भी बाजरे का इस्तेमाल करती हैं. बाजरे से अनेक प्रकार के बिसकुट, नमकीन, केक जैसी अनेक पौष्टिक चीजें बन रही हैं. बहुत से लोग तो इस तरह की चीजों को बना कर बेचते भी हैं. इन्हें बनाने के लिए कई इलाकों में ट्रेनिंग भी दी जाती है.
बाजरा कम पानी में पैदा होने वाली फसल है, जिस की थोड़ी देखभाल और कर ली जाए तो बेहतर नतीजे आते हैं. तो आइए जानते हैं बाजरे की पैदावार बढ़ाने के उन खास तौरतरीकों को और उन खास बीजों को, जिन की जानकारी हमें बाजरा अनुभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार से मिली है.
पैदावार के उपाय
* बाजरे की खेती करने के लिए गरमी के दिनों में खेत की 1-2 जुताई और 3-4 सालों में एक बार गहरी जुताई जरूर करनी चाहिए जो बीमारी रोकने और जमीन में नमी बनाए रखने के लिए बहुत ही जरूरी है.
* सिफारिश के मुताबिक सही मात्रा में प्रमाणित और उपचारित बीज (1.5-2 किलोग्राम प्रति एकड़) का इस्तेमाल करना चाहिए.
* बिजाई लाइनों में करनी चाहिए और लाइन से लाइन का फासला 45 सैंटीमीटर रखें. बोआई इस प्रकार करें कि बीज तकरीबन 2.0 सैंटीमीटर गहराई पर पड़ें. पौधे से पौधे की दूरी 10 से 12 सैंटीमीटर रहे.
* बेहतर फसल के लिए रिजर सीड ड्रिल का बिजाई के लिए इस्तेमाल करना चाहिए.
* जुलाई का पहला पखवाड़ा इस की बिजाई का सही समय है. परंतु 10 जून के बाद भी 50-60 मिलीमीटर बारिश होने पर बाजरे की बिजाई की जा सकती है.
* बिजाई के 3 से 5 हफ्ते बाद निराईगुड़ाई जरूरी है जो खरपतवार की रोकथाम तो करती ही है साथ ही नमी बनाए रखने के लिए भी सही है: इस से पौधों की जड़ों तक सही मात्रा में हवा का भी आवागमन हो जाता है.
* अगर निराईगुड़ाई नहीं कर सकते या फिर मजदूरों की कमी है तो खरपतवारनाशक एट्राजिन (50 फीसदी) 400 ग्राम प्रति एकड़ 250 लिटर पानी में मिला कर बिजाई के समय छिड़कें. यदि बिजाई के तुरंत बाद एट्राजीन का इस्तेमाल न कर सकें तो बिजाई के 10-15 दिन के बाद भी उतनी ही मात्रा का इस्तेमाल कर सकते हैं.
* बिजाई के 3 हफ्ते बाद देखें कि जहां कम पौधे हैं वहां पर खाली जगह है, वहां पर दोबारा बीज डाल दें. बारिश वाले दिन यह काम अति उचित है ताकि सही तादाद में पौधे हासिल हो सकें और बेहतर पैदावार मिल सके.
* उर्वरक की मात्रा मिट्टी जांच के आधार पर इस्तेमाल करें.
* फसल में फुटाव होना, फूल आना और बीज की दूधिया अवस्था में बारिश न होने पर सिंचाई करना बहुत जरूरी है और बारिश आधारित इलाकों में नमी बनाए रखने के लिए विभिन्न उपायों का इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है.
* बाजरे की उत्पादन कूवत 50-55 मन प्रति एकड़ तक मिल सकती है लेकिन यह तभी संभव है जब किसान उपरोक्त बातों का ध्यान रखेंगे.
बाजरे की उन्नत किस्में
एचएचबी 67 (संशोधित) : इस संकर किस्म में बायोटैक्नोलौजी विधि से जोगिया प्रतिरोधी जीन डाले गए हैं. देखने से यह किस्म हूबहू एचएचबी 67 जैसी ही है लेकिन इस में जोगिया बीमारी नहीं लगती और सिट्टों पर छोटेछोटे बाल भी होते हैं.
इस के दानों व सूखे चारे की औसत पैदावार क्रमश: 31 मन व 90 मन प्रति एकड़ है. यह किस्म 62 से 65 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इस वजह से यह किस्म कुछ हद तक सूखे की स्थिति को सहन करने में सक्षम है और वैज्ञानिक विधि द्वारा खेती करने की अवस्था में यह 37.5 मन प्रति एकड़ तक पैदावार दे सकती है.
एचएचबी 197 : इस संकर किस्म में सिट्टों पर लंबे बाल होते हैं जो फसल को पक्षियों के नुकसान से रोकते हैं. यह किस्म अच्छे फुटाव वाली होने के साथसाथ जोगिया व कांगियारी रोगरोधी भी है. इस के दानों व सूखे चारे की औसत उपज क्रमश: 35 मन व 115 मन प्रति एकड़ है. यह किस्म 68-72 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. अच्छे प्रबंधन से यह किस्म 50 मन प्रति एकड़ तक पैदावार दे सकती है.
एचएचबी 223 : यह किस्म जोगिया रोगरोधी व कांगियारी के प्रति सहनशील है. इस किस्म के सिट्टों पर जामुनी रंग के लंबे बाल होते हैं जो फसल को पक्षियों के नुकसान से बचाते हैं. इस के दानों व सूखे चारे की औसत उपज क्रमश: 36.3 मन व 115 मन प्रति एकड़ है. यह किस्म 72-75 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है.
मध्यम ऊंचाई की बढ़ने वाली इस संकर किस्म में फुटाव अच्छा होता है. पत्तियां मध्यम चौड़ी व गहरे हरे रंग की होती हैं. अच्छा रखरखाव करने पर यह किस्म 55 मन प्रति एकड़ पैदावार दे सकती है.
एचएचबी 226 : इस किस्म के सिट्टे मोमबत्ती के आकार के मध्यम लंबे होते हैं जिन पर भूरे रंग के लंबे बाल होते हैं जो फसल को पक्षियों के नुकसान से बचाते हैं.
इस के दानों व सूखे चारे की औसत उपज क्रमश: 35 मन व 115 मन प्रति एकड़ है. यह किस्म 70-72 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है.
अच्छा रखरखाव करने पर यह संकर किस्म 44 मन प्रति एकड़ तक पैदावार देने की कूवत रखती है. यह किस्म सूखे के प्रति सहनशील है और जोगिया रोगरोधी है.
एचएचबी 234 : इस किस्म के सिट्टे मध्यम लंबे होते हैं. इस के दानों व सूखे चारे की औसत उपज क्रमश: 31 मन व 95-98 मन प्रति एकड़ है. यह किस्म 70-72 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. अच्छा रखरखाव करने पर यह संकर किस्म 45 मन प्रति एकड़ तक पैदावार देने की कूवत रखती है. यह किस्म सूखे के प्रति सहनशील है और जोगिया रोगरोधी है.
एचएचबी 272 : इस किस्म के सिट्टे मध्यम लंबे होते हैं. इस के दानों व सूखे चारे की औसत उपज क्रमश: 37.3 मन व 90 मन प्रति एकड़ है. यह किस्म 65-68 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है.
अच्छा रखरखाव करने पर यह संकर किस्म 44.8 मन प्रति एकड़ तक पैदावार देने की कूवत रखती है. यह किस्म सूखे के प्रति सहनशील है और जोगिया रोगरोधी है.
एचसी 10 व एचसी 20 : जोगिया प्रतिरोधक संयुक्त किस्में, मध्यम मोटा तना, सीधा लंबा व ऊपर से थोड़ा पतला सिट्टा. सामान्य बीजाई के लिए उपयुक्त, चारा ज्यादा गुणवत्ता वाला. एचसी 10 व एचसी 20 के दानों व सूखे चारे की औसत उपज क्रमश: 29 मन व 125 मन और 31 मन व 130 मन प्रति एकड़ है. एचसी 10 व एचसी 20 किस्म क्रमश: 75-80 व 80-83 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है.