जब भी किसानों की खुश्हाली की बात आती है, ज्यादातर किसान अपनेआप को कर्ज में डूबा हुआ पाते हैं. ज्यादा बारिश, ओला गिरना, सूखा पड़ना और सरकारी नीतियों के अलावा अपनी इस हालत के लिए कहीं न कहीं किसान खुद भी जिम्मेदार होता है.

आज के दौर में किसान की फसल आने के बाद उस का बाजार भाव काफी कम हो जाता है जिस का नुकसान उन्हें उठाना पड़ता है क्योंकि किसान सिर्फ उस फसल की परंपरागत बिक्री पर ही निर्भर रहता है.

अगर किसान थोड़ा सा जागरूक हो जाएं और नवाचार में भरोसा करें तो आज कई फसल पैदावार ऐसी होती हैं जिन्हें आधुनिक तकनीक से प्रोसैस कर उन के अनेक वैल्यू एडेड प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं जैसे आलू और केले से चिप्स, बाजरा से बिसकुट, केक, आम, नीबू, मिर्च आदि से अचार, आंवला से जैम, मुरब्बा, अनाज से लड्डू, नमकीन वगैरह.

इस तरह के नवाचार से न केवल किसान की आमदनी बढ़ेगी बल्कि उस की साख में भी इजाफा होगा.

तो क्यों न किसान पारंपरिक फसलों से हट कर कुछ ऐसी फसलें उगाएं जिन से उन्हें और भी बेहतर फायदा मिले. एलोवेरा यानी ग्वारपाठा भी ऐसी ही एक फसल है जिसे प्रोसैस कर अनेक तरह के वैल्यू एडेड प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं. सब्जी, अचार, ब्यूटी प्रोडक्ट्स और आयुर्वेदिक दवाओं में एलोवेरा का इस्तेमाल होता है.

औषधि के रूप में ग्वारपाठा के अनेक रसायनों का इस्तेमाल जोड़ों का दर्द दूर करने, पेट की बीमारी का उपचार, यहां तक कि कैंसर के निदान तक में किया जाता है लेकिन ग्वारपाठा का दैनिक जीवन में उपयोग अब तक केवल सब्जी, जूस वगैरह तक ही सीमित था. अब इस के अन्य उत्पाद बनाने की दिशा में शोध का काम जारी है.

ग्रीन कैमिस्ट्री रिसर्च सैंटर डूंगर कालेज, बीकानेर, राजस्थान की शोधार्थी पूनम कवर, मानसी जोशी, काजल चारण और अनु जैन ने इस दिशा में कई नवाचार किए हैं. इन लड़कियों ने ग्वारपाठा की बरफी तैयार कर आहार विशेषज्ञों को हैरत में डाल दिया है क्योंकि यह बरफी न केवल खाने में पौष्टिक और स्वादिष्ठ है बल्कि इसे कई दिनों तक स्टोर कर के भी रखा जा सकता है.

पूनम ने बताया कि बचपन से ही उन्होंने अपनी मां को घर में ग्वारपाठा के लड्डू बनातेखिलाते देखा है. शोध के दौरान जब इन्होंने यह जानकारी अपनी मार्गदर्शक डाक्टर उमा राठौर से साझा की तो सब को सहज ही इस दिशा में आगे बढ़ने की राह मिल गई और फिर ग्वारपाठा की बरफी बनाने पर काम शुरू हुआ.

जब बरफी बन कर तैयार हुई तो इस का स्वाद लोगों की जबान पर चढ़ गया. इसे पूरी तरह से ग्रीन कैमिस्ट्री की उन्नत तकनीक से बनाए जाने के चलते इस की विधि पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित थी.

खाने में रुचिकर होने के चलते ग्वारपाठा से बने ये वैल्यू एडेड प्रोडक्ट दैनिक जीवन में इस का उपयोग बढ़ाने में सहायक साबित होंगे.

ग्वारपाठा के लड्डू व बरफी बनाने की विधि

लड्डू : ग्वारपाठा के लड्डू बनाने के लिए सब से पहले इसे किनारों से काट कर इस के कांटे हटा दें. अब एक तेज धार वाले चाकू से छील कर इस का जैल निकाल लें. इस जैल को आटे और घी के साथ मिला कर अच्छी तरह से गूंध लें. गूंधे हुए आटे से छोटीछोटी मठरी बना कर उन्हें धीमी आंच पर शुद्ध घी में तल लें. ठंडा होने पर मिक्सचर में पीस कर चूरमा बना लें. इस में बराबर की मात्रा में चीनी और इच्छानुसार मेवे डालें और गरम घी डाल कर लड्डू की तरह बांध लें. इन्हें ज्यादा पौष्टिक बनाने के लिए गोंद भी डाला जा सकता है.

बरफी : ग्वारपाठा की बरफी बनाने के लिए इस की पत्तियों के किनारे काट कर कांटे हटा लें. अब इसे कद्दूकस कर लें. कद्दूकस किए गए ग्वारपाठा को एक मोटे तले की कड़ाही में बराबर मात्रा में चीनी डाल कर चलाते रहें. धीरेधीरे यह गाढ़ा होने लगेगा. जब चार तार की चाशनी बन जाए तब गैस बंद कर दें और फिर थाली या प्लेट के तले में घी लगा कर इस की मोटी परत बिछा दें. थोड़ा जमने पर बरफी की शक्ल में काट कर स्टोर कर लें.

पूनम ने बताया कि मीठी बरफी के बाद अब ग्वारपाठा के नमकीन व्यंजन बनाने की विधियों पर भी शोध किया जाएगा. साथ ही, अब ऐसे स्टेबलाइजर या पौलीसेक्राइड खोजने की कोशिश भी की जा रही है जिन की मदद से इन उत्पादों को और भी अधिक समय तक स्टोर किया जा सके और लंबे समय तक इन का फायदा उठाया जा सके.

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