खरीफ फसलों में धान की प्रमुख जगह है. धान की फसल में तमाम तरह के कीट लगते हैं. इस के चलते धान की उपज और क्वालिटी दोनों पर ही बुरा असर पड़ता है.
धान की कीटों का समेकित प्रबंधन करना बहुत आसान है. धान की अधिक उपज लेने के लिए किसान समेकित कीट प्रबंधन विधि अपनाएं ताकि वे धान की अधिक उपज ले सकें.
धान की फसल के लिए उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में गरम व नम आबोहवा जरूरी है. यह मौसम कीटों की बढ़वार और प्रजनन के लिए ज्यादा मुफीद रहता है.
भारत में धान की फसल में मुख्य कीट तनाबेधक, गालमक्खी, तने का फुदका, गंधी बग, आर्मी वर्म, पत्ती लपेटक वगैरह का प्रकोप ज्यादा होता है.
तनाबेधक
धान के पौधों से कल्ले निकलते समय यह कीट हमला करता है. इस कीट की सूंड़ी तने के बीच भाग को नुकसान पहुंचाती है. इस के चलते तना सूख जाता है. उस सूखे भाग को मृत मध्य भाग कहा जाता है. पुष्प गुच्छा कलिका के विकसित होने के बाद कीट हमला होने पर सूखी हुई बालें बाहर निकलती हैं.
प्रबंधन
* नाइट्रोजन उर्वरक का ज्यादा इस्तेमाल न करें.
* रोपाई के 30 दिन बाद ट्राइकोडर्मा जैथेनिकम 1.0-1.5 लाख प्रति हेक्टेयर प्रति हफ्ते की दर से 2-6 हफ्ते तक छोड़ें.
* रोपाई से पहले पौधों की चोटियां जरूर काट दें.
* मृत मध्य भाग और सफेद बालियों को काट कर जमीन में दबा दें.
* कार्बोफ्यूरान 3जी प्रति हेक्टेयर या क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.
* प्रकाश पाश के इस्तेमाल से पीले तनाछेदक की तादाद पर निगरानी रखें.
* पौधों की कटाई मृदा स्तर तक करें और फसल के ठूंठों को जला दें ताकि कीट का प्यूपा और सूंडि़यां दोनों जल जाएं.
गालमक्खी : भारत के कुछ इलाकों में गालमक्खी धान की फसल को काफी नुकसान पहुंचाती है. डिंबकों द्वारा खाए जाने के चलते धान के पौधों के नियमित कल्ले नलिकाकार पिटिकाओं का रूप ले लेते हैं, जो बाद में बिना बाल धारण किए सूख जाते हैं.
प्रबंधन
* डायजिनोन 3-4 अनुप्रयोगों द्वारा (रोपाई के 10 दिन बाद शुरू हो कर) इस कीट का अच्छा नियंत्रण हो जाता है.
* जिन इलाकों में इस कीट का प्रकोप ज्यादा होता है वहां थिमेट 10 जी दानेदार पदार्थ को 12-24 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पहली बार रोपाई के 10-15 दिन बाद और दूसरी बार 40-50 दिन बाद डालने से गालमक्खी का प्रकोप कम किया जा सकता है.
तने का फुदका
इस कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों ही पौधे के तनों से रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं. ज्यादा प्रकोप की अवस्था में खेत में सूखी फसल के गोलाकार क्षेत्र नजर आते हैं. इन लक्षणों को हापर बर्न की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि ये कीट पौधे के तनों में रहते हैं इसलिए ये पत्तों पर नजर नहीं आते हैं इसलिए फसल की निगरानी करना जरूरी है.
प्रबंधन
* नाइट्रोजन उर्वरक का कम ही इस्तेमाल करें.
* खेतों की मेंड़ों पर खरपतवारों का नियंत्रण करते रहें.
* खेत में लगातार पानी भर कर न रखें और सूखने पर ही दोबारा सिंचाई करें.
* प्रकाश पाश से कीटों की निगरानी करें.
* कीट ग्रसित फसल पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी 2 मिलीलिटर पानी से पत्तों पर छिड़काव करें.
* कीटनाशक का छिड़काव करते समय नोजल पौधों के तनों की ओर ही रखें.
गंधी बग
यह कीट आकार में बड़ा होता है और खेत में दुर्गंध पैदा करता है इसलिए इसे गंधी बग कहा जाता है. शिशु व प्रौढ़ दोनों ही दूधिया अवस्था में दानों का रस चूस कर उन्हें खोखला कर देता है.
कीट द्वारा चूसी हुई जगह मटमैली सफेद रंग की हो जाती है और आसपास की जगह पर गहरा भूरा रंग हो जाता है. गंधी बग से ग्रसित दानों पर काले रंग के धब्बे बन जाते हैं.
प्रबंधन
* खेतों में बोआई या रोपाई एक ही समय न करें.
* नाइट्रोजन उर्वरक का ज्यादा इस्तेमाल न करें.
* खरपतवारों जैसे श्यामघास (एकानोकलोआ) को खेत की मेंड़ों से निकाल दें.
* प्रकाश पाश के इस्तेमाल से कीटों को पकड़ कर जला दें.
जरूरत पड़ने पर मैलाथियान 50 ईसी 1 मिलीलिटर प्रति प्रति लिटर पानी की दर से पत्तों पर छिड़काव करें.
आर्मी वर्म
इसे सैनिक कीट भी कहा जाता है. यह कीट मध्यम कद का होता है. यह सलेटी भूरे रंग का होता है. इस के आगे के पंखों पर काले चकत्ते पाए जाते हैं.
यह कीट नर्सरी के पौधों को कुछ इस तरह से कुतरकुतर कर खा जाता है जैसे कि उन्हें पशुओं ने खा लिया हो. ये कीट झुंड में पाए जाते हैं. रोपी गई फसल में ये कीट पत्तियों के बीच की शिराओं को छोड़ते हुए पूरी पत्तियों को चट कर जाते हैं.
प्रबंधन
* नाइट्रोजन का ज्यादा इस्तेमाल न करें.
* गरमियों में खेत की गहरी जुताई करें.
* पौधशाला की बचीखुची पौध व खेत में खरपतवारों को हटा दें.
* प्रकाश पाश का इस्तेमाल कर कीटों को इकट्ठा कर जला दें.
* खेत के कुछ अंतराल पर पानी की निकासी कर दें.
* जरूरत पड़ने पर क्लोरोपाइरीफास
20 ईसी 2.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से पर्णीय छिड़काव करना चाहिए.
हिस्पा
इस कीट के भौरे नीले, काले रंग के होते हैं, जो पत्तियों के क्लोरोफिल को खा कर सफेद सीढ़ीनुमा लकीरें बना देते हैं. इस भौरे की सूंडि़यां पत्तियों के भीतर छेद कर के भूरे रंग का बना देती हैं.
प्रबंधन
* भौरे को इकट्ठा कर के जला दें.
* खरपतवारों को नियंत्रित करते रहें.
* पौधों की चोटियों को रोपाई से पहले काट दें.
* जरूरत पड़ने पर ट्राइजोफास 20 ईसी 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी प्रति हेक्टेयर की दर से पत्तों पर छिड़काव करें.
पत्ती लपेटक
इस कीट के पतंगे संतरी भूरे रंग के होते हैं. इन के पंखों के मध्य में टेढ़ीमेढ़ी रेखाएं पाई जाती हैं.
पतंगे की सूंड़ी पत्ते के दोनों किनारों को सिल कर इस के हरे पदार्थ को खाती हैं, जिस के चलते पौधे के भोजन बनने पर उलटा असर पड़ता है. ज्यादा हमला होने की अवस्था में पत्तों पर सफेद धब्बे दूर से ही नजर आते हैं.
प्रबंधन
* नाइट्रोजन का इस्तेमाल ज्यादा न करें.
* खरतपवारों को हटाते रहें.
* प्रकाश पाश के इस्तेमाल से कीटों पर निगरानी रखें.
* ट्राइकोग्रामा 1.0-1.5 लाख प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ें.
* परभक्षी जैसे बीटल का संरक्षण करें.
* जरूरत पड़ने पर इंडोक्सकार्ब 14.5 एससी 1 मिलीलिटर प्रति 2 लिटर पानी में मिला कर पर्णीय छिड़काव करना चाहिए.
ध्यान देने योग्य बातें
* शुरू में पौध फुदका या तनाछेदक का प्रकोप होने पर दानेदार कार्बोफ्यूरान 3जी का ही इस्तेमाल करें.
* यदि पत्ती लपेटक भी आने लगे तो कारटेप हाइड्रोक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी के घोल का पर्णीय छिड़काव करें. इस के बाद भी कीटों का प्रकोप जारी रहने पर पौध फुदका की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल या बोप्रोफेजिन 25 एसी 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी और तनाछेदक के लिए एसीफेट 25 एसपी घोल का इस्तेमाल करें.
* एक ही प्रकृति के 2 कीटनाशकों का इस्तेमाल कदापि न करें.
* आजकल बाजार में कीटनाशियों के मिश्रण भी आसानी से मिल जाते हैं, जो विभिन्न प्रकार के कीटों को नियंत्रित करने में मददगार होते हैं. इस से हर कीट के लिए अलग कीटनाशी की जरूरत नहीं पड़ती है जैसे कि बोप्रोफेजिन एसीफेट (20 फीसदी) और एसीफेट (50 फीसदी) 2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी या फ्लवेडिमाइड 40 फीसदी और बोप्रोफेजिन 20 फीसदी 2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर वाली या इथिपोल 40 फीसदी और इमिडाक्लोप्रिड (40 फीसदी) 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी पौध फुदका, पत्ती लपेटक व तनाछेदक का नियंत्रण करते हैं.