हरियाणा प्रदेश में गन्ना फसल की बिजाई तकरीबन 1.40 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है. शरदकालीन (सितंबर/ अक्तूबर माह) में बोआई फसल गन्ना क्षेत्रफल के लगभग 10-12 फीसदी हिस्से में की जाती है. अगेती शरदकालीन गन्ना की फसल वसंतकाल में बोए गए गन्ने से 20-25 फीसदी व पछेती बिजाई से 40-50 फीसदी अधिक पैदावार देती है व जल्दी पक कर तैयार हो जाती है.
गन्ने की फसल में आमदनी लगभग एक साल बाद मिलती है. वहीं सर्दी के मौसम में फसल की बढ़वार व फुटाव नहीं होता, परंतु इस दौरान गन्ना फसल पर बिना किसी बुरे असर के अंत:फसल उगा कर अतिरिक्त आमदनी ली जा सकती है.
वैसे तो गन्ने के साथ अंत:फसल का प्रचलन रहा है, परंतु आज के युग में प्रति एकड़ अधिक आमदनी के लिए गन्ने की फसल में वैज्ञानिक ढंग से अंत:फसलों को उगाना आवश्यक हो गया है.
आमतौर पर अंत:फसल की बिजाई के लिए समतल विधि का प्रयोग बिना लाइन के छींटा विधि से की जाती है, जिस से अंत:फसलों व गन्ने में अंत:क्रियाएं करने में मुश्किलें आती हैं और अंत:फसल की कटाई में परेशानी भी होती है.
बैड प्लांटिंग विधि द्वारा अंत:फसलीकरण
बैड प्लांटिंग विधि फसलों की बिजाई के लिए काफी मददगार साबित हुई है. बैड प्लांटर मशीन द्वारा 75-90 सैंटीमीटर की दूरी पर कूड़ में गन्ना और बैड पर अंत:फसल की बिजाई की जा सकती है.
अंत:फसल के लिए निर्धारित बीज व खाद की मात्रा मशीन में डाल कर बिजाई करें. उस के बाद कूड़ों में सिफारिश की गई मात्रा में गन्ने की 2 आंखों वाला बीज व खाद डालें. पोरी ढकने वाले यंत्र या कस्सी से मिट्टी डाल कर आधे कूड़ की ऊंचाई तक हलका पानी लगाएं.
अंत:फसलीकरण के लाभ
सामान्य बिजाई की तुलना में इस बहुद्देशीय बिजाई तकनीक के और भी लाभ हैं. बीज की मात्रा 20-25 फीसदी तक कम और पानी की 20-30 फीसदी तक बचत होती है. प्रकाश, भूमि एवं प्रकाश तत्त्वों की उपयोग क्षमता में वृद्धि से अंत:फसलों का दाना मोटा और अधिक उपज मिलती है. जलभराव, क्षारीय/अम्लीय पानी वाले क्षेत्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है. पौधों की अच्छी बढ़वार के कारण खरपतवारों का प्रकोप कम और अंत:क्रियाएं करने में आसानी हो जाती है.
दलहनी फसलें, जिन में हलकी सिंचाई आवश्यक है, परंतु अधिक पानी लगाने से नुकसान होता है. फसलों के लिए यह विधि उत्तम है. पानी देने के बाद यदि वर्षा आ जाती है, तो भी अंत:फसलों पर बुरा असर नहीं पड़ता, क्योंकि पानी नालियों द्वारा बाहर निकाला जा सकता है. इस से किसान के परिवार व कृषि मजदूरों को अतिरिक्त रोजगार मिलता है.
अंत:फसलों को दी गई सिंचाई गन्ने की फसल के लिए भी पर्याप्त रहती है. दलहनी फसलें गन्ने के साथ लेने से मुख्य फसल में 10-25 फीसदी कम नाइट्रोजन डालने की जरूरत पड़ती है. खाली जगह में अंत:फसल लेने से खरपतवार की समस्या कम हो जाती है. लहसुन, धनिया व प्याज जैसी अंत:फसलें गन्ने में चोटी बेधक व कंसुआ के प्रकोप को कम करती है.
अंत:फसलों के अवशेषों में भूमि में मिलाने से भूमि की भौतिक संरचना में सुधार आता है.
अंत:फसलीकरण के लिए मुख्य बातें
फसल का चुनाव : अंत:फसल की किस्म कम समय यानी 3 से 4 महीने में पकने वाली व सीधी बढ़ने वाली व कम शाखाओं वाली (गन्ने पर छाया न करें) हो, जो कम समय में पक कर तैयार हो जाए, जिस की पानी व खाद जैसी जरूरतें गन्ने की फसल जैसी हों और किसान अच्छी तरह से संभाल सके. जिस फसल को बेचने में कठिनाई न हो, जिस से गन्ना फसल में ज्यादा कीड़ों व बीमारियों का प्रकोप न हो और फसल एकसाथ पक कर तैयार हो जाए, अंत:फसलीकरण के लिए उचित है.
सिंचाई : बैड प्लांटिंग में गन्ने के उचित जमाव के लिए पहली सिंचाई बिजाई के 1-2 दिन बाद व दूसरी सिंचाई 9-10 दिन बाद अवश्य करें. दूसरी सिंचाई न करने की अवस्था में पोरियों के ऊपर पपड़ी बन जाती है, जिस से जमाव प्रभावित होता है.
शुरू में सिंचाई अंत:फसल की जरूरत के मुताबिक करें और अंत:फसल की कटाई के बाद सिंचाई गन्ने की फसल के मुताबिक करें.
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
गन्ने की फसल के लिए नाइट्रोजन अंत:फसल की कटाई के बाद डालें. अगर नाइट्रोजन पहले डाल दी जाए, तो अंत:फसल की बढ़वार ज्यादा हो जाएगी और वह मुख्य फसल को नुकसान पहुंचाएगी.
जिन किसानों के पास बहुद्देशीय मशीन है, वे अंत:फसल की खाद व बीज बिजाई के समय मशीन से ही डाल सकते हैं. जिन के पास मशीन नहीं है या ट्रैंच प्लांटिंग मशीन से बिजाई के साथ अंत:फसलीकरण करते हैं. वे अंत:फसल की खाद खेत तैयार करते समय आखिरी सुहागा लगाने से पहले डालें और गन्ने की बिजाई के समय की खाद सिफारिश की गई मात्रा में कूड़ों में ही डालें.
अंत:फसल में खाद डालने का समय वही होना चाहिए, जो अकेली फसल में है. दोनों फसलों की खाद की जरूरतें अलगअलग पूरी करें. अंत:फसल की खाद की मात्रा उस के द्वारा अधिगृहीत क्षेत्र पर निर्भर करेगी.
खरपतवार की रोकथाम
गन्ने की लाइन के अंदर के बजाय गन्ने की लाइनों के साथ उगने वाले खरपतवार ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. विभिन्न परीक्षणों के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि खरपतवार गन्ना फसल में पानी एवं प्रकाश की प्रतिस्पर्धा के अलावा लगभग गन्ने के मुकाबले 4 गुना नाइट्रोजन व फास्फोरस और 2.5 गुना पोटाश जमीन से ले लेते हैं. खरपतवार कुछ बीमारियों एवं कीटों को आश्रय देते हैं और गन्ना फसल में एक अप्रत्यक्ष नुकसान होता है.
गन्ने के खेत में मोथा, दूब, संकरी व चौड़ी पत्ती वाले घास और बरू होते हैं. खरपतवारों का घनत्व एवं प्रजाति, कृषि क्रियाओं, फसल चक्र में खरपतवारनाशकों के उपयोग पर निर्भर करते हैं. उप-उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गन्ने को उगने में 40-45 दिन लगते हैं और इसी दौरान विभिन्न प्रजाति के खरपतवार खेत में उग आते हैं. सब से पहले मोथा घास का जमाव होता है और जमीन को ढक लेता है और गन्ने के जमाव से पहले ही पानी एवं उर्वरकों के लिए प्रतिस्पर्धा कर के गन्ने के जमाव को प्रभावित करता है.
* अंत:फसलीकरण में एट्राजीन खरपतवारनाशक का प्रयोग न करें.
* वही खरपतवारनाशक प्रयोग में लाएं, जो दोनों फसलों के लिए सुरक्षित हो.
* अगर गेहूं अंत:फसल है, तो चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए एलग्रीप 8 ग्राम (प्रोडक्ट), 2,4-डी (80 फीसदी सोडियम नमक) 500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 200-250 लिटर पानी में घोल कर फ्लैट फैन नोजल से बिजाई के 30-35 दिन बाद स्प्रे करें. लीडर 13 ग्राम प्रति एकड़ +0.5 फीसदी चिपचिपा पदार्थ 200-250 लिटर पानी में घोल कर बिजाई के 35 दिन बाद स्प्रे करने से संकरी व चौड़ी पत्ती वाली दोनों तरह की खरपतवारों की रोकथाम हो जाती है.
* अगर अंत:फसलें चना, मूंग, उड़द, मसरी, मटर, आलू, प्याज, लहसुन, बंदगोभी, फूलगोभी, मेथी, गांठ गोभी व धनिया है, तब स्टोंप 30 फीसदी 1.25-1.5 लिटर प्रति एकड़ बिजाई/रोपाई के बाद व खरपतवार जमाव से पहले 250 लिटर पानी में घोल कर स्प्रे करें.
* जिन अंत:फसलों में खरपतवारनाशक का प्रयोग नहीं किया जा सकता, उन में एक या 2 गुड़ाई पर्याप्त होती है.
सावधानियां
* इस मशीन को चलाने व संभालने के लिए उचित प्रशिक्षण लेना आवश्यक है, ताकि मशीन में आने वाली किसी भी प्रकार की रुकावट के साथ ही साथ समाधान किया जा सके. मशीन से बिजाई करते समय एक व्यक्ति मशीन के पीछेपीछे चले और ध्यान रखे कि खाद व बीज ठीक प्रकार से डल रहे हैं.
* इस विधि से मिलवां फसलें उगाने के लिए खेत अच्छी तरह समतल व तैयार होना चाहिए, ताकि पानी लगाने में कोई परेशानी न हो और पानी आधे कूड़ तक सीमित रहे.
* अंत:फसल की बिजाई सिफारिश की गई गहराई तक ही सुनिश्चित करें, नहीं तो अंत:फसल का जमाव प्रभावित हो सकता है.