इनसानों के साथसाथ पशुपक्षी तो पाले से बचने के उपाय कर लेते हैं, लेकिन फसलों को बचाने के लिए किसानों को सावधानी बरतनी होगी. पाले से टमाटर, मिर्च, बैंगन आदि सब्जियों, पपीता एवं केले के पौधों एवं मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ आदि में 50 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हो सकता है. अरहर में 70 फीसदी, गन्ने में 50 फीसदी, गेहूं व जौ में 10 से 20 फीसदी तक नुकसान हो सकता है.
पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते  हैं. यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ जाते हैं, उन में झुर्रियां पड़ जाती हैं एवं कई फल गिर जाते हैं. फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं एवं बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं.

रबी फसलों में फूल आने एवं बालियां, फलियां आने व बनते समय पाला पड़ने की सर्वाधिक संभावनाएं रहती हैं. इसलिए ऐसे समय में किसानों को चैकस रह कर फसलों की पाले से सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिए. जब तापमान 0 डिगरी सैल्सियस से नीचे गिर जाता है और हवा रुक जाती है, तो रात को पाला पड़ने की संभावना रहती है.

वैसे तो आमतौर पर पाले का अनुमान दिन के बाद के वातावरण से लगाया जा सकता है. सर्दी के दिनों में जिस दिन दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती रहे एवं हवा का तापमान जमाव बिंदु से नीचे गिर जाए. दोपहर के बाद अचानक हवा चलना बंद हो जाए और आसमान साफ रहे या उस दिन आधी रात के बाद से ही हवा रुक जाए, तो पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है. रात को विशेषकर तीसरे एवं चैथे पहर में पाला पड़ने की संभावनाएं अधिक रहती हैं.

आमतौर पर तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाए, अगर शीत लहर हवा के रूप में चलती रहे तो नुकसान नहीं होता है, परंतु यदि इसी बीच हवा चलना रुक जाए और आसमान साफ हो तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक है.

जिस रात पाला पड़ने की संभावना हो, उस रात 12 बजे से 2 बजे के आसपास खेत की उत्तरपश्चिम दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास, मेंड़ों पर रात में कूड़ाकचरा या घासफूस जला कर धुआं करना चाहिए, ताकि खेत में धुआं हो जाए एवं वातावरण में गरमी आ जाए. सुविधा के लिए मेंड़ पर 10 से 20 फुट के अंतराल पर कूड़ेकरकट के ढेर लगा कर धुआं करें.  इस विधि से 4 डिगरी सैल्सियस तापमान आसानी से बढ़ाया जा सकता है.

पौधशाला के पौधों एवं छोटे पौधे वाले उद्यानों, नकदी सब्जी वाली फसलों को टाट, पौलीथिन अथवा भूसे से ढक देना चाहिए. वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानी उत्तरपश्चिम की तरफ टाटियां  बांध कर क्यारियों को किनारों पर लगाएं और दिन में पुनः हटाएं.

पाला पड़ने की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिए. नमी वाली जमीन में काफी देर तक गरमी रहती है और भूमि का तापमान कम नहीं होता है. दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की उत्तरीपश्चिमी मेंड़ों पर और बीचबीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल एवं अरंडी आदि लगा दिए जाएं, तो पाले और ठंडी हवा के झोंकों से फसल का बचाव हो सकता है.
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– प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, सेवानिवृत्त वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, निदेशक, प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी, भाटपार रानी देवरिया.

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