जोहा एक छोटे दाने वाला शीतकालीन धान है जो अपनी बेहतरीन सुगंध और स्वाद के लिए विख्यात है. यह चावल ख़ास तौर पर असम तथा अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में उगाया जाता है. जिसका उपयोग विशेष रूप से असमिया व्यंजन और मिठाइयाँ बनाने के लिए किया जाता है. इस चावल को असम में जी आई टैग प्रदान किया गया.

काला जोहा
जोहा चावल की की कई यह पारंपरिक किस्में मौजूद हैं जिसमें एक किस्म काला जोहा चावल की है. जिसमें मीठी सुगंध, अति उत्तम गुठली, अच्छी खाना पकाने की गुणवत्ता और उत्कृष्ट स्वाद है की मौजूदगी इसे ख़ास बनाती है. काले जोहा की किस्म 150-160 दिन में पक कर तैयार होती है. जिसके लिए वर्षा आधारित उथली निचली भूमि मुफीद मानी जाती है. इस किस्म का चावल लंबा पतला और पौधे की ऊंचाई: 100-105 सेमी होती है. जबकि इसका उत्पादन उपज: 2.0-3.0 टन प्रति हेक्टेयर है.

केतकी जोहा धान
यह जोहा चावल की उन्नत किस्म है जिसमें मीठी सुगंध, अति उत्तम गुठली, अच्छी खाना पकाने की गुणवत्ता और उत्कृष्ट स्वाद है. इस किस्म की अधिसूचना साल 1999 में जारी की गई थी. जोहा की यह किस्म 150-160 दिन में पक कर तैयार होती है. यह किस्म भी वर्षा आधारित उथली निचली भूमि में आसानी से उगाई जा सकती है, जिसके पौधे की लम्बाई 100-105 सेमी तक होती है. इस किस्म का चावल मध्यम पतला होता है जबकि उपज: 3.5-4.0 टन प्रति हेक्टयर है.

सुगन्धित जोहा धान की अन्य किस्में
असम प्रदेश में उगाया जाने सुगन्धित जोहा चावल बासमती चावल के विपरीत छोटे से मध्यम पतले और मोटे दाने वाले होते हैं, जो लंबे पतले दाने होते हैं. यह देशी किस्म बिना चिपचिपी और स्वादिष्ट पकती है जबकि पके हुए बासमती के दाने पकाने पर अलग हो जाते हैं. जोहा चावल का बढ़ाव अनुपात 1.4 गुना है . जोहा चावल का उपयोग खीर (पाया), पुलाव और अन्य शाकाहारी और मांसाहारी वस्तुओं को बनाने में किया जाता है. जोहा चावल एक लंबी अवधि की चावल की किस्म है. इसके अन्य किस्मों कोला जोहा (काली जीरा, कोला जोहा 1, कोला जोहा 2, कोला जोहा 3), केटेकी जोहा और बोकुल जोहा के दाने मध्यम पतले प्रकार के होते हैं लेकिन कोन जोहा (कुंकिनी जोहा, माणिकी माधुरी जोहा और कोनजोहा) के दाने छोटे पतले प्रकार के होते हैं.

हार्ट से जुड़ी बिमारियों में है बेहद कारगर
जोहा एक छोटे अन्न वाला शीतकालीन धान है जो अपनी महत्वपूर्ण सुगंध और उल्लेखनीय स्वाद के लिए विख्यात है. इससे संबंधित पारंपरिक दावा यह है कि जोहा चावल के उपभोक्ताओं में मधुमेह और हृदय रोगों की घटनाएं कम होती हैं, लेकिन इन्हें वैज्ञानिक रूप से सत्यापित किए जाने की आवश्यकता थी.

कैंसर की बीमारी से बचाव में कामयाब
उस दिशा में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में उन्नत अध्ययन संस्थान (आईएएसएसटी) के वैज्ञानिकों ने सुगंधित जोहा चावल के न्यूट्रास्युटिकल गुणों का पता लगाया है. शोधार्थी राजलक्ष्मी देवी ने परमिता चौधरी के साथ अपने शोध में सुगंधित जोहा चावल के न्यूट्रास्युटिकल गुणधर्मों का पता लगाया. इन विट्रो प्रयोगशाला विश्लेषण के माध्यम से उन्होंने दो असंतृप्त फैटी एसिड अर्थात् लिनोलिक एसिड (ओमेगा-6) और लिनोलेनिक (ओमेगा-3) एसिड का पता लगाया. यह अनिवार्य फैटी एसिड (जिसका मानव उत्पादन नहीं कर सकता) विभिन्न शारीरिक स्थितियों को बनाए रखने में मदद कर सकता है. ओमेगा-3 फैटी एसिड मधुमेह, हृदय रोगों और कैंसर जैसे कई मेटाबोलिक रोगों से बचाव करता है. जोहा ब्लड ग्लुकोज को कम करने और मधुमेह संक्रमित चूहों में मधुमेह की शुरुआत को रोकने में भी प्रभावी साबित हुआ है.

पोषक तत्वों से है भरपूर
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि सुगंधित जोहा चावल में व्यापक रूप से उपभोग की जाने वाली गैर-सुगंधित किस्म की तुलना में ओमेगा-6 से ओमेगा-3 का अधिक संतुलित अनुपात होता है. उचित आहार को बनाए रखने के लिए मनुष्यों द्वारा वांछित ओमेगा-6 से ओमेगा-3 आवश्यक फैटी एसिड (ईएफए) का अनुपात लगभग एक है. उन्होंने चावल की भूसी का तेल, एक पेटेंट उत्पाद जिसे वे मधुमेह प्रबंधन में प्रभावी होने का दावा करते हैं, बनाने के लिए इस जोहा चावल का उपयोग किया है.

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