कीवी एक ऐसा बहुगुणी फल है, जो हर मौसम में हर जगह आसानी से मिल भी रहा है और पूरी दुनिया में अपनी विशेषताओं के लिए खास फल रूपी औषधि भी बन रहा है.
कीवी सिर के बालों से ले कर पैर के तलवे तक शरीर के हर भाग को भरपूर पोषण देता है. जहां यह बालों को घना और सेहतमंद बनाता है, वहीं दिल, लिवर, आंत और पैरों की थकान तक को कम करता है.
कीवी फल की खेती हिमालय के मध्यवर्ती, निचले पर्वतीय क्षेत्रों, घाटियों और मैदानी क्षत्रों में, जहां सिंचाई की सुविधा हो, सफलतापूर्वक की जा सकती है.
अंगूर की बेलों की तरह ही इस की बेलें बढ़ती हैं. कीवी फल भूरे रंग का, लंबूतरा, मुरगी के अंडे के आकार का होता है. छिलके पर बारीक रोएं हाते हैं, जो फल पकने पर रगड़ कर उतारे जा सकते हैं. कीवी फल का गूदा हलके हरे रंग का होता है. इस में काले रंग के छोटेछोटे बीज होते हैं. इस का स्वाद खट्ठामीठा होता है.
कीवी फल को ताजा फल के रूप में या सलाद के रूप में खाने के लिए उपयोग में लाया जाता है. यह पोषक तत्त्वों और औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है. इस में विटामिन बी और सी और खनिज जैसे फास्फोरस, पोटाश व कैल्शियम की अधिक मात्रा होती है.
डेंगू, मलेरिया, टाइफाइड, खून में हीमोग्लोबिन की कमी होने पर खासतौर पर मरीज को 2 कीवी प्रतिदिन खाने की डाक्टर सलाह देते हैं.
कीवी फल भारत के लिए दशकों तक विदेशी रहा, फिर कुछ बागबानी विशेषज्ञों की भरपूर कोशिश से भारत में साल 1960 में सर्वप्रथम बैंगलुरू में लगाया गया था, लेकिन बैंगलुरू की जलवायु में पर्याप्त ठंडक न मिल पाने के कारण कीवी उत्पादन में जरा भी सफलता नहीं मिली.
इस के 3 साल बाद 1963 में राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, क्षेत्रीय संस्थान के शिमला स्थित केंद्र फागली में कीवी की 7 प्रजातियों के पौधे आयातित कर के लगाए गए, जहां पर कीवी के इन पौधों से सफल उत्पादन प्राप्त किया गया.
उत्तराखंड में 90 के दशक में भारत इटली फल विकास परियोजना के तहत राजकीय उद्यान मगरा, टिहरी गढ़वाल में इटली के वैज्ञानिकों की देखरेख में इटली से आयातित कीवी की विभिन्न प्रजातियों के तकरीबन 100 पौधों का रोपण किया गया, जिन से कीवी का अच्छा उत्पादन आज भी मिल रहा है.
कुमाऊं गढ़वाल और हिमाचल प्रदेश में छोटे किसान कीवी उत्पादन से बहुत बढि़या मुनाफा ले रहे हैं. राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन, फागली, शिमला, हिमाचल प्रदेश से कीवी की विभिन्न प्रजातियों के पौधे मंगा कर प्रयोग के लिए, राज्य के विभिन्न उद्यान शोध केंद्रों जैसे चौवटिया रानीखेत, चकरौता (देहरादून), गैना/अंचोली (पिथौरागढ़), डुंडा (उत्तरकाशी) आदि स्थानों में लगाए गए, जिन से उत्साहवर्धक कीवी की उपज मिल रही है.
राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, भवाली, नैनीताल में भी 90 के दशक से कीवी उत्पादन पर निरंतर शोध का काम हो रहा है. इतना ही नहीं, सरकारी कार्यशाला लगा कर लोगों को लोन भी दिया जा रहा है कि वह कम से कम जगह में भी सफलतापूर्वक कीवी का बगीचा विकसित करें.
राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो पर्याप्त संख्या में कीवी फल पौधों का उत्पादन भी करता है. इस केंद्र के सहयोग से भवाली के आसपास के क्षेत्रों में कीवी के कुछ बाग भी विकसित हुए हैं.
राज्य में कीवी बागबानी की सफलता को देखते हुए कई उद्यानपतियों ने बागबानी बोर्ड व उद्यान विभाग की सहायता से कीवी के बाग विकसित किए हैं. कीवी फल की खेती के लिए हलकी उपोष्ण और शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है. इस के पौधों को वर्षा की अधिक आवश्यकता नहीं होती. इस के पौधे सर्दी के मौसम में अधिक पैदावार देते हैं. अधिक गरमी या तेज हवा इस के पौधों के लिए नुकसानदायक होती है.
इस के पौधों को अंकुरित होने के लिए 10-20 डिगरी के आसपास तापमान की जरूरत होती है, जबकि गरमियों में अधिकतम 30-35 डिगरी तापमान को इस के पौधे सहन कर सकते हैं. इस के पौधों पर फल बनने के दौरान उन्हें 5 से 10 डिगरी तापमान तकरीबन100 से 200 घंटों तक मिलना जरूरी होता है.
कीवी फल की वैसे तो दुनियाभर में 100 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन भारत में इस की कुछ ही किस्मों को उगाया जाता है, जिन्हें बीजारोपण, नर्सरी में सिलसिलेवार पौधे तैयार कर के, कलम या ग्राफ्टिंग के माध्यम से भी विकसित किया जाता है.
कीवी फल के पौधे खेत में लगाने के 4 साल बाद शानदार पैदावार देना शुरू करते हैं. इस दौरान इस के पौधों के बीच खाली बची जमीन में औषधीय, मसाला और कम समय में तैयार होने वाली सब्जियों को उगा कर अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं, जिस से इस के उत्पादक को आर्थिक परेशानियों का सामना भी नहीं करना पड़ेगा और उन्हें खेत से पैदावार भी मिलती रहेगी.
आमतौर पर बैगन, मिर्च, टमाटर, सदाबहार पालक, करेला आदि इस के बगीचे में आराम से फलफूल जाते हैं और दोगुना मुनाफा भी होता है.
सामान्य देखरेख और सामान्य सिंचाई के बाद यह इतना फल देता है कि मात्र 20 पौधे कीवी के लगा कर किसान इस से सालाना 2-3 लाख रुपए कमा सकता है.