गरमी में खेतों की गहरी जुताई करनी चाहिए. ऐसा करने से खेत की पानी सोखने की कूवत बढ़ेगी,साथ ही नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का सफाया होगा और फायदेमंद कीटों को पनपने का मौका मिलेगा. इस से कीटनाशकों पर होने वाले गैरजरूरी खर्च में कमी आएगी.
* बरसात के पानी को सहेजने का इंतजाम करना चाहिए. खेत की उपजाऊ मिट्टी को बह कर जाने से रोकने के लिए मजबूत व ऊंची मेंड़ बनानी चाहिए. पानी रोकने के उपाय करने चाहिए. पहली बरसात का पानी खेत में जरूर रोकें.
* जिस फसल की बोआई करनी हो, उस की क्षेत्र के लिए स्वीकृत प्रजातियों के आधार पर या प्रमाणित बीज की ही बोआई करें.
* हमेशा खेत की मिट्टी की जांच के आधार पर खेत में खाद व उर्वरक का इस्तेमाल करें.
* धान और गेहूं फसल चक्र में हरी खाद का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए.
* मृदा स्वास्थ्य सुधार के लिए कार्बनिक खादों, जैविक खाद/जैविक उर्वरक, दलहनी फसलों का इस्तेमाल जरूर करें.
* फसलों की सिंचाई पलेवा या पारंपरिक तरीके से न करें. आधुनिक व सूक्ष्म सिंचाई के तरीकों जैसे टपक सिंचाई, फव्वारा सिंचाई, रेन गन सिंचाई वगैरह का प्रयोग करें. इस से समय, मेहनत और पानी की बचत होगी और फसल से अच्छा उत्पादन मिलेगा.
* खेती से ज्यादा आमदनी लेने के लिए फसल उत्पादन के साथ ही साथ पशुपालन, बागबानी, सब्जी उत्पादन, फलफूल, मत्स्यपालन, कुक्कुटपालन, मौनपालन वगैरह कामों को भी करें.
* कम समय में तैयार होने वाली नकदी फसलें, जैसे तोरिया, आलू, प्याज, उड़द, मूंग, लोबिया, ग्वार, मशरूम उत्पादन जरूर करें.
* कम लागत में टिकाऊ व ज्यादा उत्पादन के लिए समेकित पोषक तत्त्व प्रबंधन, समेकित कीट व रोग प्रबंधन अपनाएं.
* खेतों में कभी भी धान का पुआल, गेहूं के डंठल, भूसा वगैरह न जलाएं, उन्हें मिट्टी में ही मिला दें.
इन बातों को अपनाने से खेती फायदेमंद, टिकाऊ होगी, मिट्टी और खेत का स्वास्थ्य ठीक होगा, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण व समुचित उपयोग होगा और खेत की मिट्टी की पानी सोखने की कूवत बढ़ेगी. फसल में कीट व बीमारियां कम लगेगीं. साथ ही, फसल पैदावार में बढ़ोतरी होगी.
ऐसा होने से निश्चित रूप से गांव, जिला, प्रदेश व देश की तरक्की होगी, इसलिए किसानों से अनुरोध है कि इन बातों पर जरूर ध्यान दें और अपने खेतों में इन का इस्तेमाल करें.