सब्जियों का हमारे जीवन में खास स्थान है. भिंडी भारत में उगाई जाने वाली खास फसल है. इस में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फास्फोरस के अलावा विटामिन ए, बी, सी, थाईमीन एवं रिबोप्लेविन भी पाया जाता है. इस में विटाविन ए व सी काफी मात्रा में पाया जाता है.

भिंडी की फसल में आयोडीन की मात्रा अधिक होती है. इस का फल कब्ज रोगी के लिए खास फायदेमंद होता है. इसे खासतौर से सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यह कई रोगों में बहुत ही गुणकारी है. इस के अन्य भागों जैसे तना इत्यादि को भी इस्तेमाल किया जाता है.

सब्जियों में भिंडी का खास स्थान है, जिसे लोग लेडी फिंगर या ओकरा के नाम से भी जानते हैं. भारत का भिंडी उत्पादन में चीन के बाद दूसरा नंबर है. भारत में लगभग 3.25 लाख हेक्टेयर रकबे पर भिंडी की खेती की जाती है और 33.80 लाख टन प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है.

भिंडी की उत्पादकता 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. अन्य फसलों की तरह भिंडी में भी अनेक कीटों और बीमारियों का प्रकोप होता है, जो इस के उत्पादन और गुणवत्ता पर खराब असर डालते हैं. भिंडी की फसल को कीटों और रोगों से लगभग 40-50 फीसदी नुकसान उठाना पड़ता है. इस तरह यदि किसान नवीनतम विधि से भिंडी की खेती करेंगे, तो लाभ जरूर मिलेगा.

मिट्टी व खेत की तैयारी

भिंडी को पानी न जमा होने वाली हर तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है. आमतौर से भूमि की पीएच मान 7.0 से 7.8 होना मुनासिब रहता है. खेत तैयार करने के लिए 2-3 बार जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें. इस के बाद पाटा लगा कर खेत को एकसार कर लेना चाहिए. भिंडी की जड़ गहरी होने के कारण भूमि की 25-30 सैंटीमीटर गहरी जुताई करना फायदेमंद होता है.

आबोहवा : भिंडी के बेहतरीन उत्पादन के लिए लंबे, गरम एवं नमी की जरूरत होती है. इसे गरम नमी वाले रकबों में अच्छी तरह से उगाया जा सकता है. आमतौर से अच्छी बढ़वार के लिए 24-28 डिगरी सैल्सियस के बीच तापमान उत्तम होता है.

भिंडी के लिए लंबे समय का गरम व नम वातावरण बढि़या माना जाता है. आमतौर से बीज जमने के लिए 27-30 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान मुनासिब होता है और 17 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान से कम पर बीज नहीं जमते हैं. यह रबी व खरीफ दोनों मौसमों में उगाई जाती है.

हाईब्रिड उन्नत किस्में : वर्षा विजय, उपहार एवं तुलसी, भिंडी नं.-10, डीवीआर-1, डीवीआर-2, डीवीआर-3 अथवा संकर नं.-152.

बीज की मात्रा वबोआई का तरीका

भिंडी की सिंचित दशा में 12 से 15 किलोग्राम और बिना सिंचाई की दशा में 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है. संकर किस्मों के लिए 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज काफी होता है. भिंडी के बीज सीधे खेत में ही बोए जाते हैं.

बारिश के मौसम में भिंडी के लिए कतार से कतार की दूरी 40-45 सैंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 25-30 सैंटीमीटर का फासला रखना बेहतर होता है. गरमी के मौसम में भिंडी की बोआई कतारों में करनी चाहिए. कतार से कतार की दूरी 25-30 सैंटीमीटर एवं कतारों में पौधे की दूरी 15-20 सैंटीमीटर का फासला रखना चाहिए. बीज की 2-3 सैंटीमीटर गहरी बोआई करनी चाहिए.

बोआई के पहले भिंडी के बीजों को 3 ग्राम थीरम, मेंकोजेब या कार्बंडाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

बोआई का समय

गरमी के मौसम में भिंडी की बोआई फरवरीमार्च महीने में और बारिश के मौसम में भिंडी की बोआई जूनजुलाई महीने में की जाती है. यदि भिंडी की फसल लगातार लेनी है, तो 3 सप्ताह के फासले पर फरवरी से जुलाई के बीच अलगअलग खेतों में भिंडी की बोआई की जा सकती है. इस से बढि़या उत्पादन मिलेगा.

खाद एवं उर्वरक

खेत की तैयारी के समय 200-250 क्विंटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खेत में मिला देनी चाहिए. नाइट्रोजन 50 किलोग्राम (108 किलोग्राम यूरिया), फास्फोरस 50 किलोग्राम (312 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट) एवं 50 किलोग्राम पोटाश (83 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश) आखिरी जुताई के समय खेत में मिला देनी चाहिए. 50 किलोग्राम नाइट्रोजन (108 किलोग्राम यूरिया) बोआई के चार हफ्ते बाद खड़ी फसल में डालें. यदि फसल की बढ़वार ठीक न हो, तो 1 फीसदी यूरिया (10 ग्राम/1 लिटर पानी में) के 2-3 छिड़काव पैदावार बढ़ाने में मददगार साबित होते हैं.

फूल आने की दशा में नाइट्रोजन की 50 किलोग्राम (108 किलोग्राम यूरिया) मात्रा कतारों में देनी चाहिए. पोषक तत्त्वों की मुनासिब मात्रा मिट्टी के नमूने की जांच रिपोर्ट पर निर्भर करती है.

निराई व गुड़ाई

भिंडी की समयसमय पर निराईगुड़ाई कर के खेत को खरपतवार से रहित रखना चाहिए. बोने के 15-20 दिन बाद पहली निराईगुड़ाई करना बहुत फायदेमंद होता है. खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक खरपतवारनाशकों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

खरपतवारनाशी फ्लूक्लोरोलिन की 1 किलोग्राम या बेसालिन 1 किलोग्राम सक्रिय तत्त्व मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से मुनासिब नमी वाले खेत में बीज बोने के पहले मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है. बोआई के 2 दिन बाद तक खेत में एलाक्लोर की 2.5 किलोग्राम या पेंडीमेथलीन 1.5 किलोग्राम अवयव की सक्रिय मात्रा प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करनी चाहिए.

सिंचाई

पहली सिंचाई जमने के बाद व पहली पत्ती निकलने के समय करनी चाहिए, वरना बीज के सड़ने का खतरा बना रहता है. भिंडी में डोलों के बीच डोल के आधे भाग से ज्यादा ऊंचाई पर पानी नहीं देना चाहिए. फल बनने के समय की दशा में नमी बने रहना जरूरी है, अन्यथा फलों में पकने से पहले ही रेशा बन जाता है, जिस से गुणवत्ता गिरती है.

बारिश के मौसम में ज्यादा पानी भरने पर पानी निकालने का इंतजाम करना चाहिए. गरमी के दिनों में 4-5 दिन के फासले पर हलकी सिंचाई करनी चाहिए.

कटाई व उपज

भिंडी की फली तुड़ाई के लिए सीआईएई, भोपाल द्वारा विकसित ओकरा पोड पिकर यंत्र का इस्तेमाल करें. किस्म की गुणवत्ता के अनुसार 45-60 दिनों में फलों की तुड़ाई शुरू की जाती है एवं 4-5 दिनों के फासले पर रोज तुड़ाई की जानी चाहिए.

गरमी की भिंडी फसल में उत्पादन 60-70 क्विंटल व बारिश की फसल में 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है. भिंडी की तुड़ाई हर तीसरे या चौथे दिन जरूर करनी चाहिए. तोड़ने में थोड़ा भी अधिक समय हो जाने पर फल कड़ा हो जाता है.

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