Millet : अगर कहा जाए कि सूखे मौसम या कम सिंचाई वाले खेतों के लिए बाजरा (Millet) बहुत ही उम्दा फसल है, तो यह बिलकुल सही बात होगी. बाजरा (Millet) फसल है, जो सूखा सहन करने वाली सभी तरह के अनाज वाली फसलों में सब से आगे है. यही वजह है कि बाजरे (Millet) की खेती राजस्थान के साथसाथ उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा व पश्चिम बंगाल के सूखाग्रस्त इलाकों में भी बड़े पैमाने पर की जाती है.
सूखा सहनशील फसल होने के कारण ही बाजरे की खेती बहुत आसानी से गरमियों के मौसम में भी कर सकते हैं. बाजरा मोटे अनाजों की श्रेणी में आता है. यह कई रोगों को दूर करने के साथ ही साथ शरीर को फिट रखने में भी कारगर है. यही वजह है कि शहरों में लोग इस की ऊंची कीमत भी अदा करने को तैयार रहते हैं.
मिट्टी : बाजरे की खेती के लिए अच्छी जल निकास वाली हलकी दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अच्छी होती है.
खेत की तैयारी : पहली बार की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और उस के बाद 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर के खेत को तैयार करें.
बोआई का समय और विधि: बोआई का सही समय मध्य जुलाई से ले कर मध्य अगस्त तक का है. ध्यान रहे कि इस की बोआई लाइन से करने पर ज्यादा फायदा होता है. लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखें. बीज बोने की गहराई तकरीबन 4 सेंटीमीटर तक ठीक रहती है.
बीज दर और उपचार : इस की बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 4-5 किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है. बीजों को 2.5 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कार्बेंडाजिम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर लेना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण : अच्छा होगा कि खरपतवारों को निराईगुड़ाई कर के निकाल दें. इस से एक ओर जहां मिट्टी में हवा और नमी पहुंच जाती है, वहीं दूसरी ओर खरपतवार भी नहीं पनप पाते हैं. खरपतवारों की रासायनिक दवाओं से रोकथाम करने के लिए एट्राजीन 50 फीसदी नामक रसायन की 1.5-2 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से ले कर 700-800 लीटर पानी में मिला कर बोआई के बाद व जमाव से पहले एक समान रूप से छिड़काव कर देना चाहिए.
खाद और उर्वरक : खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल खेत की मिट्टी की जांच के आधार पर मिली सलाह के मुताबिक करना चाहिए. हालांकि मोटे तौर पर संकर प्रजातियों (हाईब्रिड) के लिए 80-100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश व देशी प्रजातियों के लिए 40-50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फास्फोरस व 25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बोआई से पहले इस्तेमाल करें. नाइट्रोजन की बची हुई आधी मात्रा टापड्रेसिंग के रूप में जब पौधे 25-30 दिनों के हो जाएं तो छिटक कर दें.
सिंचाई : ज्यादातर देखने में आता है कि बरसात का पानी ही इस के लिए सही होता है. यदि बरसात का पानी न मिल सके, तो 1-2 बार फूल आने पर जरूरत के मुताबिक सिंचाई करनी चाहिए.
रोग प्रबंधन : बाजरे में खासतौर पर कंडुआ, अरगट और बाजरे का हरित बाल (डाउनी मिल्ड्यू) रोग लगते हैं, जिन के बारे में विस्तार से जानकारी निम्न प्रकार है:
अरगट : यह रोग भुट्टों या बालियों के कुछ दानों पर ही दिखाई देता है. इस में दाने के स्थान पर भूरे काले रंग की सींग के आकार की गांठे बन जाती हैं, जिन्हें स्कलेरोशिया कहते हैं. प्रभावित दाने इनसानों और जानवरों के लिए नुकसानदायक होते हैं, क्योंकि उन में विषैला पदार्थ होता है. इस रोग की वजह से फूलों में से हलके गुलाबी रंग का गाढ़ा और चिपचिपा पदार्थ निकलता है, जो सूखने पर कड़ा हो जाता है.
इस की रोकथाम के लिए बोने से पहले 20 फीसदी नमक के घोल में बीजों को डुबो कर स्कलेरोशिया अलग किए जा सकते हैं. खड़ी फसल में इस की रोकथाम के लिए फूल आते ही घुलनशील मैंकोजेब चूर्ण को 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 5-7 दिनों के अंतराल पर छिड़कना करना चाहिए.
कंडुआ : इस रोग में दाने आकार में बड़े, गोल, अंडाकार व हरे रंग के हो जाते हैं, जिन में काला चूर्ण भरा होता है. मंड़ाई के समय ये दाने फूट जाते हैं, जिस से उन में से काला चूर्ण निकल कर, स्वस्थ दानों पर चिपक जाता है.
इस की रोकथाम के लिए किसी पारायुक्त रसायन से बीज शोधित कर के बोने चाहिए. सावधानी के लिए एक ही खेत में हर साल बाजरे की खेती नहीं करनी चाहिए.
हरित बाली रोग : इसे अंगरेजी में डाउनी मिल्ड्यू नाम से जाना जाता है. यह एक फफूंद जनक रोग है. इस रोग में बाजरे की बालियों के स्थान पर टेढ़ीमेढ़ी हरी पत्तियां सी बन जाती हैं, जिस से पूरी की पूरी बाली झाड़ू के समान नजर आती है और पौधे बौने रह जाते हैं.
इस रोग से बचाव के लिए अरगट रोग की तरह रासायनिक दवा का छिड़काव करें और बोआई से पहले बीजों का शोधन करें. रोगग्रसित पौधों को काट कर जला दें.
कीट प्रबंधन : बाजरे में दीमक, तना मक्खी, तना छेदक और मिज कीट का प्रकोप कभीकभी देखने को मिलता है. इन कीटों की रोकथाम के लिए किसी स्थानीय विशेषज्ञ से मिली सलाह के मुताबिक किसी असरकारक रासायनिक दवा का छिड़काव करना चाहिए.
कुछ और ध्यान रखने वाली बातें
* इलाके की अनुकूलता के हिसाब से बताई गई प्रजातियों के बीज प्रयोग करें.
* यदि बरसात नहीं हो पा रही है, तो सिंचाई जरूर करें. ध्यान रहे कि फूल आने पर सिंचाई ज्यादा जरूरी होती है.
* बोआई के 15 दिनों बाद कमजोर पौधों को खेत से उखाड़ कर पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंटीमीटर कर देनी चाहिए. इस के अलावा ज्यादा नजदीक जमे पौधों को उखाड़ कर खाली जगहों पर लगा देना चाहिए.