सब्जियों में गोभी परिवार की फूलगोभी, बंदगोभी, गांठगोभी, ब्रुसेल्स, स्प्राउटिंग, ब्रोकली केल चायनीज कैबेज वगैरह शामिल होती हैं. इस जाति की सब्जियों में भरपूर मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं. ये कई खनिज पदार्थों जैसे फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, सोडियम और लोह के भी अच्छे माध्यम हैं. इन सब्जियों को सलाद के रूप में या पका कर खाया जाता है.
इस जाति की सभी सब्जियों को आमतौर पर ठंडे व नम मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है पर अगेती फूलगोभी की खेती गरमियों में भी की जाती है. पहाड़ों पर इन सब्जियों को गरमियों के मौसम में उगा कर मैदानी इलाकों में बेचने से काफी आमदनी होती है.
गोभी परिवार की सब्जियों के उत्पादन में भारत 6.745 मिलियन टन के साथ दुनिया में दूसरे नंबर पर है. यह दुनिया के उत्पादन का कुल 36 फीसदी है जिसे 18.3 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर रकबे से उत्पादित किया जाता है.
भारत में खासतौर से फूलगोभी उत्पादक राज्य बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र हैं. प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में पश्चिम बंगाल 25.4 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर का स्थान है.
जमीन व आबोहवा
फूलगोभी की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी जिस में जीवांश भरपूर मात्रा में हो, अच्छी मानी जाती है.
फूलगोभी के लिए ठंडी और नम जलवायु की जरूरत होती है. फूल बनने के लिए 15 से 20 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान माकूल होता है. अगेती किस्मों के लिए थोड़ा उच्च तापमान व लंबे दिन की जरूरत होती है.
बीज बोआई का समय
फूलगोभी चूंकि सर्दियों की फसल है इसलिए इस की बोआई का सही समय सितंबरअक्तूबर महीना होता है.
वसंत मौसम में फसल लेने के लिए बीज सुरक्षित स्थानों पर यानी प्लास्टिकघर, शीशमहल वगैरह में दिसंबरजनवरी में बोया जा सकता है. संकर प्रजातियों को मध्य मई से मध्य फरवरी तक बोया जा सकता है.
बीज दर और उपचार
अगेती किस्मों के बीज की दर 600 से 750 ग्राम प्रति हेक्टेयर और मध्यम व पछेती किस्मों में बीजों की दर 400 से 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर है. बीजों को कैप्टान थीरम कार्बंडाजिम फफूंदनाशी की 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए.
पौध तैयार करना
फूलगोभी की पौध दूसरी सब्जियों की तरह ही तैयार की जाती है. इस के लिए 1.0 से 1.25 मीटर चौड़ी, 15 सैंटीमीटर ऊंची, तकरीबन 7 से 10 मीटर लंबी और 15 से 16 क्यारियों की जरूरत होती है.
क्यारियों की गुड़ाई कर के उस में कंपोस्ट अथवा गोबर की सड़ी खाद 10 किलोग्राम वर्गमीटर की दर से मिला कर खेत में क्यारी तैयार कर के और 5 से 10 ग्राम फ्यूराडान या थिमेट का इस्तेमाल करें. साथ ही, 5 से 10 ग्राम थायरम कैप्टान या बाविस्टीन दवा कवकनाशी मिला कर क्यारी को बराबर कर के बीज बोने के लिए तैयार कर लें. बाद में 8 से 10 सैंटीमीटर की दूरी पर 2 से 3 सैंटीमीटर गहरी नुकीली लकड़ी की मदद से क्यारी में लाइन कतारें बना लें.
इन कतारों में बीज को शोधित करने के बाद बो दें और हलके हाथ की मदद से इन कतारों को पूरी तरह ढक दें या सूखी घास की परत पलवार के रूप में क्यारी में बिछा दें.
अगर क्यारी में नमी नहीं है तो पलवार के ऊपर से हजारे की मदद से हलकी सिंचाई करें. इस तरह हर दूसरेतीसरे दिन सिंचाई करते रहें.
बीजों का अंकुरण हो जाने के बाद पलवार शाम के समय हटाएं और हाथोंहाथ हलकी सिंचाई कर दें. इस तरह 30 से 35 दिनों में पौधों की रोपाई हो जाती है.
खाद और उर्वरक
फूलगोभी के बढि़या उत्पादन के लिए इस में 150 से 200 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद का इस्तेमाल कर रोपाई के 30 से 35 दिन पहले खेत में करें और खेत की जुताई कर के खाद को अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें. साथ ही, 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस व 60 किलोग्राम पोटेशियम का इस्तेमाल उर्वरक के रूप में करें.
फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा और आधी नाइट्रोजन की मात्रा खेत की तैयारी के समय करें. बाकी बची आधी नाइट्रोजन की मात्रा को 2 टुकड़ों में बांट कर एक भाग रोपाई के 25 से 30 दिन बाद और दूसरा भाग 45 से 50 दिन बाद खड़ी फसल में दें.
रोपाई और दूरी
फूलगोभी की पौध 30 से 35 दिन में तैयार हो जाती है. खेत में 50 सैंटीमीटर की दूरी पर लाइनें बना लें. पौधों की रोपाई शाम के समय करनी चाहिए.
कम बढ़ने वाली किस्मों को 45×30 सैंटीमीटर की दूरी पर और ज्यादा बढ़ने वाली प्रजातियों को 60×45 सैंटीमीटर की दूरी पर रोपाई कर सकते हैं.
खरपतवार की रोकथाम
फूलगोभी में पौध रोपने से ले कर फूल तैयार होने तक के बीच कई तरह के खरपतवार उगते हैं. 2 या 3 निराईगुड़ाई करने से खरपतवार की रोकथाम की जा सकती है.
खरपतवारनाशी का इस्तेमाल काफी अच्छा होता है. पेंडीमेथिलीन 3.3 लिटर को 1000 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर छिड़काव रोपाई से पहले काफी अच्छा होता है.
फलों का ढकना
अच्छी क्वालिटी वाले फूलों के लिए ऐसी किस्मों को छांटें जिन में पत्तियां अपनेआप फूल के ऊपर सुरक्षा कवच बना देती हों. फूल की क्वालिटी सुधारने के लिए पत्तियों के गुच्छों को एकसाथ कर के फूल के ऊपर धागे या रबड़ के छल्ले की मदद से बांधा जा सकता है.
सिंचाई का प्रबंधन
पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए मिट्टी में सही मात्रा में नमी होना बहुत जरूरी है. यदि बारिश न हो तो जरूरत के मुताबिक सिंचाई करनी चाहिए. सितंबर माह के बाद 10 या 15 दिन के अंतर पर जरूरत के मुताबिक सिंचाई करते रहना चाहिए. गरमी के मौसम में 5 से 7 दिन के फासले पर सिंचाई करें.
फूलगोभी के खास कीट
फूलगोभी की तितली : इस कीट की इल्लियां पौधों को नुकसान पहुंचाती हैं. शुरुआत में पासपास रह कर खाती हैं और बाद में इधरउधर फैल जाती हैं. ज्यादा हमला होने पर ये बड़े पौधों के शीर्ष के आसपास वाले पत्तों की शिराओं को छोड़ कर सभी भागों को खा जाती हैं. नतीजतन, पौधे पूरी तरह से खत्म हो जाते हैं.
रोकथाम : नीम के अर्क (एनएसकेई) का 5 फीसदी घोल का 2-3 बार छिड़काव करें. यदि फिर भी कीटों की मात्रा ज्यादा हो तो स्पाइनोसैड (3 मिलीलिटर प्रति 10 लिटर पानी) या इमामेक्टिन बेंजोएट (3 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी) या फिप्रोनिल (2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी) या क्लोरेंट्रेनिप्रोले (1 मिलीलिटर प्रति 10 लिटर पानी) का इस्तेमाल करें.
फूलगोभी का अर्धकुंडलक कीट : इस कीट की इल्लियां पौधों को काफी नुकसान पहुंचाती हैं. ये बड़ी तादाद में पौधघर और खेत में दिखाई देती हैं. ये इल्लियां पत्तियों के हरे भाग को खा जाती हैं. नतीजतन, पत्तियों पर केवल शिराएं ही बचती हैं.
रोकथाम : यदि कीटों की मात्रा ज्यादा हो तो स्पाइनोसैड (3 मिलीलिटर प्रति 10 लिटर पानी) या इमामेक्टिन बेंजोएट (3 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी) या फिप्रोनिल (2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी) का छिड़काव करें.
फूलगोभी का एफिड कीट : फूलगोभी के एफिड या माहू पीलापन लिए हुए हरे रंग के होते हैं. माहू के प्रौढ़ व शिशु दोनों ही पौधों के विभिन्न भागों से रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं. एफिड फूलगोभी का रस चूसने के कारण पत्तों के पीले पड़ जाने से फूलगोभी का बाजार भाव भी कम हो जाता है.
रोकथाम : परभक्षी कीटों जैसे सिरफिड, क्राइसोपरला, क्रोक्सीनेला वगैरह का संरक्षण करें. मेटासिस्टाक्स 25 ईसी, रोगोर 30 ईसी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर मात्रा को 600-800 लिटर पानी में घोल कर 15 दिन के अंतर पर 2 छिड़काव करें.
फूलगोभी का पर्णजालक कीट : ये पत्तियों के नीचे छिपे बैठे रहते हैं और दूरदूर तक उड़ कर जा सकते हैं. इस कीट की इल्लियां पौधों को नुकसान पहंचाती हैं. नई निकली हुई इल्लियां एक जगह पर झुंड में खाती हैं और पत्तियों में छोटेछोटे काफी सारे छेद कर देती हैं.
रोकथाम : नीम के अर्क (एनएसकेई) का 5 फीसदी घोल का 2-3 बार इस्तेमाल करें. यदि कीटों की मात्रा ज्यादा हो तो स्पाइनोसैड (3 मिलीलिटर प्रति 10 लिटर पानी) या इमामेक्टिन बेंजोएट (3 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी) या फिप्रोनिल (2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी) का इस्तेमाल करें.
हीरक पृष्ठ पतंगा कीट : इस की इल्लियां पीलापन लिए हुए हरे रंग की होती हैं. तीव्र प्रकोप होने पर छोटे पौधे पूरी तरह से पत्तियोंरहित हो जाते हैं और मर जाते हैं. ये कीट बड़े पौधों के शीर्षों में छेद बना देते हैं जिन में इन का मल भरा रहता है.
रोकथाम : इस का हमला दिखाई देते ही ट्राइकोकार्ड ट्रा. बैक्टरी प्रति प्रगटियोसम 50,000 अंडे प्रति हेक्टेयर 5-7 दिन के अंतर पर इस्तेमाल करें. बीटी 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें.
फूलगोभी के खास रोग
मृदुरोमिल आसिता डाउनी मिल्ड्यू : यह रोग पौधशाला से फूल बनने तक कभी भी लग सकता है. सूक्ष्म पतले बाल जैसे सफेद कवक तंतु पत्तियों की निचली सतह पर दिखते हैं. पत्तियों की निचली सतह पर जहां कवक तंतु दिखते हैं वहीं पत्तियों की ऊपरी सतह पर भूरे नेक्रोटिक धब्बे बनते हैं जो रोग के तीव्र हो जाने पर आपस में मिल कर बडे़ हो जाते हैं.
रोकथाम : मैंकोजेब कवकनाशी की 2.5 ग्राम लिटर की दर से रोग की शुरुआती अवस्था में 6 से 8 दिन के अंतर पर पर्णीय छिड़काव करें.
रिडोमिल कवकनाशी की 2 ग्राम लिटर पानी के घोल की दर से रोग की ज्यादा दशाओं में केवल एक बार छिड़काव करना चाहिए.
आल्टरनेरिया पर्ण दाग : आल्टरनेरिया पर्ण दाग फूलगोभी में बढ़वार की शुरुआत में ही होता है, जबकि फूलगोभी में बाद की अवस्थाओं में आता है. पर्ण दाग निचली पत्तियों में ही आता है. इस रोग में पत्तियों पर गोल भूरे धब्बे बनते हैं. इस में छल्लेदार रिंग साफ दिखती है. आर्द्रतायुक्त मौसम में इन्हीं धब्बों पर काले बीजाणु बन जाते हैं. फूलगोभी के खाने वाले भाग पर भी काले धब्बे बनते हैं.
रोकथाम : शाम के समय पर ही क्लोरोथेलोनिल कवकनाशी की 2 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी की दर से और 0.1 मिलीलिटर स्टीकर के साथ मिला कर छिड़काव करना चाहिए.
स्वस्थ पौधों से ही बीज का चुनाव करें और फली बनने के समय एक बार मैंकोजेब 2.5 ग्राम लिटर की दर से छिड़काव करें.
पौध कमर तोड़ रोग : यह रोग पौध का एक खास रोग है. इस रोग के लक्षण पौधों पर 2 तरह से दिखाई देते हैं. एक में तो पौधे जमीन से बाहर निकलने से पहले ही रोगग्रस्त हो जाते हैं और बीज अंकुरित होते ही मर जाता है. इस से पौधशाला में पौधों की तादाद में कमी आ जाती है. दूसरे रूप में रोग का संक्रमण पौधों के तने पर होता है और तने में विगलन होने से पौधे जमीन की सतह पर लुढ़क जाते हैं व पौध मर जाती है.
रोकथाम : क्यारियों को बिजाई से 15 से 20 दिन पहले फार्मलिन 1 भाग फार्मलिन 7 भाग पानी से शोधित करें और पौलीथिन की चादरों से ढक कर रखें. बीज तभी बोएं जब मिट्टी से इस दवा का धुआं उठना बंद हो जाए.
बीज का उपचार कैप्टान 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से करें.
क्यारियों को मैंकोजेब 25 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी और कार्बंडाजिम 5 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी के घोल से बीज से पौध निकलने पर रोग के लक्षण देखते ही सिंचाई करें.
तना विगलन रोग : यह बीजोत्पादन के लिए लगाई गई गोभी का प्रमुख रोग है. अगर यह रोग एक बार खेत में लग जाए तो खेत से स्वस्थ फसल लेना कठिन हो जाता है और वे पीले पड़ कर गिर जाते हैं. पौधे के तने पर गहरे भूरे रंग की सड़न शुरू हो जाती है और तना अंदर से खोखला हो जाता है. खोखले तने में कोयले की तरह काले रंग की आधे से पौने इंच के आकार की टिक्कियां भर जाती हैं व फूल भी सड़ने लगते हैं.
रोकथाम : रोगग्रस्त पत्तियों और फूलों को निकाल कर खत्म कर दें.
फसल पर फूल बनने से बीज बनने तक 10 से 15 दिन के अंतर पर कार्बंडाजिम 50 ग्राम प्रति 100 लिटर पानी और मैंकोजेब 250 ग्राम प्रति 100 लिटर पानी का छिड़काव करें.
काला सड़न रोग : रोगग्रस्त पौधों के पत्तों के किनारे पर अंगरेजी के ‘वी’ आकार के पीले धब्बे पड़ जाते हैं जो समय के साथ बढ़ कर पत्ते के ज्यादातर भाग को घेर लेते हैं. रोगी पत्तियों की शिराएं गहरे भूरे या काले रंग की हो जाती हैं और गोभी के फूल भी बीच से सड़ने लगते हैं. तापमान के बदलने से प्रभावित पौधे एकदम से सूख जाते हैं.
रोकथाम : 10-15 दिन के अंतर पर स्ट्रेप्टोसाइक्लीन की 1 ग्राम मात्रा 6 लिटर पानी की दर से या कासुगामाइसिन की 2 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करें.
स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 1 ग्राम 10 लिटर पानी और कौपर औक्सीक्लोराइड 3 ग्राम लिटर के मिश्रण को 0.5 मिलीलिटर चिपकने वाले पदार्थ के साथ मिला कर भी एक बार प्रयोग करें. पत्तागोभी में पूसा मुक्ता प्रजाति इस रोग के लिए काफी सहनशील है.
कटाई : फूलगोभी के हैड को काटने का समय प्रजाति के अनुसार मध्य दिसंबर से अप्रैल तक और मैदानी इलाकों में मईजून तक भी काटी जाती है. अगेती प्रजातियों की रोपाई के 60 से 80 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है जबकि पछेती किस्में 100 से 120 दिन में तैयार होती हैं इसलिए प्रजाति के अनुसार ही कटाई करें.
भंडारण में सुरक्षा : फूलगोभी के हैड लंबे समय तक महफूज रखने के लिए साइटोकाइनिन बेंजाइल एडेनिन नामक हार्मोंस का 10 पीपीएम का छिड़काव कटाई से 10 से 15 दिन पहले खेत में करना चाहिए. ऐसा करने से हैड का रंग लंबे समय तक सही बना रहता है.
पैदावार : फूलगोभी की पैदावार 500 से 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हासिल की जा सकती है. उत्तर भारत में औसत पैदावार 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और दक्षिण भारत में 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आंकी गई है, पर वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाए तो पैदावार और भी बढ़ाई जा सकती है.