Moong: भारत में दालों की पैदावार कम और खपत ज्यादा होने से इन की कीमतों में उछाल आ रहा है. केंद्र सरकार ने दलहनी फसलों के रकबे को बढ़ाने का सुझाव दिया है.

इस के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने मूंग की एक ऐसी किस्म तैयार की है, जो पीला मोजेक वायरस अटैक से प्रभावित नहीं होगी. यह किस्म 52 दिनों में पक कर तैयार होगी.

भारतीय दाल अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने 20 सालों की खोज के बाद इस ‘विराट’ नामक मूंग की नई प्रजाति को तैयार करने में कामयाबी हासिल की है.

खास बात यह है कि मूंग की नई प्रजाति से किसानों को 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी मिलेगा.

कृषि मंत्रालय के पल्स डायरेक्टर डा. बीबी सिंह के मुताबिक मूंग की नई प्रजाति विराट कम पानी में पक कर तैयार होगी. साथ ही फसल कटाई के बाद हरी खाद तैयार कर जमीन की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी की जा सकती है. मूंग की यह फसल पीला मोजेक के साथसाथ चूर्णित आसिता बीमारी के प्रति भी सहनशील होगी.

जमीन का चुनाव और तैयारी : मूंग की खेती सभी तरह की जमीन में की जा सकती है. मध्यम दोमट, मटियार जमीन, समुचित पानी के निकास वाली, जिस का पीएच मान 6-7 हो, इस के लिए अच्छी होती है.

जमीन में सही मात्रा में स्फुर का होना लाभदायक होता है. 2 या 3 बार हल या बखर चला कर मिट्टी को पाटा लगा कर समतल करें. दीमक के असर वाले खेत में फसल की सुरक्षा के लिए एल्ड्रिन 4 फीसदी चूर्ण की 7 किलोग्राम मात्रा प्रति एकड़ के हिसाब से अंतिम बखरनी के पहले डालें और बखर से मिट्टी में मिलाएं.

बीज की मात्रा व बीजोपचार : खरीफ मौसम में मूंग के बीज की 5 से 7 किलोग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से लगती है. कार्बेंडाजिम, थायरम या थायरम फफूंदनाशक दवा से बीज उपचारित करने से बीजों और जमीन में पैदा होने वाली बीमारियों से फसल की सुरक्षा होती है.

इस के बाद बीजों को जवाहर रायजोबियम कल्चर से उपचारित करें. 4 ग्राम रायजोबियम कल्चर प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से ले कर बीजों को उपचारित करें और छाया में सुखा कर जल्दी ही बोआई करें. इस उपचार से रायजोबियम की गांठें ज्यादा बनती हैं, जिस से नाइट्रोजन स्थरीकरण में बढ़ोतरी होती है और जमीन की उर्वरा शक्ति बनी रहती है.

बोने का समय : खरीफ में जून के आखिरी हफ्ते से जुलाई के दूसरे हफ्ते तक सही बरसात होने पर बोआई करें. जायद में फरवरी के दूसरे या तीसरे हफ्ते से मार्च के दूसरे हफ्ते तक बोआई करनी चाहिए.

खाद व उर्वरक : मूंग के लिए 7 किलोग्राम नाइट्रोजन, 1 किलोग्राम स्फुर 7 किलोग्राम पोटाश और 7 किलोग्राम गंधक प्रति एकड़ बोने के समय इस्तेमाल करना चाहिए.

सिंचाई और जल निकास : अकसर खरीफ के सीजन में सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. पर फूल अवस्था आने पर सूखे की स्थिति में सिंचाई करने से उपज में काफी बढ़ोतरी होती है. ज्यादा बारिश की स्थिति में खेत से पानी का निकलना जरूरी है. जायद मूंग फसल में खरीफ की तुलना में पानी की ज्यादा जरूरत होती है.

निराई व बोआई : पहली निराई बोआई के 1 से 14 दिनों के अंदर व दूसरी 3 से 34 दिनों में करनी चाहिए. 1-2 बार कोल्पा चला कर खेत को नींदारहित रखा जा सकता है. खरपतवार नियंत्रण के लिए नींदा नाशक दवाओं जैसे बासालीन या पेंडामेथलीन का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.

पौध संरक्षण

कीट : फसल की शुरुआती अवस्था में तनामक्खी, फलीबीटल, हरी इल्ली, सफेद मक्खी, माहू, जैसिड, थ्रिप्स वगैरह का हमला होता है. इन की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान 24 ईसी की 3 से 4 मिलीलीटर व क्वीनालफास 14 ईसी की 5 मिलीलीटर मात्रा प्रति एकड़ या मिथाइल डिमेटान 14 ईसी की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति एकड़ के हिसाब से इस्तेमाल करें. जरूरत पड़ने पर 4 दिनों बाद दोबारा छिड़काव करें.

पुष्पावस्था में फली छेदक और नीली तितली का हमला होता है. क्वलीनालफास 14 ईसी की 5 मिलीलीटर या मिथाइल डिमेटान 14 ईसी की 1 मिलीलीटर मात्रा का प्रति एकड़ के हिसाब से 4 दिनों के अंतर पर छिड़काव करने से इन की रोकथाम हो सकती है. कई इलाकों में कंबल कीड़े का भारी हमला होता है. इस की रोकथाम के लिए पेराथियान चूर्ण 1 फीसदी का बुरकाव करें.

रोग

मेक्रोफोमिना रोग : कत्थई भूरे रंग के धब्बे पत्तियों के निचले भाग पर मेंकोफोमिना और सरकोस्पोरा फफूंद के द्वारा बनते हैं. इन की रोकथाम के लिए 4 फीसदी कार्बेंडाजिम या फायटोलान या डायथेन जेड पानी में घोल कर इस्तेमाल करें.

भभूतिया रोग या बुकनी रोग : 2-3 दिनों की फसल में पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है. इस की रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक या कार्बेडाजिम 4 दिनों के अंतराल पर 3 बार छिड़काव करें.

पीला मोजेक वायरस रोग : यह सफेद मक्खी द्वारा फैलने वाला विषाणुजनित रोग है. इस रोग के असर की वजह से पत्तियां और फलियां पीली पड़ जाती हैं और उपज पर प्रतिकूल असर होता है. सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास 25 ईसी की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. इस रोग से प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें. पीला मोजेक वायरस निरोधक किस्मों को उगाना ही सब से अच्छा उपाय है.

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