प्राकृतिक खेती का मतलब बिना कैमिकल के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए खेती करना है. मतलब, किसान जो भी फसल उगाए, उस में फर्टिलाइजर कीटनाशकों का इस्तेमाल न करे. इस में रासायनिक खाद के स्थान पर वह खुद जानवरों के सड़े गोबर से तैयार की हुई खाद का इस्तेमाल अपने खेतों में करे. यह खाद गाय और भैंस के गोबर या गोमूत्र, चने का बेसन, गुड़, मिट्टी व पानी से बनाए. इस से फसल में रोग नहीं लगता और पैदावार भी आसानी से बढ़ती है.
प्राकृतिक खेती में मिट्टी की सतह पर ही रोगाणुओं और केंचुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों के अपघटन को प्रोत्साहित किया जाता है. इस से धीरेधीरे मिट्टी में पोषक तत्त्वों की वृद्धि होती है.
रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने से उत्पादन बढ़ता जरूर है, लेकिन एक समय के बाद जमीन धीरेधीरे बंजर होने लगती है और उत्पादकता घट जाती है, जिस को रोकने की जरूरत है.
सिक्किम पहला और्गैनिक राज्य
आज भारत के केवल कुछ राज्यों में ही प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिस में भारत का सिक्किम सब से पहला और्गैनिक राज्य होने का दर्जा प्राप्त किया है.
कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और केरल ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं, लेकिन बाकी राज्य इस मामले में अभी भी काफी पिछड़े हुए हैं.
प्राकृतिक खेती की तरफ बढ़ता रुझान
हिमाचल प्रदेश में 3 साल पहले शुरू की गई प्राकृतिक खेती के सफल परिणाम नजर आने लगे हैं. रसायनों के प्रयोग को हतोत्साहित कर किसान की खेती की लागत और आय बढ़ाने के लिए शुरू की गई ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ को किसान समुदाय बड़ी तेजी से अपने खेतबगीचों में अपना रहा है.
इस योजना के शुरुआती साल में ही किसानों को यह विधि रास आ गई और तकरीबन 500 किसानों को जोड़ने के तय लक्ष्य से कहीं अधिक 2,669 किसानों ने इस विधि को अपनाया.
‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ को लागू करने वाली राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई के आंकड़ों के अनुसार, साल 2019-20 में भी 50,000 किसानों को योजना के अधीन लाने के लक्ष्य को पार करते हुए 54,914 किसान इस योजना से जुड़े.
सेब की बागबानी में बीमारियों के प्रकोप पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि प्राकृतिक खेती से सेब पर बीमारियों का प्रकोप अन्य तकनीकों की तुलना में कम रहा.
एक रिपोर्ट के अनुसार, आज देश की आबादी साल 1971 में 66 करोड़ से बढ़ कर 139 करोड़ के पार हो गई है, लेकिन अनाज का उत्पादन 1 किलोग्राम प्रति व्यक्ति से बढ़ कर 1.74 किलोग्राम तक ही हो पाया है.
ऐसी खेती को बढ़ावा देने के पीछे सरकार का मकसद है कि किसानों को फसल को उगाने के लिए किसी तरह का कर्ज न लेना पड़े. नैचुरल फार्मिंग से किसान कर्जमुक्त होगा और आत्मनिर्भर भारत का सपना भी सच होगा. साथ ही, देश की लोकल से ग्लोबल की अवधारणा साकार होने में मदद मिलेगी. किसानों के जीवनस्तर में सुधार होगा और सरकार की किसानों की आमदनी को दोगुना करने का लक्ष्य आसानी से पूरा हो सकेगा.
प्राकृतिक व जैविक के बीच अंतर
जैविक खेती में जैविक उर्वरक और खाद जैसे कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट, गाय के गोबर की खाद आदि का उपयोग किया जाता है.
जैविक खेती के लिए अभी भी बुनियादी कृषि पद्धतियों, जैसे जुताई, गुड़ाई, खाद का मिश्रण, निराई आदि की जरूरत होती है. बड़े पैमाने पर खाद की जरूरत के चलते जैविक खेती अभी भी महंगी है और इस पर आसपास के वातावरण का प्रभाव पड़ता है, जबकि प्राकृतिक खेती एक अत्यंत कम लागत वाली कृषि पद्धति है, जो स्थानीय जैव विविधता के साथ पूरी तरह से अनुकूलित हो जाती है.