कृषि में वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित फसल चक्रों का अपनाना फसल के अवशेष व कृषि प्रक्षेपण के अलावा पैदा होने वाले कूड़ेकचरे की बनी खाद, गोबर की खाद और हरी खाद का इस्तेमाल करना, दलहनी फसलों को उगाना, कीट, बीमारियों व खरपतवार का नियंत्रण शस्य क्रियाओं और जैविक विधि द्वारा करना, रोग व कीटरोधी प्रजातियों को उगाना, जीवाणुओं व दूसरे पादप स्रोतों से प्रमुख व सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की पूर्ति करना, ग्रीष्मकालीन जुताई करना आदि शामिल हैं. यह कृषि पद्धति सरल, सस्ती व प्रदूषण निवारक है.

यह सच है कि हरित क्रांति से अनाजों की पैदावार में आशातीत वृद्धि हुई है, लेकिन रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशी रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से अनेक पर्यावरणीय समस्या पैदा हो गई है. कीटनाशी व खरपतवारनाशी दवाओं (रसायन) के प्रयोग से न केवल फसल उत्पादन की लागत में बढ़ोतरी हुई है,  बल्कि इन के प्रयोग से अनाज, तिलहन, सब्जियां, फल आदि जहरीले होते चले जा रहे हैं, जिस से हमारी खाद्य सुरक्षा व भूमि की उत्पादन क्षमता के टिकाऊपन को खतरा पहुंच गया है.

इन सब रसायनों का निर्माण भूमिगत पैट्रो रसायन की मदद से किया जाता है, जिन का तेजी से दोहन हो रहा है. इस के कारण इन के निकट भविष्य में खत्म होने का डर है. जैविक खादों व फसल सुरक्षा की जैविक दवाओं के इस्तेमाल से ऐसी समस्याओं से बचा जा सकता है और कृषि उत्पादन लागत में भारी कमी लाई जा सकती है.

यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि विश्व के अनेक विकसित देशों में जैविक खेती का प्रचलन बढ़ता जा रहा है और जैविक विधि द्वारा तैयार खाद्य उत्पादों का 30 से 40 फीसदी ज्यादा कीमत पर अलग दुकानों से विपणन किया जा रहा है.

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