भारत की लोकप्रिय दलहन फसल मूंग है. चना और अरहर के बाद मूंग का तीसरा स्थान है. भारत में 3109 मिलियन हेक्टेयर जमीन में इस की खेती की जाती है, जिस से 0.946 मिलियन टन उपज हासिल होती है.
मूंग कम समय में तैयार होने वाली फसल है. इसे दाल, हरी खाद और चारे के रूप में उगाया जाता है. इस की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु पाए जाते हैं, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को जमीन में इकट्ठा करने की कूवत रखते हैं. इस से जमीन की उर्वराशक्ति में बढ़ोतरी हो जाती है.
भारत में मूंग की खेती विशेष रूप से राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में की जाती है.
मूंग की खेती वैसे तो खरीफ मौसम में की जाती है, पर अब प्रकाश और तापमान असहिष्णु किस्मों के चलते विकास और सुनिश्चित सिंचाई साधनों के होने की वजह से इस की खेती उत्तरी भारत में संभव है, वहीं गरमी और सर्दी दोनों ही मौसमों में दक्षिण भारत में भी इस की खेती संभव है.
गरमी में मूंग की फसल पीला मोजेक और चितकबरा रोग अवरोधी किस्म बोएं. इस से दाल के उत्पादन में और जमीन की उर्वराशक्ति में तेजी से इजाफा होता है.
जलवायु : मूंग की फसल के लिए गरम जलवायु की जरूरत होती है. इस के लिए ज्यादा बारिश हानिकारक है, पर 100 सैंटीमीटर सालाना बारिश वाले इलाकों में मूंग की खेती आसानी से की जा सकती है.
फसल बोने के बाद बढ़वार के समय अधिक तापमान की जरूरत होती है. पौधों पर फलियां आते समय या उन की जरूरत के समय शुष्क मौसम और उच्च तापमान की जरूरत होती है.
जमीन और उस की तैयारी : मूंग की बढि़या उपज हासिल करने के लिए सही जल निकास वाली रेतीली दोमट मिट्टी, जिस का पीएच मान 6-7 हो, जीवांश पदार्थ प्रचुर मात्रा में हो, अच्छी मानी गई है. ज्यादा अम्लीय या ज्यादा क्षारीय मिट्टी इस के लिए ठीक नहीं है.
बोआई से पहले खेत में सही नमी का होना जरूरी है, इसलिए इसे बोने से पहले पलेवा कर लेना चाहिए. जब जमीन जुताई योग्य हो जाए, तब 3-4 बार हैरो या कल्टीवेटर से जुताई करनी चाहिए, फिर पाटा लगा कर जमीन को समतल कर लेना चाहिए.
खाद और उर्वरक : मूंग की फसल से ज्यादा पैदावार लेने के लिए जमीन में संतुलित मात्रा में खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल करना जरूरी है, इसलिए मिट्टी जांच के बाद ही खाद और उर्वरक डालें. किसी कारणवश मिट्टी की जांच न हो सके, तो उस हालत में ये उपाय अपनाने चाहिए:
गोबर की खाद 5-10 टन.
नाइट्रोजन 20 किलोग्राम.
फास्फोरस 20 किलोग्राम.
पोटाश 25 किलोग्राम.
जिप्सम 25 किलोग्राम.
लेकिन ऐसे क्षेत्रों में जहां पर आलू या मटर के बाद मूंग उगानी हो, तो वहां पर केवल 40-60 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. क्योंकि ऐसे खेत में नाइट्रोजन और पोटाश सही मात्रा में होता है.
बोआई का समय : समय पर बोआई करें. गुजरात में मार्च के पहले हफ्ते में बोआई करने से सब से अधिक उपज मिलती है, जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस की बोआई मार्च के आखिरी हफ्ते में करना ठीक रहता है.
हिसार, हरियाणा में इस की बोआई का सब से अच्छा समय अप्रैल के दूसरे पखवारे में है. इस के बाद बोआई करने से उपज पर उलटा असर पड़ता है.
बीज की मात्रा : गरमी में मूंग के लिए 30-37.5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर सही होता है, जबकि खरीफ में मूंग के लिए मात्र 15-20 किलोग्राम बीज सही होता है.
बीजोपचार : बीजों को उपचारित करने के लिए अनेक राइजोबियम कल्चरों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिन में जीएमबीएस 1, एम 10, केएम 1, एमओ 5, एमओआर 1 खास हैं. इन में से किसी एक से बीजों को बोने से पहले उपचारित करना चाहिए.
विधि : 10 ग्राम गुड़ या चीनी को 1 लिटर पानी में डाल कर हलका गरम करें और घोल को ठंडा कर लें. 200-250 ग्राम का पैकेट मूंग का विशिष्ट राइजोबियम कल्चर डाल कर भलीभांति मिला लें.
अब इस घोल को 10 किलोग्राम बीजों के ऊपर डाल कर हलके हाथों से इस तरह मिलाएं कि उन पर कल्चर की हलकी परत जम जाए, फिर बीज को छाया में सुखा लें.
बीजों की बोआई शाम या सुबह करें, क्योंकि तेज धूप में कल्चर के जीवाणुओं के मरने का डर रहता है.
पीएसबी कल्चर से बीजोपचार : जमीन में जरूरत के मुताबिक फास्फोरस का उपयोग करें. इस दशा में बदलाव के लिए पीएसबी कल्चर मददगार होता है. इसलिए राइजोबियम कल्चर के साथ फास्फेट की मौजूदगी बढ़ाने के लिए पीएसबी कल्चर का भी इस्तेमाल करना चाहिए. इस के इस्तेमाल की विधि और मात्रा राइजोबियम कल्चर के समान ही है.
बोने की दूरी : मूंग की बोआई कितनी दूरी पर की जाए, यह किस्म, मौसम और बोआई प्रणाली पर निर्भर करता है. ज्यादातर छोटी अवधि वाली किस्मों को कम दूरी पर बोएं और लंबी अवधि वाली किस्मों को ज्यादा दूरी पर बोया जाता है.
गरमी में बोई गई मूंग में कम शाखाएं निकलती हैं और इस की वानस्पतिक बढ़वार ज्यादा तापमान की वजह से कम होती है, इसलिए इस के लिए कम दूरी पर बोआई की जाती है.
आमतौर पर मूंग की आपसी दूरी 25-30 सैंटीमीटर लंबी, 5 सैंटीमीटर चौड़ी रखी जाती है, जबकि हरियाणा में 20 सैंटीमीटर लंबी और 10 सैंटीमीटर चौड़ी दूरी रखी जाती है. 3.33-4.00 लाख पौधों की तादाद प्रति हेक्टेयर अच्छी मानी गई है. वर्गाकार बोआई की तुलना में आयताकार बोआई सही मानी गई है.
सिंचाई : गरमी के मौसम में मूंग की सिंचाई मिट्टी की किस्म और तापमान पर निर्भर करती है. पंतनगर, उत्तराखंड में सिल्ट चिकनी दोमट मिट्टी में 5 सिंचाई की जरूरत होती है. प्रत्येक सिंचाई में 6 सैंटीमीटर गहरी सिंचाई करनी पड़ती है. कुल सिंचाई में 30 सैंटीमीटर सिंचाई की जरूरत होती है. दूसरे इलाकों में 3-4 सिंचाई की जरूरत होती है.
पहली सिंचाई बोने के 20-25 दिन बाद करें और बाकी सिंचाई 10-15 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए. फूल आने से पहले और दाना बनते समय नमी की कमी में सिंचाई जरूर करें.
फसल सुरक्षा
खरपतवार : गरमी के मौसम में मूंग की फसल के साथ अनेक खरपतवार उग आते हैं, जो फसल के साथ नमी, पोषक तत्त्वों के साथसाथ जगह, धूप, हवा वगैरह के लिए होड़ करते हैं. उन के नियंत्रण के लिए 2 बार निराईगुड़ाई करनी चाहिए. पहली निराईगुड़ाई फसल बोने के 10 दिन बाद और दूसरी 40 दिन बाद करनी चाहिए.
इन खरपतवारों की रोकथाम के लिए खरपतवारनाशकों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. अंकुरण से पहले पैंडीमिथेलिन 1.0 किलोग्राम सक्रिय तत्त्व को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. बोने के 20-30 दिन बाद एक बार निराईगुड़ाई भी करनी चाहिए.
कीट नियंत्रण
थ्रिप्स : ये कीट पौधे की कोशिकाओं के अंदर घुस जाते हैं और उन्हें खा कर नुकसान पहुंचाते हैं. प्रभावित कोशिकाएं बेरंग हो जाती हैं और फिर भूरी हो कर मुरझा जाती हैं. प्रभावित फूल अकसर बदरंग हो जाते हैं और पकने से पहले ही गिर जाते हैं.
चैंपा : इस कीट के निम्फ और प्रौढ़ दोनों ही पौधों का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं. इस से फलियां भी प्रभावित होती हैं.
सफेद मक्खी : यह मक्खी पौधों का रस चूस कर पौधे को नुकसान पहुंचाती है.
यह मक्खी विषाणु रोग भी फैलाती है. इन कीटों की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास को 0.04 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.
रोग नियंत्रण
पीला मोजेक : फसल में यह रोग सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है. पौधा छोटा रह जाता है, फूल गिर जाते हैं और पत्तियां पीली पड़ कर मुरझा जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए कुछ उपाय करने चाहिए:
* रोग प्रतिरोधी किस्में ही उगाएं.
* रोग फैलाने वाले कीटों को मारने के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल करें.
* बोआई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 1 ग्राम क्रूजर इमिडाक्लोप्रिड से उपचारित करना चाहिए.
कटाई: मूंग की कटाई भी समय पर करना जरूरी है, क्योंकि इस की फलियों के चटकने और बीजों के झड़ने का डर रहता है.
मूंग की सभी फलियां एकसाथ नहीं पकती हैं, इसलिए समयसमय पर इस की फलियों की तुड़ाई करनी चाहिए.
इस के बाद पूरी फसल को काट लिया जाता है. कटी फसल को खलिहान में भलीभांति सुखा कर बैलों की दाय चला कर बीजों को अलग कर लिया जाता है.