भिंडी के हरे, मुलायम फलों का प्रयोग सब्जी, सूप फ्राई और दूसरे रूप में किया जाता है. पौधे का तना व जड़, गुड़ एवं खांड़ बनाते समय रस को साफ करने में प्रयोग किया जाता है. भिंडी गर्मी और वर्षा दोनों मौसम में उगाई जाती है. इस के लिए पर्याप्त जीवांश एवं उचित जल निकास वाली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है.
खेत की तैयारी
3 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति कट्ठा एक हेक्टेयर का 80वां भाग) अर्थात 125 वर्गमीटर के हिसाब से बोआई के 15-20 दिन पहले खेत में मिला देना चाहिए. मिट्टी की जांच के उपरांत ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.
अधिक उपज प्राप्त करने के लिए यूरिया 1.10 किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 3.00 किलोग्राम और म्यूरेट औफ पोटाश 800 ग्राम मात्रा बोआई के पूर्व खेत में मिला देना चाहिए. आधाआधा किलोग्राम यूरिया 2 बार बोआई के 30-40 दिन के अंतराल पर सिंचाई के बाद देना लाभदायक है.
बोआई
जायद (ग्रीष्म/गरमी) में फरवरी से मार्च माह तक और खरीफ (बरसात) के लिए जून से 15 जुलाई माह तक बोआई की जाती है.
बोआई से पहले बीजों को पानी मे 12 घंटे भिगो कर बोना ज्यादा लाभप्रद है. गरमी में 250 ग्राम और वर्षा में 150 ग्राम बीज प्रति विश्वा/कट्ठा में जरूरत पड़ती है. समतल क्यारियों में गरमी में कतारों से कतारों की आपसी दूरी 30 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 15-20 सैंटीमीटर और वर्षा में 45-50 सैंटीमीटर कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी 30 सैंटीमीटर पर रखनी चाहिए. 2 सैंटीमीटर की गहराई पर बोआई करनी चाहिए.
खास किस्में
भिंडी की किस्मों में काशी सातधारी,काशी क्रांति, काशी विभूति, काशी प्रगति, अरका अनामिका , काशी लालिमा आदि प्रमुख हैं. सभी किस्में 40-45 दिन में फल देने लगती हैं.
सिंचाई
खरीफ की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन बारिश न होने पर जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. गरमी में सप्ताह में एक बार सिंचाई करने की जरूरत होती है. खेत में सदैव नमी रहना चाहिए. देर से सिंचाई करने पर फल जल्दी सख्त हो जाते हैं और पौधै व फल की बढ़वार कम होती है.
खरपतवार और कीट व बीमारी की रोकथाम
खरपतवार को नष्ट करने के लिए गुड़ाई करें. कीट व बीमारियों का भी ध्यान रखें. भिंडी में मुख्य रूप से बहुत छोटेछोटे महीन कीटों में से माहू, जैसिड, सफेद मक्खी एवं थ्रिप्स का प्रकोप होता है. इन सभी कीटों के प्रबंधन के लिए पीला स्टीकर का प्रयोग करें या 40 ग्राम नीम गिरी एवं 1 मिली इंडोट्रान (चिपकने वाला पदार्थ) प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. उन्नत तकनीक का खेती में समावेश करने पर प्रति कट्ठा (एक हेक्टेयर का 80वां भाग ) 120-150 किलोग्राम तक उपज प्राप्त कर सकते हैं.