किसान के लिए मिट्टी उतनी ही जरूरी है, जितनी हमारे लिए हवा या पानी, लेकिन ज्यादा फसल लेने के चक्कर में ज्यादातर किसान कैमिकल खाद का अंधाधुंध इस्तेमाल कर के मिट्टी की ताकत को कमजोर कर देते हैं.
मिट्टी में कई तरह के खनिज तत्त्व पाए जाते हैं, जो जरूरी पोषक तत्त्वों का जरीया होते हैं. लेकिन लंबे समय तक मिट्टी पौधों के लिए पोषक तत्त्व नहीं दे सकती, क्योंकि लगातार फसल लेते रहने से मिट्टी में एक या कई पोषक तत्त्वों का भंडार कम होता जाता है.
एक समय ऐसा आता है कि मिट्टी में पोषक तत्त्वों की कमी का असर फसल पर दिखाई देने लगता है. ऐसी हालत से बचने के लिए जरूरी होता है कि जितनी मात्रा में पोषक तत्त्व व जमीन से पौधों द्वारा लिए जा रहे हैं, उतनी ही मात्रा में जमीन में वापस पहुंचें. जमीन में पोषक तत्त्वों को वापस पहुंचाने के लिए खाद सब से अच्छा जरीया है. खाद 2 तरह की होती हैं, कार्बनिक और अकार्बनिक.
अकार्बनिक खाद को कैमिकल खाद
भी कहा जाता है. यह सभी जानते हैं कि बढि़या बीज, कैमिकल खाद व सिंचाई का हमारे देश की खाद्यान्न हिफाजत में अहम भूमिका होती है.
हरित क्रांति से पहले भी हमारे देश में भुखमरी के हालात थे, लेकिन हरित क्रांति के बाद बढि़या बीज और कैमिकल खादों के इस्तेमाल से हमारी उत्पादकता साल 1990 तक खूब बढ़ी. लेकिन उस के बाद या तो उत्पादकता में ठहराव आ गया, या फिर उस में गिरावट आने लगी.
उत्पादकता में ठहराव या उस में गिरावट की खास वजह है कैमिकल खादों का लगातार असंतुलित यानी बेहिसाब और जरूरत से ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल. मिट्टी में हो रहे बदलाव की पिछले 2 दशकों से लगातार चर्चा हो रही है. लगातार कैमिकल खादों के असंतुलित इस्तेमाल से मिट्टी बंजर हो रही है. मिट्टी का पीएच मान प्रभावित हो रहा है व फायदेमंद बैक्टीरिया की तादाद कम हो रही है.
मतलब, मिट्टी की भौतिक, कैमिकल व जैविक तीनों दशाएं प्रभावित हो रही हैं. अगर लगातार कैमिकल खादों का इस्तेमाल चलता रहा, तो एक समय ऐसा आएगा कि मिट्टी की उत्पादकता काफी घट जाएगी और हमारे देश की खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता पर सवालिया निशान लग जाएगा.
अब सवाल यह उठता है कि क्या हम कैमिकल खादों के इस्तेमाल को कम कर अपनी उत्पादकता बनाए रख सकते हैं? इस का जवाब यह है कि हम उसी दशा में उत्पादकता बनाए रख सकते हैं, जब कैमिकल खादों की कमी के चलते होने वाले पोषक तत्त्वों की कमी की भरपाई दूसरे जरीए से करें यानी पौधों के लिए पोषक तत्त्वों की जरूरत में कोई बदलाव न हो, बदलाव जरीए में हो.
मौजूदा समय में कैमिकल खादों की जरूरत के कुछ भाग को कार्बनिक खादों का इस्तेमाल कर पूरा किया जा सकता है. लेकिन पूरी तरह कार्बनिक खादों के इस्तेमाल से परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. जैसे, इन परेशानियों में पहले कुछ सालों में पैदावार में गिरावट मुमकिन है. साथ ही, सौ फीसदी भरपाई के लिए कार्बनिक खादों की जरूरत बहुत होगी. इस वजह से लागत ज्यादा लगानी पड़ेगी.
जैसे, अगर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन किसी फसल को देनी है, तो तकरीबन 260 किलोग्राम यूरिया की जरूरत पड़ेगी. लेकिन अगर कोई कार्बनिक खाद, जिस में नाइट्रोजन 1 फीसदी है, इस्तेमाल करनी है, तो उस की 12 टन की जरूरत होगी, जो बहुत बड़ी मात्रा है. ऐसे में कैमिकल खादों के कुछ भाग की भरपाई करना ही ठीक होगा.
कार्बनिक खादों का इस्तेमाल खेती के टिकाऊपन के लिए बहुत जरूरी है. मिट्टी में मौजूद जीवांश को मिट्टी का च्यवनप्राश माना जा सकता है. जैसे इनसानी शरीर के लिए च्यवनप्राश शरीर की सक्रियता के लिए अच्छा माना जाता है, उसी तरह मिट्टी की सेहत के लिए जीवांश की सही मात्रा में मौजूदगी जरूरी होती है.
आमतौर पर देखने में आ रहा है कि मिट्टी में लगातार जीवांश में कमी हो रही है, जिस का मिट्टी की सेहत पर बुरा असर दिख रहा है, इसलिए मिट्टी में जीवांश की मात्रा बनाए रखना बहुत ही जरूरी है.
मिट्टी में जीवांश की मात्रा को कार्बनिक खादों के इस्तेमाल से बनाए रखा जा सकता है या बढ़ाया जा सकता है. ये कार्बनिक खादें अलगअलग हो सकती हैं. जैसे, गोबर की सड़ी खाद, नाडेप कंपोस्ट या केंचुए की खाद.
इस के अलावा कई उत्पाद ऐसे हैं, जिन का कचरा पौधों की खुराक के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. जैसे, हरी खाद व फसल का कचरा जमीन में मिला कर भी मिट्टी में जीवांश की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है. हरी खाद के रूप में ढैंचा व सनई खास फसल हैं. ग्वार व लोबिया भी इस में लिया जा सकता है.
दलहनी फसलों के इस्तेमाल से जहां मिट्टी में जीवांश की मात्रा बढ़ाई जा सकती है, वहीं नाइट्रोजन व फास्फोरस की मौजूदगी को बढ़ाया जा सकता है.
जीवांश की मात्रा बढ़ने से मिट्टी की पानी लेने की कूवत बढ़ जाती है. जीवांश ही मिट्टी में मौजूद बैक्टीरिया की सक्रियता के लिए ऊर्जा का जरीया हैं. ये बैक्टीरिया जमीन में विभिन्न प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं, जिन से विभिन्न पोषक तत्त्वों की उपलब्धता पौधों के लिए सुनिश्चित होती है.
मिट्टी में होने वाले कैमिकल बदलाव का भी जीवांश विरोध करता है. पोषक तत्त्वों का जमीन से रिसाव भी जीवांश की पर्याप्तता से कम हो जाता है. इन सब गुणों के अलावा जीवांश का एक महत्त्वपूर्ण योगदान यह है कि यह विभिन्न पोषक तत्त्वों का जरीया है.