हमारे देश की खरीफ  की प्रमुख खाद्यान्न फसल धान है. धान की खेती असिंचित व सिंचित दोनों परिस्थितियों में की जाती है. धान की फसल में विभिन्न कीटों का प्रकोप होता है. कीट एवं रोग प्रबंधन का कोई एक तरीका समस्या का समाधान नहीं बन सकता, इसलिए रोग व कीट प्रबंधन के उपलब्ध सभी उपायों को समेकित ढंग से अपनाया जाना चाहिए.

प्रमुख रोग

झोंका (ब्लास्ट)

यह रोग पिरीकुलेरिया ओराइजी नामक कवक द्वारा होता है. इस रोग के लक्षण सर्वप्रथम पत्तियों पर दिखाई देते हैं, परंतु इस का आक्रमण पर्णच्छंद, पुष्पक्रम, गांठों और दानों के छिलकों पर भी होता है. पत्तियों पर आंख की आकृति के छोटे, नीले धब्बे बनते हैं, जो बीच में राख के रंग के और किनारे पर गहरे भूरे रंग के होते हैं, जो बाद में बढ़ कर आपस में मिल जाते हैं. इस के फलस्वरूप पत्तियां झुलस कर सूख जाती हैं.

तनों की गांठें पूरी तरह से या उन का कुछ भाग काला पड़ जाता है. कल्लों की गांठों पर कवक के आक्रमण से भूरे धब्बे बनते हैं, जिन के गांठ के चारों ओर से घेर लेने से पौध टूट जाते हैं.

बालियों के निचले डंठल पर धूसर बादामी रंग के क्षतस्थल बनते हैं, जिसे ‘ग्रीवा विगलन’ कहते हैं. ऐसे डंठल बालियों के भार से टूट जाते हैं, क्योंकि निचला भाग ग्रीवा संक्रमण से कमजोर हो जाता है.

बचाव

* झोंका अवरोधी प्रजातियां जैसे नरेंद्र-118, नरेंद्र-97, पंत धान-6, पंत धान-11, सरजू-52, वीएल धान-81 आदि रोग रोधी किस्मों का प्रयोग करें.

* इस रोग के नियंत्रण के लिए बोआई से पूर्व बीज को ट्राइसाइक्लैजोल 2 ग्राम या थीरम व कार्बंडाजिम (2:1) की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

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