यह धान की खेती की ऐसी तकनीक है, जिस में बीज, पानी, खाद और मानव श्रम का समुचित तरीके से इंतजाम करना शामिल है, जिस का मकसद प्रति इकाई क्षेत्रफल में ज्यादा से ज्यादा उत्पादकता बढ़ाना है.
जमीन का चुनाव
इस विधि में खासतौर से जमीन, पानी और दूसरे पोषक तत्त्वों के बेहतर इंतजाम से पौधे की जड़ों के ज्यादा से ज्यादा विकास पर जोर दिया जाता है. इस के लिए जमीन में अंत:कर्षण क्रियाएं समयसमय पर जरूर करनी चाहिए, ताकि जमीन में नमी बनी रहे, जो सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता बढ़ाने में मददगार होती है.
धान की खेती सभी तरह की जमीन में की जा सकती है, फिर भी इस के लिए दोमट चिकनी मिट्टी, पानी सोखने की ज्यादा कूवत वाली और ज्यादा जैविक तत्त्वों से भरपूर वाली जमीन अच्छी मानी जाती है, जिस की जल धारण की कूवत ज्यादा हो.
नर्सरी की तैयारी
परंपरागत विधि से धान की खेती एक एकड़ क्षेत्रफल में करने के लिए 12-16 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है, पर श्री विधि में एक एकड़ धान की खेती के लिए सिर्फ 2 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. इस के लिए 400 वर्गफुट की जगह पर नर्सरी तैयार की जाती है.
नर्सरी बनाने के समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. इस विधि से 10-14 दिन में पौध का रोपण किया जाता है. नर्सरी की क्यारी बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि क्यारी खेत के बीच या कोने में बनाई जाए, जहां पौध रोपण करना है. लंबाई हालात के मुताबिक व बैड की ऊंचाई आधार तल से 6 इंच होनी चाहिए.
पहली परत : 1 इंच गोबर की सड़ी खाद.
दूसरी परत : 1-1.5 इंच बारीक मिट्टी.
तीसरी परत : 1 इंच सड़ी गोबर की खाद.
चौथी परत : 2-5 इंच बारीक मिट्टी.
मल्चिंग : 3-4 दिन तक.
नर्सरी में रासायनिक खाद के बजाय गोबर की सड़ी खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. इस से मिट्टी मुलायम रहने से पौध को बिना नुकसान पहुंचाए खेत तक ले जाया जाता है.
नर्सरी में बीज की बोआई
शोधित बीज को हाथ से लाइन बना कर 1-1 कर के लाइन से बोया जाता है और उस पर एक हलकी परत सड़ी गोबर की खाद डाली जाती है और आखिर में नर्सरी बैड को पुआल से ढक दिया जाता है. बीज जमने के बाद पुआल को हटा दिया जाता है.
पुआल हटाने के बाद सुबहशाम रोजाना हलकी सिंचाई जरूर करें. सिंचाई करते समय यह सावधानी बरतनी चाहिए कि बीज मिट्टी से बाहर न निकले.
खेत की तैयारी
इस विधि में दूसरी फसलों की तरह खेत की तैयारी की जाती है. खेत की जुताई करने के बाद पाटा लगा देते हैं. इस के बाद मार्कर यंत्र से खेत में लाइन बनाते हैं या फिर रस्सी की मदद से खेत में 25×25 सैंटीमीटर या 30×30 सैंटीमीटर पर लाइन खींच लेते हैं. जहां कटान होता है, वहीं पर प्रति हिल एक पौध की रोपाई की जाती है. इस विधि में परंपरागत विधि की तुलना में प्रति पौधा ज्यादा कड़े निकलते हैं.
पौध रोपण और सावधानियां
क्यारी में बीज बोने के बाद तकरीबन 10-14 दिन की पौध को सावधानी से निकाल कर 1-1 कर के मुख्य खेत में आधे घंटे के अंदर सावधानी से रोपना चाहिए और खेत में 2 सैंटीमीटर से अधिक पानी नहीं भरा होना चाहिए.
पौध की तैयारी
पौधे से पौधे की दूरी 25×25 सैंटीमीटर रखनी चाहिए और एक हिल पर एक ही पौध रोपना चाहिए. अगर जमीन की उर्वराशक्ति अधिक हो तो पौधे से पौधे की दूरी 30×30 सैंटीमीटर बढ़ा सकते हैं.
खरपतवार नियंत्रण और जड़ों का विकास
अच्छे पौधे विकसित हों, इस के लिए खेत में नमी बनाए रखें. बहुत ज्यादा पानी न भरें और जमीन में रंद्रावकाश अच्छा रखने के लिए खेत में कोनोवीडर से निराईगुड़ाई करें. जरूरत के हिसाब से ही पानी दें, जिस से पानी की बचत होगी.
सिंचाई
इस विधि में जरूरत के हिसाब से एक तय समय के बाद सिंचाई करते हैं, जिस से खेत में नमी बनाए रखने के साथसाथ जमीन में वायु का संचार अच्छा रहे. खेत में 1-2 सैंटीमीटर से ज्यादा पानी नहीं देना चाहिए. पानी की कमी को ध्यान में रख कर इस तकनीक की अहमियत और ज्यादा बढ़ गई है.
गोबर की खाद या कंपोस्ट का इस्तेमाल
इस विधि में धान की ज्यादा उपज लेने के लिए कार्बनिक खादों जैसे गोबर की खाद या कंपोस्ट का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए. कार्बनिक खाद मुहैया न होने पर जमीन की उर्वराशक्ति की जांच के आधार पर नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का इस्तेमाल कर सकते हैं.