लहसुन की खेती में कीट व रोगों की रोकथाम कर अच्छा मुनाफा लिया जा सकता है. लहसुन जड़ वाली फसल है, इसलिए खासकर ध्यान रखें कि हमारे खेत की मिट्टी रोगरहित हो. अगर फिर भी पौधों में कीट व रोगों का प्रकोप दिखाई दे, तो समय रहते उन का उपचार करें.

लहसुन के खास कीट

माहू : इस के निम्फ और वयस्क दोनों ही पौधों से रस चूसते हैं, जिस से पत्तियां किनारों से मुड़ जाती हैं. कीट की पंख वाली जाति लहसुन में वाइरसजनित रोग भी फैलाती है. ये चिपचिपा मधुरस पदार्थ अपने शरीर के बाहर निकालते हैं, जिस से पत्तियों के ऊपर काली फफूंद पनपती देखी जा सकती है, जिस से पौधों के भोजन बनाने की क्रिया पर असर पड़ता है.

रोकथाम : माहू का प्रकोप होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का इस्तेमाल करें, जिस से माहू ट्रैप पर चिपक कर मर जाएं. परभक्षी कौक्सीनेलिड्स या सिरफिड या क्राइसोपरला कार्निया को एकत्र कर 50,000-1,00,000 अंडे या सूंड़ी प्रति हेक्टेयर की दर से छोडे़ं. जरूरतानुसार डाईमिथोएट 30 ईसी या मैटासिस्टौक्स 25 ईसी 1.25-2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

लहसुन का मैगट : मैगट पौधे के तने व शल्क कंद में घुस कर नुकसान पहुंचाते हैं. बड़े शल्क कंदों में 8 से 10 मैगट एकसाथ घुस कर उसे खोखला बना देते हैं.

रोकथाम: शुरुआत में रोगी खेत पर काटाप हाइड्रोक्लोराइड 4जी की 10 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में बिखेर कर सिंचाई कर दें. बढ़ते हुए पौधों पर मिथोमिल 40 एसपी की 1.0 किलोग्राम या ट्राईजोफास 40 ईसी की 750 मिलीलिटर मात्रा को 500-600 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने पर नए निकले हुए मैगट मर जाते हैं.

थ्रिप्स : इस कीट का हमला तापमान के बढ़ने के साथसाथ होता है व  मार्च महीने में इस का हमला ज्यादा दिखाई देता है. यह कीट पत्तियों से रस चूसता है, जिस से पत्तियां कमजोर हो जाती हैं और रोगी जगह पर सफेद चकत्ते पड़ जाते हैं, जिस के कारण पत्तियां मुड़ जाती हैं.

रोकथाम : लहसुन की कीट रोधी प्रजातियां उगानी चाहिए. कीट के ज्यादा प्रकोप की दशा में 150 मिलीलिटर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल को 500-600 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

Garlicमाइट्स : इस कीट के प्रकोप से पत्ती का असर वाला भाग पीला हो जाता है और पत्तियां मुड़ी हुई निकलती हैं. वयस्क और शिशु कीट दोनों ही नई पत्तियों का रस चूस कर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं.

रोग के शुरू में सब से पहले पौधों की निचली पत्तियां तैलीय हो जाती हैं और बाद में पूरा पौधा तैलीय हो जाता है. रोगी पत्तियां छोटी हो जाती हैं और चमड़े की तरह दिखाई देती हैं. पत्तियां निचली तरफ से तांबे जैसी रंगत की दिखाई देती हैं. माइट का ज्यादा हमला होने से रोगी पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं और पूरा पौधा मुरझा कर सूख जाता है.

रोकथाम : रोगी पौधों के कंद व जड़ सहित उखाड़ कर नष्ट कर दें. घुलनशील गंधक 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या कैराथीन 500 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करें. मैटासिस्टौक्स छिड़कने से भी फायदा होता है.

लहसुन के रोग

विगलन : इस रोग का असर कंदों पर खेतों में या भंडारगृह दोनों में हो सकता है. खेत में रोगी पौधा पीला हो जाता है और जड़ें सड़ने लगती हैं.

कभीकभी रोग के लक्षण बाहर से नहीं दिखाई पड़ते हैं, लेकिन लहसुन की गर्दन के पास दबाने से कुछ शल्क मुलायम जान पड़ते हैं. बाद में ये शल्क भूरे रंग के हो जाते हैं. सूखे मौसम में शल्क धीरेधीरे सूख कर सिकुड़ जाते हैं, जिस की वजह से छिलका फट कर अलग हो जाता है.

रोकथाम : खेत को ट्राईकोडर्मा नामक जैव फफूंद की 2.5 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपचारित करना चाहिए. गरमी के महीनों में खेत की अच्छी तरह जुताई कर के खुला छोड़ दें, जिस से कि कवक व अन्य रोग जनकों की मौत हो जाए. कंदों को बोआई से पहले 2.0 ग्राम कार्बंडाजिम का प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर उपचारित करें.

बैगनी धब्बा : इस रोग से लहसुन को काफी नुकसान होता है. इस रोग के लक्षण पत्तियों, कंदों पर उत्पन्न होते हैं, शुरू में छोटे धंसे हुए धब्बे बनते हैं, जो बाद में बड़े हो जाते हैं. धब्बे के बीच का भाग बैगनी रंग का हो जाता है. यदि आप उसे हाथों से छुएं तो काले रंग का चूर्ण हाथ में चिपका हुआ दिखाई देता है. रोगी पत्तियां झुलस कर गिर जाती हैं. रोगी पौधों से प्राप्त कंद सड़ने लगते हैं.

रोकथाम : 2-3 साल का सही फसल चक्र अपनाएं. रोग के लक्षण दिखाई देते ही मैंकोजेब की 2.0 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर 2 बार छिड़काव करें.

सफेद सड़न : इस बीमारी से कलियां सड़ने लगती हैं.

रोकथाम : जमीन को ट्राईकोडर्मा नामक जैव फफूंद की 2.5 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपचारित करना चाहिए. गरमी के महीनों में खेत की अच्छी तरह जुताई कर के खुला छोड़ दें जिस से कि कवक व अन्य रोग जनकों की मौत हो जाए. कंदों को बोआई के पहले 2.0 ग्राम कार्बंडाजिम का प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर उपचारित करें.

कंद सड़न : इस बीमारी का हमला भंडारण में होता है.

रोकथाम : इस की रोकथाम के लिए कंद को 2 फीसदी बोरिक अम्ल से उपचारित कर के भंडारण करना चाहिए. बीज के लिए यदि कंद को रखना हो तो 0.1 फीसदी मरक्यूरिक क्लोराइड से उपचारित कर के रखें. खड़ी फसल में मैंकोजेब की 2.0 ग्राम मात्रा का प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करें.

फुटान : नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों के ज्यादा इस्तेमाल से यह बीमारी फैलती है. इस के अलावा ज्यादा पानी या ज्यादा दूरी पर रोपाई की वजह से फुटान ज्यादा होता है. इस बीमारी से लहसुन कच्ची दशा में कई छोटेछोटे फुटान देता है, जिस से कलियों का भोजन पदार्थ वानस्पतिक बढ़वार में इस्तेमाल होता है.

रोकथाम : लहसुन की रोपाई कम दूरी पर करें और नाइट्रोजन व सिंचाई का इस्तेमाल ज्यादा न करें. ऐसे रोगी पौधों को देखते ही पौलीथिन की थैली से ढक कर सावधानीपूर्वक उखाड़ कर मिट्टी में दबा दें.

बीजों को बोने से पहले वीटावैक्स 2.5 ग्राम या टेबूकोनाजोल 1.0 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम की दर से उपारित करें.

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