परवल

फल मक्खी कीट : प्रोन कीट कोमल अवयस्क फलों की त्वचा के नीचे अंडे देती है, जिस से यह गिडार निकल कर गूदे को खा कर फलों को सड़ा देती है. फल पीले पर कर सड़ने लगते हैं.

प्रबंधन : कीट आने से पहले नीम तेल 1500 पीपीएम की 3 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

यदि कीट आ गया है तो क्विनालफास 25 ईसी की 2 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

गलन रोग : इस रोग का प्रकोप अविकसित फलों पर अधिक होता है, जिस के कारण पूरा फल सड़ कर गिर जाता है.

प्रबंधन : इस रोग के नियंत्रण के लिए कौपर औक्सिक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी की 3 ग्राम दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

खर्रा रोग : इस के प्रकोप से पत्तियों और फलों पर सफेद चूर्ण दिखाई देते हैं. परिणामस्वरूप पत्तियां पीली पड़ कर नीचे गिर जाती हैं.

प्रबंधन : इस रोग के नियंत्रण के लिए कसुगमायसिन्न 3 फीसदी की 2 मिलीलिटर दवा प्रतिलिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

धनिया

माहू कीट : यह कीट फूल आने के समय शिशु एवं प्रोण दोनों ही रस चूस कर नुकसान करते हैं. इस से प्रभावित फलों व बीजों का आकार छोटा हो जाता है.

प्रबंधन : कीट आने से पहले नीम तेल 1500 पीपीएम की 3 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

यदि कीट आ गया है तो इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 10 मिलीलिटर दवा प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.

स्टेम गाल रोग : यह धनिया का प्रमुख रोग है. इस में पत्तियों के ऊपरी भाग, तना, शाखाएं, फूल और फूल व फल पर रोग के लक्षण कुछ उभरे हुए फफोलों जैसे दिखाई देते हैं. आरंभ में रोग से संक्रमित तना पीला होने लगता है और मिट्टी के पास से तने पर छोटी गाल उभार लिए हुए भूरे रंग की होती है.

प्रबंधन : बीज को बोने से पूर्व थीरम 2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें. पौधों के अवशेष को नष्ट कर दें.

यदि रोग आ गया है तो कार्बंडाजिम 1.5 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

उकठा रोग : इस रोग से प्रभावित पौधे शुरू में पीला पड़ने लगते हैं. कुछ ही दिनों में इन का शीर्ष मुर?ा कर सूख जाता है और पौधा मर जाता है.

प्रबंधन : खेत की अप्रैलमई माह में सिंचाई कर के गरमियों की गहरी जुताई करें और खाली छोड़ दें. 2 वर्ष का फसल चक्र अपनाएं. धनिया के स्थान पर अदरक या सरसों उगाएं.

बोआई से पहले और आखिरी जुताई के साथ ट्राइकोडर्मा 4 से 5 किलोग्राम और गोबर की 50 से 60 किलोग्राम सड़ी हुई खाद मिला कर 1 हेक्टेयर खेत में फैला कर जुताई कराएं.

बुकनी रोग : इसे खर्रा रोग भी कहते हैं. इस रोग के कारण पत्तियों और तनों पर सफेदी आ जाती है व पत्तियां पीली पड़ जाती हैं.

प्रबंधन : इस के उपचार के लिए घुलनशील गंधक (सल्फैक्स) 3 किलोग्राम अथवा 600 मिलीलिटर डाई कूनो कैप प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लिटर पानी में घोल कर फसल पर छिड़काव करें.

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